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इतिहास, श्रद्धा और स्वाद का संगम

04:05 AM Apr 11, 2025 IST
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अमृतसर, पंजाब का एक ऐतिहासिक और धार्मिक शहर है, जिसे स्वर्ण मन्दिर के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहां की गलियों में सिख धर्म, इतिहास और स्वाद का अनोखा संगम मिलता है। अमृतसर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि यह अपने लाजवाब स्ट्रीट फूड और संस्कृति के लिए भी प्रसिद्ध है।

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अमिताभ स.

अपनापने से भरा शहर है पंजाब का अमृतसर। वाहे गुरु की नगरी है, इसलिए पर्यटक पहले श्री हरमन्दिर साहिब में मत्था टेकते हैं। फिर दूसरे पर्यटक स्थलों के बाद स्ट्रीट फूड के मज़े लेने पहुंच जाते हैं। अमृतसरी कुल्चा, अमृतसरी मच्छी, अमृतसरी पापड़, अमृतसरी वडियां वगैरह खाने-पीने के नाम तक अमृतसर से जुड़े हैं। हिन्दी की बेहतरीन कहानियों में शुमार चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ का ताना- बाना अमृतसर की गलियों में ही बुना गया है। भारतीय फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में ही हुआ था। माता की भेंटों के सम्राट नरेन्द्र चंचल और कॉमेडी किंग कपिल शर्मा के तार भी अमृतसर से ही जुडे़ हैं। अमेरिका के सेलिब्रेटी शेफ विकास खन्ना अमृतसर के ही हैं।
​वाहेगुरु की नगरी अमृतसर में सिखों का सबसे बड़ा तीर्थ है गोल्डन टेम्पल। असल में, श्री हरमिन्दर साहिब बड़ा लैंडमार्क है, गोल्डन टेम्पल या कहें स्वर्ण मन्दिर उसका एक हिस्सा है। असीम श्रद्धा के चलते ताजमहल से ज्यादा पर्यटक यहां रोज दर्शन करने आते हैं। अंदाज़ा है कि रोजाना एक लाख से ज्यादा भक्त मत्था टेकते हैं।
सिख पंथ के चौथे गुरु राम दास ने अमृत का सरोवर खुदवाया था। अमृत के सरोवर से ही शहर को अमृतसर नाम मिला। पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने सरोवर के बीच मन्दिर के निर्माण का शुभारम्भ लाहौर के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर के शुभ कमलों से करवाया था। बताते हैं कि सच्चे संत के सत से ही सरोवर का जल अमृत बन गया। आज भी भक्त सरोवर का जल पान करते हैं और सरोवर में स्नान करते हैं।
