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आसमान को कूड़ाघर बनने से बचाएं

08:34 AM Sep 18, 2024 IST
आसमान को कूड़ाघर बनने से बचाएं
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वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली

जब भी साफ हवा, नीला आसमान, पृथ्वी दिवस, पर्यावरण दिवस जैसे अवसर आते हैं, तो हम पृथ्वी के हित में अपने दायित्वों की बात करते हैं। भाषणबाज़ी से अलग, पृथ्वी के हित में हम सबसे महत्वपूर्ण कदम यह उठा सकते हैं कि आसमान को कूड़ा घर न बनाएं। जगह-जगह विशाल कूड़े के पहाड़, लैंडफिल्स में आग लगना और कई दिनों तक घुटन भरा धुआं उगलना यह दर्शाता है कि कूड़ा सिर्फ जमीन पर नहीं, बल्कि आसमान में भी अपनी जगह बना रहा है। प्लास्टिक इस संदर्भ में एक बड़ा खलनायक है। जलने के साथ-साथ माइक्रो-प्लास्टिक के छोटे कण भी वायुमंडल में पहुंचते हैं।
हाल ही में एक आम दृश्य यह देखा जा रहा है कि लोग सड़कों पर पत्तियां इकट्ठा करके उन्हें जलाते हैं। चुनावी सामग्री का कूड़ा भी सड़कों पर फैल जाता है और उसे भी जला दिया जाता है। इस धुएं का आसमान में फैलना, हमें यह बताता है कि हम अपने कूड़े को सीधे आसमान में भेज रहे हैं।
देशभर में विकास की दौड़ में वायु गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है। निर्माण कार्यों, कोयला बिजली उत्पादन, और ईंट-भट्ठों से उड़ने वाली धूल और कणीय प्रदूषक वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। जब वायु गुणवत्ता खराब हो जाती है, तो धूल और कणीय प्रदूषकों को रोकने के लिए जाली व कपड़े की दीवारें लगाई जाती हैं। नगरों में कूड़ा जलाने वाले संयंत्र और सड़क सफाई की मशीनें भी वायु में प्रदूषकों का अम्बार छोड़ देती हैं।
वातावरण में धूल और कणीय प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव और एंटी-स्मॉग गन्स का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन अधिकांश राज्य सरकारें विशेषकर ठंड के मौसम में इन प्रदूषणों के खिलाफ प्रभावी कदम उठाने में असमर्थ रहती हैं। अंततः स्कूलों और कार्यालयों को बंद करना पड़ता है। राजनीतिक कारणों से निर्माण कार्यों और कूड़े के ढेर की अनदेखी होती है, जिससे प्रदूषण और बढ़ जाता है।
वायु में कणीय प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। इससे बीमारियों में वृद्धि होती है। ये कण पानी में भी जमते हैं और वहां से मिट्टी और घास में पहुंच जाते हैं, जो जानवरों के भोजन में भी शामिल हो जाते हैं। वैश्विक स्तर पर 90 प्रतिशत लोग प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं और हर साल वायु प्रदूषण के कारण लगभग 7.9 मिलियन लोग समय से पहले मर जाते हैं, खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में। अत्यंत महीन कणीय प्रदूषकों को नियंत्रित करना अत्यावश्यक है।
7 अक्तूबर, 2019 को यूरोप और अमेरिका के देशों ने एक साझा अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और अमोनिया जैसे प्रदूषकों के अलावा पीएम 2.5 कणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन को भी तय सीमा में बांधने का फैसला किया गया। हालांकि, कणीय प्रदूषण केवल भौतिक परिमाण से नहीं मापा जाता, उसकी रासायनिक प्रकृति भी महत्वपूर्ण होती है। प्लास्टिक, कागज और रबर जलने पर उनके कणीय प्रदूषक भी हवा में चले जाते हैं।
भारत में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण उच्चतम है, और इसके कारण तेजाबी बारिश होती है। पेड़ों की पत्तियों पर प्रदूषण बैठ जाता है और उन्हें नुकसान पहुंचाता है। आसमान को कूड़ाघर बनने से बचाने के लिए व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर सुधार आवश्यक हैं। सार्वजनिक परिवहन का उपयोग, वाहन ठीक रखना, और कूड़ा जलाने से बचना ये सभी व्यक्तिगत जिम्मेदारियां हैं।
दुनियाभर में बढ़ते ऊर्जा की मांग के कारण बड़े प्रदूषणकारी देश जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने के लिए तैयार नहीं हैं। भारत, जिसमें दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर शामिल हैं, भी कोयले के उत्पादन को बढ़ाने की योजना बना रहा है। इससे कणीय प्रदूषण और बढ़ेगा। नवीनतम खतरा माइक्रो-प्लास्टिक के वायुमंडल में पहुंचने का है। प्लास्टिक पर पाबंदी और इसके कम उपयोग से माइक्रो-प्लास्टिक भी कम होगा। हमें हताशा से बाहर निकलना होगा और अपनी आदतों में सुधार करना होगा। कूड़ा जलाने, पटाखे जलाने, धुआं छोड़ते वाहनों का उपयोग करने से बचना होगा। छोटे-छोटे बदलाव भी महत्वपूर्ण हैं, जैसे कूड़ा जलाने पर रोक और उचित कूड़ा प्रबंधन। प्राकृतिक कारणों से भी कणीय प्रदूषण बढ़ता है, जैसे आंधी-तूफान, खनन और ज्वालामुखी विस्फोट। पेड़ों की संख्या बढ़ाकर प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
अंततः, यदि हम कूड़ा करते रहें और सरकारों पर आरोप लगाते रहें कि वे प्रदूषण कम करने में असफल हैं, तो यह हमारे लिए हानिकारक होगा। हर व्यक्ति का जिम्मेदारी समझना जरूरी है ताकि प्रदूषित हवा की समस्या कम की जा सके। जैसे हम अपने जलस्त्रोतों को प्रदूषित नहीं करना चाहते, वैसे ही आसमान को भी प्रदूषण से बचाना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि प्रदूषण केवल एक राजनीतिक या सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर भी प्रभाव डालता है।

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