आध्यात्मिक संगम पर सनातन संस्कृति का महापर्व
महाकुंभ, सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा आध्यात्मिक संगम है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। यह विश्वभर के लाखों श्रद्धालुओं को अपने धर्म, संस्कृति और आस्था के अद्वितीय अनुभव से जोड़ता है। प्रयागराज के संगम पर आयोजित होने वाला यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानवता, आस्था और संस्कृति का जीवंत उदाहरण है, जो दुनिया भर के लोगों को प्रेरणा देता है।
मान्यता है कि ब्रह्मा ने प्रयागराज के गंगा और यमुना संगम पर स्थित दशाश्वमेध घाट पर अश्वमेध यज्ञ करके ब्रह्मांड का निर्माण किया था। इसीलिए सभी कुंभों में प्रयागराज कुंभ को विशेष स्थान प्राप्त है। महाकुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ-पर्व माना जाता है, जहां किसी को आमंत्रण देने की आवश्यकता नहीं होती है। करोड़ों लोग स्वतः महाकुंभ में डुबकी लगाकर पुण्य का भागीदार बन जाते हैं और मनुष्यता की सीख लेते हैं।
यूनेस्को ने 2017 में महाकुंभ को दुनिया की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर में शामिल किया है और संरक्षित किया है। महाकुंभ का सामाजिक संदेश प्रगाढ़ है और अनुकरणीय भी है। यह सभी मनुष्यों के कल्याण, सद्विचार और मानवता को मजबूत करने का अमूर्त संदेश देता है। मंत्रों का जाप, धर्मग्रंथों की पवित्र व्याख्याएं, भक्ति संगीत, पौराणिक कथाएं और पारंपरिक नृत्य लोगों को जोड़ते हैं, छोटे-बड़े के भेदभाव को समाप्त करते हैं। संतों और वैरागियों का नि:स्वार्थ जीवन और परमपिता परमेश्वर के प्रति समर्पण प्रेरणा बनते हैं।
महाकुंभ का उद्भव, विकास और महिमा भगवान श्रीविष्णु से जुड़ी हुई है। असुर शक्तियों की अराजक और हिंसक कहानी भी इसके पीछे है। जब-जब मनुष्यता की हानि होती है, संहार होता है और अराजकता पसरती है, तब-तब सत्यनिष्ठा और सदाचार स्थापित करने के लिए परमपिता परमेश्वर खुद परिस्थितियां पैदा करते हैं, खुद उपस्थित होकर प्रेरणा बनते हैं। भगवान श्रीराम के धनुष ने रावण का संहार कर मनुष्यता स्थापित की थी। इसी तरह श्रीकृष्ण ने क्रूर, हिंसक और आततायी कौरवों का संहार कर मानवता का संदेश दिया था।
इसी प्रकार भगवान श्रीविष्णु ने मानवता, राजकता और सृष्टि की अर्हता को अक्षुण्ण रखने के लिए असुर शक्तियों यानी राक्षसों को पराजित करने के लिए लीला रची थी। दुर्वासा ऋषि ने एक बार देवताओं को शाप दे दिया था। इस शाप के कारण देवताओं की शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी।
देवताओं को जब राक्षसों की हिंसक प्रवृत्तियों को रोकने का कोई उपाय नहीं दिखा, तो वे सभी श्रीविष्णु के पास पहुंचे। भगवान श्रीविष्णु ने देवताओं से कहा था कि अजर-अमर की शक्ति प्राप्त करने के लिए आपको समुद्र मंथन करना होगा, समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा और उस अमृतपान से आपकी शक्ति बढ़ेगी और राक्षसों का संहार होगा।
देवताओं ने इसके लिए राक्षसों से संधि कर ली थी और समुद्र मंथन साथ-साथ करने की नीति बनाई थी। श्रीविष्णु की कृपा से समुद्र मंथन के 12वें दिन अमृत निकला।
अमृत कलश पर अधिकार को लेकर राक्षसों और देवताओं के बीच युद्ध हुआ, यह युद्ध कई दिनों तक चला। देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार जगहों— प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में नदियों के बीच गिरी थीं। इसलिए भी गंगा सहित अन्य नदियां जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी मानी जाती हैं और जिनकी महानता मनुष्यता के लिए जीवंत बन गई है।
प्रश्न उठता है कि 12 साल के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन क्यों होता है? इसके पीछे तर्क और अर्हताएं क्या हैं? देवताओं के एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होते हैं। चूंकि समुद्र मंथन में बारह दिन लगे थे और फिर अमृत कलश प्राप्त हुआ, इसीलिए महाकुंभ 12 साल के बाद आयोजित होता है।
महाकुंभ की तिथियां कैसे निर्धारित होती हैं और महाकुंभ के दौरान हमारी अर्हताएं क्या-क्या होनी चाहिए? महाकुंभ की तिथियां निर्धारित करने के लिए ग्रहों की स्थितियां कसौटी पर होती हैं। सूर्य और बृहस्पति राशि की स्थिति का ध्यान रखना पड़ता है। सूर्य और बृहस्पति राशि दूसरी राशियों में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ की तिथियां निर्धारित होती हैं। जब बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य राशि मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में होता है। जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ का आयोजन हरिद्वार में होता है। लेकिन सूर्य और बृहस्पति का एक साथ सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब यह कुंभ नासिक में आयोजित होता है। जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ का आयोजन उज्जैन में होता है।
महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित होता है। यह 12 साल के बाद आयोजित होता है। अन्य प्रकार के कुंभ मेले भी होते हैं जिनके नाम पूर्ण कुंभ मेला, अर्ध कुंभ मेला, कुंभ मेला और माघ कुंभ मेला हैं। आज दुनियाभर में महाकुंभ को लेकर जिज्ञासाओं का समुद्र बन गया है, हर कोई जानना चाहता है कि महाकुंभ की संस्कृति और पुण्य कितना महान है, प्रेरणादायक है और मुक्ति प्रदान करने वाला है। महाकुंभ के दौरान मां गंगा में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है, जीवन में सत्यनिष्ठा को लेकर प्रेरणा मिलती है, सत्यकर्म के प्रति आशा जागती है, बुरे कर्मों से मुक्ति की धारणा बनती है, स्वच्छता और वसुधैव कुटुम्बकम् के प्रति प्रोत्साहन मिलता है।