​पंजाब के महाराजा ने 1803 में नए सिरे से मन्दिर का निर्माण करवाया। गुम्बदों पर 400 किलो खालिस सोना चढ़वाया, दरवाजों व दीवारों के ऊपरी हिस्सों पर सोने के पत्तरे चढ़ाए। तब से मन्दिर स्वर्ण आभा से जगमगा गया और नाम हो गया- स्वर्ण मन्दिर। सिख कायदे के मुताबिक यहां गुरु का लंगर छकने का रिवाज सदियों से जारी है। हाल के सालों में, श्री हरमन्दिर साहिब से जलियांवाला बाग और आगे टाउन हॉल (अब पार्टिशन म्यूजियम) को जोड़ता रास्ता हाई- फाई बन गया है। सौंदर्यीकरण के बाद साफ-सफाई और पुरानी- पुरानी इमारतों का नया- नवेला बाहरी रूप देखते ही बनता है। लगता है कि यूरोप के किसी शहर के स्क्वेयर में टहल रहे हैं।
जलियांवाला बाग है और...
​अमृतसर के चप्पे-चप्पे में देखने लायक बहुत कुछ है। स्वर्ण मन्दिर से पैदल दूरी पर जलियांवाला बाग है। यहां 1919 की बैसाखी के रोज ब्रिटिश हुकूमत के जनरल डायर ने बेकसूर निहत्थे हिन्दुस्तानियों पर गोलियों की बौछार कर दी थी। लोग गोलियां खा-खा कर मरते गए, कई ने गोलियों से जान बचाने के लिए कुएं में गिर-गिर कर जान गवां दी। यहां मौजूद शहीदी कुएं से तब 120 शव निकाले गए थे। गोलियों के निशान आज भी बाग की दीवारों पर साफतौर पर दिखाई देते हैं।
​एकदम सीध पर है पार्टिशन म्यूजियम। बना है करीब 155 साल पुरानी अंग्रेजों के जमाने की इमारत में। इस शानदार लाल रंगी इमारत में कभी पुलिस थाना, तो कभी टाउन हॉल था। आज बंटवारे का म्यूजियम है। एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाते-जाते आजादी के वक्त हिन्दुस्तान- पाकिस्तान के बंटवारे के दर्द की दुर्लभ तस्वीरों, अखबारों की कतरनों और कृत्तियों के जरिए देखना और समझना अनुभव है।
​टेलीफोन एक्सचेंज के बाहर सड़क किनारे रखा ‘बड़ा मंजा’ भी अमृतसर की शान में शुमार है। करीब 16 फुट लम्बी और 12 फुट चौड़ी खासी विशाल फेमिली चारपाई नारियल के बान से बुनी गई है। बड़ा इतना है कि 50-60 लोग एक साथ मजे-मजे बैठ सकते हैं। उधर अमृतसर का कम्पनी बाग है, जिसे पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने बनवाया था। बिजली पहलवान का मन्दिर भी देखने लायक है। लोहगढ़ गेट के निकट दुर्गायाना मन्दिर भी खास है- दुर्गा माता से नाम मिला और लक्ष्मी नारायण मन्दिर भी कहलाता है। सरोवर के बीचोंबीच स्वर्ण मन्दिर के स्टाइल से बना है। इसे 1908 में हरसाई मल कपूर ने बनवाया था। चांदी के दरवाजे हैं, इसलिए सिल्वर टेम्पल के तौर पर भी जाना जाता है।

