आदर्शों से प्रेरणा
पारसी धर्म के पैगंबर माने जाने वाले ज़रतुष्ट्र शिक्षा प्राप्त करके विद्वान बन गए थे। उनके गुरु उनसे न केवल प्रसन्न थे, बल्कि उन्हें शिष्य के रूप में पाकर अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते थे। उनकी सफलताओं से प्रसन्न होकर उनके पिता पुरुशस्पा ने उनसे पूछा, ‘मेरी कौन-सी संपत्ति चाहते हो? मांग लो।’ ज़रतुष्ट्र बोले, ‘पिताजी! अपना कमरबंद दे दें।’ पुरुशस्पा आश्चर्य में पड़ गए, मूल्यवान संपदाओं को छोड़कर सामान्य कमरबंद मांगा। पूछा, ‘ऐसा क्यों?’ ज़रतुष्ट्र ने कहा, ‘आपने जीवन भर आदर्शों के लिए कमर कसकर पुरुषार्थ किया है। शैतान के विरुद्ध देवत्व की विजय सुनिश्चित करने के अभियान मे मुझे लगना है। आपका कमरबंद मेरा आत्मविश्वास बढ़ाता है।’ पिता को विश्वास हो गया, साधनों की अपेक्षा आदर्शों को मूल्यवान समझने वाला यह होनहार बालक अवश्य महान बनेगा।
प्रस्तुति : नीता देवी