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आस्था, संस्कृति और कुंभ

04:00 AM Feb 03, 2025 IST
आस्था  संस्कृति और कुंभ
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अरविंद जयतिलक

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कुंभ का आयोजन भारतीयों के लिए एक धार्मिक संस्कार और सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन भर नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और संसार को भारतीय मनीषियों के त्याग, तपस्या और बलिदान से परिचित कराने का अद्भुत अवसर भी है। उल्लेखनीय है कि प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक इन चारों स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष कुंभ महापर्व का आयोजन होता है। प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम, हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा और नासिक में गोदावरी के तट पर कुंभ महापर्व का आयोजन होता है। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को ‘कुंभ स्नान योग’ कहते हैं। स्कंद पुराण व वाल्मीकि रामायण में गंगा अवतरण का विशद व्याख्यान है। इन्हीं नदी घाटियों में ही आर्य सभ्यता पल्लवित और पुष्पित हुई।
प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए। आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से ही संबद्ध हैं। देश की एक बड़ी आबादी गंगा-यमुना जल से प्राणवान और ऊर्जावान है। कुंभ मेले और योग समेत भारत की कुल 14 धरोहरें मसलन छाऊ नृत्य, लद्दाख में बौद्ध भिक्षुओं का मंत्रोच्चारण, संकीर्तन-मणिपुर में गाने-नाचने की परंपरा, पंजाब में ठठेरों द्वारा तांबे व पीतल के बर्तन बनाने का तरीका और रामलीला इत्यादि यूनेस्को की सूची में शामिल हो चुकी हैं।
यूनेस्को ने कुंभ मेले को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल करने का जो तर्क दिया है उसके मुताबिक प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगने वाला कुंभ मेला धार्मिक उत्सव के तौर पर सहिष्णुता और समग्रता को रेखांकित करता है। यूनेस्को का कहना है कि यह कुंभ खासतौर पर समकालीन दुनिया के लिए अनमोल है। इतिहासकारों का मानना है कि हर्षवर्धन कुंभ मेले के दौरान ही दान महोत्सव का आयोजन करते थे। बाद में श्री आदि जगद्गुरु शंकराचार्य तथा उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की। ऐसी मान्यता है कि अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर 12 दिन तक निरंतर युद्ध हुआ। देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी 12 होते हैं। उनमें से 4 कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष 8 कुंभ देवलोक में होते हैं। कुंभ के लिए जो नियम निर्धारित है उसके अनुसार प्रयाग में कुंभ तब लगता है जब माघ अमावस्या के लिए सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में और गुरु मेष राशि में होता है।
साभार : लोकदस्तक डॉट कॉम

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