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उम्मीद की कविताएं

04:00 AM Dec 29, 2024 IST
उम्मीद की कविताएं
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  • राजेंद्र कुमार कनोजिया
    नया साल
    बड़ा कमाल करते हैं,
    जो गुपचुप काम करते हैं।
    कभी बरसा नहीं करते,
    जो बादल शोर करते हैं।
    समंदर कितना गहरा है,
    कभी नापा नहीं करते।
    किश्तियां को हवाएं,
    लेके उसके पार जाती हैं।

सुबह की धूप में टहला करें, साहिब,
बड़ी अच्छी खिली है,
कि सेहत ठीक रहती है।
जरा-सा गुनगुनाने से,
तमन्नाओं के जंगल में,
हिरण अब भी अकेला है,
हिरण को ढूंढ़ती जंगल में
कस्तूरी भटकती है।

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बड़े मासूम लगते हैं,
बुजुर्गों के खिले चेहरे,
जड़ों से लग के रहते हैं,
तो पौधे खूब फलते हैं।
हवा में मुठियां खोलो तो
आशीर्वाद आयेगा,
सुना है ईश्वर हर घर में,
हर इक कण में रहते हैं।
मैं तुमको माफ़ भी कर दूं,
चलो जो हो गया छोड़ो,
जो चेहरे पर छपा है,
रोज आईने में आयेगा।

मैं अगले साल भी,
मिलने तुम्हारे गांव आऊंगा,
जो घर की देहरी से हो शुरू,
वो बरकत भी देता है।
सारा साल सांसों में,
गांव की मिट्टी गमकती है।
मुबारक हो तुम्हें फिर से,
ये नया साल पच्चीस का।
तुम्हें ख़ुशियां मिलें सारी,
तो थोड़ा दुख रहे शामिल।
जरा नमकीन मौसम हो तो,
जिंदगी स्वाद लाती है।

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*****

  • रतन चंद 'रत्नेश'
    नये साल के चेहरे पर धूप
    कभी मेरे साथ
    हरदम रहती थी धूप,
    इन सर्दियों में
    इधर-उधर भटकती फिर रही है।
    इस नए साल में
    अभी-अभी वह जाकर
    सामने के पार्क में
    एक बेंच पर बैठ गई है।
    मैं खुद को रोक नहीं पाता हूं,
    उसके पास जाता हूं,
    उससे बतियाता हूं,
    एक नई कहानी सुनाना चाहता हूं।
    वह सुस्ताई-सी, उदास बैठी रहती है,
    नींद में अलसायी,
    खोयी-खोयी सी रहती है।
    तभी धूप के चेहरे पर
    उतर आते हैं बादल के कुछ टुकड़े,
    वह सहम जाती है,
    डर कर मुझसे लिपट जाती है।
    मैं धूप को सहलाता हूं,
    उसे गोद में उठाता हूं,
    धूप अब नए साल के
    चेहरे पर चमकने लगी है।

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