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आठ दिन के नवरात्र का आध्यात्मिक महत्व

04:05 AM Mar 24, 2025 IST

धार्मिक विद्वानों के मुताबिक़ आठ दिन के नवरात्र विशेष रूप से फलदायी होते हैं। इनमें देवी की कृपा अधिक तेजी से प्राप्त होती है। इस दौरान किए गए व्रत, हवन, कन्या पूजन और साधना का विशेष फल मिलता है।

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आरसी शर्मा
चैत्र मास के नवरात्रों की हिंदू धर्म में विशेष रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता है। हालांकि, भाषा और व्याकरण की दृष्टि से देखें तो ‘नवरात्रि’ शब्द सही है; क्योंकि संस्कृत में यही शब्द है। लेकिन हिंदी में ‘नवरात्र’ शब्द ही ज्यादा प्रचलित व स्वीकार्य है। इसलिए आम बोलचाल में ही नहीं बल्कि आम लेखन में भी ‘नवरात्रि’ की बजाय ‘नवरात्र’ शब्द का ही चलन ज्यादा है।
आठ दिन होंगे नवरात्र
इस बार अष्टमी और नवमी तिथियां एक ही दिन पड़ रही हैं, इसलिए चैत्र नवरात्र 8 दिन के होंगे। जब नौ दिन के नवरात्र आठ दिन में ही समाप्त हो जाते हैं, तो इसे क्षय नवरात्र कहा जाता है। यह तब होता है जब किसी तिथि का क्षय (लुप्त) हो जाता है यानी कोई एक तिथि सूर्योदय के अनुसार गणना में लुप्त हो जाती है। इसका निश्चित ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व होता है। चूंकि हिंदू पंचांग में तिथियां चंद्र मास के आधार पर निर्धारित होती हैं। ऐसे में कभी-कभी कोई एक तिथि इतनी जल्दी समाप्त हो जाती है कि वह सूर्योदय के समय उपलब्ध नहीं होती, इसे क्षय तिथि कहा जाता है। जब नवरात्र में ऐसा हो जाता है तो फिर नवरात्र आठ दिन में ही समाप्त हो जाते हैं। इस साल आठवीं तिथि का क्षय हो रहा है इसलिए वह नवीं तिथि में ही शामिल हो गयी है।
आध्यात्मिक महत्व
माना जाता है कि आठ दिनों में नवरात्र समाप्त होने पर सभी नौ शक्तियों की पूजा संक्षिप्त रूप में संपन्न हो जाती है। इसलिए कुछ धार्मिक विद्वानों के मुताबिक़ आठ दिन के नवरात्र विशेष रूप से फलदायी होते हैं। इनमें देवी की कृपा अधिक तेजी से प्राप्त होती है। इस दौरान किए गए व्रत, हवन, कन्या पूजन और साधना का विशेष फल मिलता है। आमतौर पर अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन किया जाता है, लेकिन जब नवरात्र आठ दिन में समाप्त हो जाता है, तो अष्टमी को ही नवमी मानकर कन्या पूजन किया जाता है। इस स्थिति में कुछ स्थानों पर एक ही दिन अष्टमी और नवमी का हवन और पूजन किया जाता है। इसलिए इसे एक विशिष्ट योग समझा जाता है। इसलिए यदि नवरात्र आठ दिन में समाप्त हो रहे हों, तो साधकों को संपूर्ण श्रद्धा और नियमों के अनुसार पूजा करनी चाहिए ताकि आठ दिनों में ही सभी नौ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
तन, मन और आध्यात्मिक कल्याण
नवरात्र व्रत रखने से न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है बल्कि मानसिक और शारीरिक मजबूती और प्रखरता भी आती है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों— शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। जब आठ दिन के नवरात्र हों तो यही पूजा आठ दिनों में की जानी चाहिए। नवरात्र का पूरा समय आध्यात्मिक साधना, उपवास और आत्मशुद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
भगवान श्रीराम का जन्म
चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। इसलिए चैत्र नवरात्र की नवमी तिथि को विष्णु भक्ति और शक्ति उपासना दोनों से जोड़ा जाता है।
कृषि और प्रकृति से जुड़ाव
नवरात्र का समय वसंत ऋतु का प्रारंभ होता है, जो फसलों के कटाई और नए कृषि चक्र की शुरुआत का भी प्रतीक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस दौरान विशेष मेलों और उत्सवों का आयोजन होता है। संगीत, नृत्य और रामलीलाओं का मंचन भी होता है।
स्वास्थ्य संबंधी महत्व
चैत्र माह में जब नवरात्र होते हैं, वह ऋतु परिवर्तन का समय होता है, इसलिए आयुर्वेद के अनुसार इन दिनों व्रत या उपवास करना शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक होता है। इस तरह चैत्र नवरात्र केवल देवी उपासना का समय ही नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक परिवर्तन का भी प्रतीक है। यह भारतीय परंपरा, सनातन संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लोगों को आत्मिक शुद्धि, नई ऊर्जा और सकारात्मकता प्रदान करता है। इ.रि.सें.

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