ऋद्धि-सिद्धि व समृद्धि के लिये श्रीविनायक चतुर्थी व्रत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री विनायक चतुर्थी के दिन सच्चे मन से भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना, ध्यानादि करने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होते हैं और सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।
चेतनादित्य आलोक
गणेश पुराण के अनुसार ‘चतुर्थी तिथि’ भगवान श्री गणेश को समर्पित होती है। बता दें कि पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को ‘श्री संकष्टी चतुर्थी’ कहा जाता है, जबकि अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को ‘श्री विनायक चतुर्थी’ के नाम से जाना जाता है। देश के कई भागों में विनायक चतुर्थी को ‘वरद विनायक चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष पौष महीने की विनायक चतुर्थी का व्रत 3 जनवरी को किया जाएगा।
सर्वमान्य व्रत
श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किसी एक क्षेत्र अथवा राज्य या समाज में किया जाने वाला व्रत नहीं, बल्कि यह पूरे देश में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाने वाला व्रत है। भले ही स्थान और परिवेश के अनुसार इसकी परंपरा में थोड़ा बदलाव महसूस होता हो, परंतु इस व्रत के नियमों में कोई विशेष बदलाव नहीं आता। इसलिए जाहिर है कि देशभर में हिंदू धर्म को मानने वाले भक्तगण इस व्रत को बहुत ही उत्साह एवं उल्लास के साथ करते हैं।
सुख-समृद्धि के देवता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री विनायक चतुर्थी के दिन सच्चे मन से भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना, ध्यानादि करने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होते हैं और सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। गौरतलब है कि भगवान श्री गणपति महाराज को शुभता, बुद्धि और सुख-समृद्धि का देवता माना जाता है। इसलिए जो भी भक्त अपने मन-आंगन में भगवान श्री गणेश को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति-भाव के साथ विराजते और पूजा-पाठ आदि करते हैं, उनके जीवन तथा व्यक्तित्व में शुभता, सकारात्मकता, बुद्धि और सुख-समृद्धि आती है।
विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता हैं और इनकी पूजा-अर्चना, आराधना आदि करने से भक्तों की सभी परेशानियों, विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री गणेश के साथ-साथ भगवान शिव-पार्वती एवं चंद्रदेव की पूजा-आराधना करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। साथ ही परेशानियां और बाधाएं समाप्त होती हैं।
चतुर्थी व्रत का महत्व
विनायक चतुर्थी व्रत में श्री गणेश भगवान की पूजा दिन में दो बार की जाती है। एक बार दोपहर और फिर संध्या समय। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस घर में भगवान श्री गणेश को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति-भाव के साथ स्थापित कर संपूर्ण परिवार सहित उनकी आराधना की जाती है, उस घर-परिवार में भगवान श्री गणेश के साथ-साथ ऋद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ भी वास करते हैं। इनके अतिरिक्त, विनायक चतुर्थी के दिन व्रत और पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं। वैसे, जो भक्त भगवान श्री गणेश की नियमित पूजा-अर्चना आदि करते हैं, उनके जीवन और घर में भी सुख-समृद्धि आती है। विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत, पूजा, आराधनादि करने का विधान है। इसके अतिरिक्त, संध्या समय चंद्रदेव को जल से अर्घ्य भी दिया जाता है। उसके बाद भगवान श्री गणपति एवं चंद्रदेव की पूजा की जाती है। वैसे तो इस व्रत को सभी कर सकते हैं, किंतु सुहागिन महिलाओं के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत होता है।
पूजन-विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर लाल रंग के वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात श्री गणपति जी की पूजा करने एवं पूरे दिन श्री विनायक चतुर्थी का व्रत रखने का संकल्प लें। ध्यान रहे कि चतुर्थी तिथि की पूजा दोपहर के समय की जाती है। दोपहर पूजन के समय अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा चांदी से निर्मित श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश भगवान की आरती करें। पूजन के बाद ब्राह्मण को यथाशक्ति पवित्र एवं पौष्टिक भोजन कराकर संतुष्ट करने के बाद दक्षिणा दें और प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करने के बाद ब्राह्मण को विदा करें।
व्रत कथा का महत्व
श्री विनायक चतुर्थी के दिन श्री विनायक चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा का पाठ करने अथवा श्रवण करने का विशेष महत्व होता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जो भक्त श्री विनायक चतुर्थी का व्रत, उपवास, पूजन आदि करते हैं, उन्हें तो श्री विनायक चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा का पारायण अथवा श्रवण करना ही चाहिए, किंतु जो लोग यह व्रत नहीं कर रहे हैं, उन्हें भी यह कथा कम-से-कम अवश्य सुननी चाहिए। दरअसल, मान्यता है कि श्री विनायक चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा का पारायण अथवा श्रवण करने मात्र से ही जीवन के सभी विघ्न और संकट दूर हो जाते हैं।
स्वैच्छिक उपवास
यदि सामर्थ्य हो तो स्वेच्छा से उपवास करें और दूसरे दिन प्रातः भगवान श्री गणेश के पूजन-अर्चन के पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करें। वैसे यदि उपवास रखना संभव न हो तो संध्या पूजन के उपरांत व्रती इस व्रत में भोजन ग्रहण कर सकते हैं।