चप्पे- चप्पे पर खाना- पीना
​अमृतसर चार सदियों पुराना शहर है, हालांकि लारेंस रोड जैसे नए इलाके भी हैं। करीब 3 किलोमीटर के दायरे में फैले कटरे, गलियां, हवेलियां, अखाड़े, हट्टियां वगैरह हेरिटेज वॉक अमृतसर के पुराने दौर में ले जाती है। लेडीज सलवार-कमीज, कंबल और पश्मीना शालों का बड़ा बाज़ार है। पंजाब के जाने-माने फुलकारी स्टाइल की पटियाला सलवार-कमीज का चलन आज भी है। फुलकारी के परिधान ज्यादातर कपड़े की दुकानों पर मिलते हैं। सेमी-पश्मीना की खूबसूरत शालें भी किफायती दामों पर खरीदने का मौका यहां मिलता है। कटरा जयमल सिंह में ज्यादातर कपड़ा कारोबार होता है। कैरों मार्केट, हाल बाज़ार, गुरु बाज़ार वगैरह अन्य मशहूर बाज़ार हैं।
अमृतसर पंजाब क्या, समूचे उत्तर भारत की स्ट्रीट फूड केपिटल कहलाती है। अमृतसरी कुल्चा, अमृतसरी फिश, अमृतसरी लस्सी वगैरह कई आइटम बाकायदा अमृतसर के नाम से सारी दुनिया में परोसी जाती हैं। पुराने अमृतसर की गली पासियां में 1900 से ‘केसर दा ढाबा’ की तारीफ है। देसी घी का शाकाहारी ढाबा है और हर सब्जी के ऊपर से गर्म-गर्म देसी घी उड़ेल कर लोग बड़े चाव से खाते हैं। जो खाता है, स्वाद भूल नहीं पाता। स्टफ तंदूरी अमृतसरी कुल्चे खाने का जी करे, तो टाउन हाल के सामने बीते सौ साल से ‘भरांवा दा ढाबा’ हाजिर है। मांसाहारी के शौकीनों को मजीठा रोड पर ‘मक्खन फिश’ ने अमृतसरी फिश खिला-खिला कर, ढाबे से शानदार रेस्टोरेंट का सफर तय किया है।
​उधर लारेंस रोड पर, ‘नावल्टी स्वीट्स’, ‘बंसल स्वीट्स’ और ‘कान्हा स्वीट्स’ के पतीसा, तिल बुग्गा, सतपुरा और देसी घी के पूरी-छोले-आलू के क्या कहने। लारेंस रोड के बीचोंबीच ही पीपल के पेड़ तले ‘राम लुभाया एंड संस’ बोर्ड लगी रेहड़ी 1968 से आम पापड़ समेत 14 वैरायटी के खट्टे-मीठे चूर्णों के चटकारों से रिझा रही है। खासियत है कि आम पापड़ के ऊपर पुदीना चटनी और इमली की चटनी डाल कर, मसाला छिड़क कर चाट की माफिक पेश करते हैं।
अमृतसरी पापड़ और वड़ियों के चर्चे भी कम नहीं हैं। स्वर्ण मन्दिर के पीछे पूरा पापड़ बाज़ार है। नजदीक ही बाजार काठियां में ‘उजागर सिंह करम सिंह’ नाम की पापड़-वड़ियों की नामी दुकान है। है 1919 से और शुरू की सरदार उजागर सिंह ने अपने बेटे सरदार करम सिंह के साथ मिल कर। आज तीसरी पीढ़ी वही जलवा कायम रखे है। अमृतसर का पानी तो वाकई बड़ी शफाओं वाला है- जितना घी वाला भोजन खाओ, सब हजम हो जाता है। खट्टे डकार नहीं आते और न ही गैस बनती है। कहते हैं कि यहां के पानी में जितने रसदार छोले बनते हैं, उतने कहीं और के पानी में बन ही नहीं सकते।
नजदीक ही अटारी-वाघा बॉर्डर
​पहली बार अमृतसर जाने वाले ज़्यादातर पर्यटक अटारी-वाघा बॉर्डर जरूर जाते हैं। अटारी और वाघा हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सरहद के दो छोटे-छोटे गांव है। अमृतसर से लाहौर को जोड़ती ग्रेंड ट्रंक रोड पर स्थित है। अमृतसर से करीब 27 किलोमीटर परे हैं। अटारी-वाघा बॉर्डर पर, 1959 से रोज शाम भारत-पाक की फौजें साझे तौर पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोयन करती है। समारोह का आयोजन सूर्यास्त से 2 घंटे पहले किया जाता है कि देखते-देखते लोगों के तन-मन में देश भक्ति के जोश-ए-जुनून का जज्बा उमड़ पड़ता है।
दिल्ली से अमृतसर सवा 6 घंटे में

पंजाब का मशहूर शहर है अमृतसर। हालांकि, कारोबार के लिहाज से, नम्बर लुधियाना और जालन्धर के बाद आता है। लेकिन सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर में ही आते हैं।
अमृतसर के लोगों को अमृतसरिया कहते हैं। मिलनसार और मददगार होते हैं, बातें भी खूब करते हैं। ताश के पत्तों से खेलना औरतों को भी अच्छा लगता है।
अमृतसर घूमने-फिरने सारा साल कभी भी जा सकते हैं। लंबे वीकेंड पर ज्यादा भीड़ होती है, इसलिए हफ़्ते के बीच के दिनों में जाना ही बेहतर है।
दिल्ली से अमृतसर की दूरी करीब 450 किलोमीटर है। स्वर्ण शताबदी और वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों से आना-जाना बेहतर है- क्रमश: सवा 6 घंटे और साढ़े 5 घंटे में दिल्ली से अमृतसर पहुंचाती हैं। सड़क के रास्ते एक- डेढ़ घंटा ज्यादा लगता है, जबकि उड़ान से महज एक घंटा में ही पहुंच जाते हैं।
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