इच्छाओं पर नियंत्रण से आत्मिक संतुष्टि
हमारी इच्छाओं और प्रवृत्तियोंं पर नियंत्रण रखना ही आत्म-साक्षात्कार और सच्ची संतुष्टि की कुंजी है। इस मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को अधिक संतुलित और उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं।
राजेंद्र कुमार शर्मा
हिंदू सनातन धर्म के अनुसार आत्म-साक्षात्कार या स्वयं को पाना अर्थात् ईश्वर से साक्षात्कार करने का जो मार्ग दिखाया गया है वो है अपने मन को नियंत्रित करना अर्थात् अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना है। यद्यपि जितना पढ़ने-सुनने में यह कार्य सुगम लगता है, उतना सरल कार्य नहीं है। मनुष्य की प्रकृति ही इच्छाओं के पीछे भागने वाले जीव की रही है, कुछ उच्चकोटि की आत्माएं, आत्म-संयम का अनुसरण कर, अपने मन और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेते है और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर अग्रसर हो जाते है। यही अध्यात्म का मूलमंत्र है।
आध्यात्मिक संतुष्टि
आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जो क्षणिक सुखों और भौतिक लालसाओं से भरी हुई है, इन क्षणिक सुख देने वाली इच्छाओं की पूर्ति हेतु हम दिन-रात इसके पीछे भाग रहे हैं, जो कुछ समय तो सुख देते हैं और फिर एक सुख का नशा खत्म होते ही, दूसरे की इच्छा होती है जो इससे भी अच्छा हो। एक दास की भांति इन इच्छाओं की पूर्ति हेतु सब कुछ करते हैं, फिर भी कभी सच्ची संतुष्टि नहीं मिलती। कामना, चाहे वह शारीरिक सुखों की हो, धन की हो या शक्ति की, एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है। लेकिन अनियंत्रित भोग अक्सर आध्यात्मिकता से दूर ले जाता है। सच्ची संतुष्टि वासनाओं काे नियंत्रित करने में है।
असंतोष का कारण
संतुलित इच्छाएं हमारे जीवन को समृद्ध करती हैं। अनियंत्रित इच्छाएं असंतोष का कारण बनती हैं। सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बनने का रहस्य भी इसी मूलमंत्र में हैं। विलासितापूर्ण जीवन में जन्मे सिद्धार्थ को इनमें कोई स्थायी आनंद नहीं मिला। केवल सांसारिक सुखों को त्यागने और आत्म-संयम अपनाने के बाद ही उन्होंने आत्मज्ञान और सच्ची शांति प्राप्त की। इच्छाओं पर नियंत्रण, आत्मिक विकास का आधार है। बाइबिल में एक जगह वर्णित है ‘जिस मनुष्य में आत्म-नियंत्रण नहीं है, वह उस शहर के समान है, जिसकी दीवारें टूटी हुई हैं।’ अर्थात् अनियंत्रित इच्छाओं के साथ मात्र अस्थिरता और असुरक्षा होती है। जबकि आत्म-संयम का अभ्यास शक्ति और आध्यात्मिक को बढ़ावा देता है।
सुंदर जीवन की ओर
आधुनिक मनोविज्ञान अध्ययन इस तथ्य को मानते हैं कि विलंबित संतोष अक्सर अधिक खुशी और सफलता की ओर ले जाता है। प्रसिद्ध ‘स्टैनफोर्ड मार्शमैलो टेस्ट’ में यह दिखाया गया कि वे बच्चे, जिन्होंने तत्काल प्रलोभन के प्रति उदासीनता व्यक्त की, भविष्य में उन्होंने अन्यों की तुलना में बेहतर परिणाम हासिल किए।
आत्म-संयम का पालन खुशी को नकारना नहीं है, बल्कि अपनी इच्छाओं को उच्च उद्देश्यों तक ले जाना का मार्ग है। ध्यान, प्रार्थना और आत्मचिंतन हमारी इच्छा नियंत्रण के प्रभावी साधन हैं। ऊर्जा को सार्थक लक्ष्यों और संबंधों की ओर निर्देशित करना, एक गहरे उद्देश्यपूर्ण संतोष को अनुभव करना है। इच्छाओं को नियंत्रित करके हम जीवन की सुंदरता को स्पष्टता और कृतज्ञता के साथ अनुभव कर सकते हैं।