आध्यात्मिकता, भव्यता और दिव्यता का विराट महासंगम
लोकमित्र गौतम
यकीन मानिए अगर आप महाकुंभ के विहंगम दृश्य से दो-चार होंगे, तो स्तब्ध रह जाएंगे। कुछ कहते-सुनते या व्यक्त करते ही नहीं बनेगा। महाकुंभ पर अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने यह टिप्पणी पहली बार कुंभ का औचक अहसास करने के बाद कही थी— ‘मीलों तक भगवा वसनों में लिपटे साधु-संतों की कतारें, प्रतिध्वनि का अहसास कराते उनके मंत्रोच्चार, जहां तक नजरें देख सकती हैं, वहां तक फैला जन सैलाब, यह एक ऐसा लैंडस्केप होता है, जो कुंभ के अलावा आप कहीं नहीं देख सकते।’ शायद यही वजह है कि जितने भी विदेशी लेखकों, सैलानियों और विभिन्न क्षेत्रों के महान व्यक्तित्वों ने कुंभ को देखा है, उनके लिए इसका वर्णन अनिवर्चनीय-सा रहा है।
ह्वेनसांग का दृष्टिकोण
ह्वेनसांग जैसा बेहद तटस्थ यात्री जिसने पहली बार 7वीं शताब्दी में भारत का विस्तार से ‘फर्स्ट हैंड एकाउंट’ दर्ज किया था, वह भी महाकुंभ को देखकर अचंभित और अभिभूत रह गया था। उसने लिखा है कि धार्मिक भक्ति का यह आयोजन अद्वितीय है।
अमेरिकी कवि और लेखक एलन गिंसबर्ग ने महाकुंभ के अनुभव को व्यक्त न किया जा सकने वाला अद्वितीय अनुभव बताया है। वे कहते हैं इससे भारतीय संस्कृति की गहराई और आध्यात्मिकता का अहसास किया जा सकता है। मार्क ट्वेन तो पत्रकार भी थे और वह किसी चीज का महिमामंडन करने से बचते थे। अपनी संतुलित रिपोर्टों के लिए जाने जाने वाले मार्क ट्वेन ने महाकुंभ को लेकर लिखा है, ‘इसमें बिना किसी दिखावे के आध्यात्मिक उद्देश्य से जितनी विशाल संख्या में लोग आते हैं, वह आश्चर्यचकित करती है।’ शायद महाकुंभ इंसानी भावनाओं और कल्पनाओं को पराकाष्ठा की हद तक झकझोर देने वाला अनुभव होता है।
विराटता व भव्यता का प्रभाव
जो भी व्यक्ति पहली बार साक्षात कुंभ से दो-चार होता है तो उसकी विराटता और भव्यता को देखकर रोमांच से अभिभूत हो जाता है, तब वह इस पर कोई टिप्पणी कर सकने की स्थिति में नहीं रहता। महाकुंभ सचमुच बेहद गहन और अद्वितीय अनुभव है। पहली बार महाकुंभ को अपनी आंखों से देखने वाले किसी व्यक्ति ने इतनी बड़ी भीड़ नहीं देखी होती और वह भी बिल्कुल ठहरी हुई, बिना किसी उग्रता, बिना किसी बेचैनी के श्रद्धा और भक्ति में डूबी हुई। खासकर जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है, तो वह भावनाओं को तो आह्लादित करता ही है, आंखों को भी आश्चर्य में फैल जाने को मजबूर कर देता है।
आध्यात्मिक वातावरण
महाकुंभ का वातावरण इतना भाव और भक्तिपूर्ण, आध्यात्मिकता से ओतप्रोत होता है कि उसके वर्णन के लिए ठीक-ठीक शब्द नहीं मिलते। बस आप भावनाओं की दिव्यता और भव्यता से पुलकित भर होते रहते हैं। अगर कहें कि यह दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला है तो यह इसको पूरी तरह से नहीं व्यक्त करेगा।
अलौकिक अनुभव
जब आप पहली बार कुंभ में डुबकी लगाते हैं, तो पता नहीं वह कौन-सा ऐसा मनोविज्ञान है कि आप बेहद हल्कापन का अहसास करते हैं। लगता है वाकई शरीर का सैकड़ों मन का बोझ डुबकी लगाते ही पानी में बह गया। कुंभ में स्नान करते ही मन और शरीर एक अलौकिक किस्म की दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। महाकुंभ के दौरान आंखों के अनंत छोर तक साधु-संतों को देखना, उनके स्थिरप्रज्ञ वचनों को सुनना, जीवन को विराट रहस्य से भर देता है। सामूहिकता का इससे बड़ा अहसास शायद ही कहीं और देखने को मिलता हो, जितना बड़ा अहसास महाकुंभ में होता है। लगता है महाकुंभ में धर्म और प्रकृति आपस में घुल मिल गए हों।
आध्यात्मिकता का सुरूर
महाकुंभ की भीड़ में आध्यात्मिकता का एक अदृश्य सुरूर का अहसास होता है। शायद यही वजह है कि हर 12 साल बाद हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में लगने वाले महाकुंभ में शामिल होने के लिए दुनिया के कोने-कोने से करोड़ों हिंदू तो आते ही हैं, अब लगातार उन विदेशी पर्यटकों की संख्या भी हर गुजरते साल के साथ बढ़ती जा रही है, जो इसमें आध्यात्मिकता के पुलकभरे अहसास को महसूस करने के लिए आते हैं।
पौराणिक पृष्ठभूमि
हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में जो समुद्र मंथन की कथा मिलती है, उसी मंथन से निकले अमृत कलश को दैत्यों से बचाने के लिए जब देवता लेकर आकाश मार्ग से भागते हैं तो छीना-झपटी में जिन चार जगहों में अमृत की बूंदें टपक गई थीं, उन्हीं जगहों पर हर 12 साल बाद पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। ये चार जगहें हैं- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इसका उल्लेख कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलता है। भागवत पुराण, विष्णु पुराण, रामायण और महाभारत में कुंभ का वर्णन मिलता है। इससे इतना तो तय है कि कम से कम पांच हजार सालों से तो अध्यात्म का यह मेला निरंतर आयोजित हो रहा है। सनातन परंपरा का यह आध्यात्मिक आख्यान, जिसे हम महाकुंभ कहते हैं, चिर नूतन है। इ. रि.सें.