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आग कोई भी हो, बुझनी चाहिए

04:00 AM Jan 18, 2025 IST

सहीराम

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देखो जी, वैसे तो सर्दी का मौसम है और सिर्फ कहने के लिए ही सर्दी का मौसम नहीं है बल्कि सच में कड़ाके की सर्दी पड़ भी रही है। इसलिए मौसम तो यह आग जलाकर बैठने, अलाव जलाकर आग तापने का ही है। एक जमाना था जब सर्दी के मौसम में उत्तर भारत में सार्वजनिक अलाव जलाने की व्यवस्था भी होती थी। लेकिन एक तो जमाना बदल गया और दूसरे जब बाजार में ही आग लगी हो तो अलाव जलाने की जरूरत ही क्या है। यह ऐसी आग है जनाब कि लोग अलाव जलाकर सर्दी भगाने का उपाय भूले जा रहे हैं।
सच पूछो तो जी, बाजार में लगी आग, अलावों की आग को ही नहीं, चूल्हों की आग को भी बुझाए दे रही है। नहीं, ऐसी कोई शर्त नहीं है कि या तो बाजार की आग रहेगी या चूल्हों की आग रहेगी। लेकिन अगर सच में ऐसी कोई शर्त हो तो लोगों के लिए चुनना बड़ा आसान हो जाएगा। वे कहेंगे कि चूल्हों की आग ही रहे बस। बाजार की आग किसे चाहिए बताओ। लेकिन दुर्भाग्य यही है कि चूल्हों की आग सलामत नहीं है। उस पर महंगाई का पानी पड़ रहा है। इतना कि कंगाली में आटा गीला होने वाली बात हो रही है। बिना रोजगार तो कंगाली ही समझो ना।
तो जनाब, उधर अमेरिका में जंगल में आग लगी है और इधर अपने यहां लोगों को पेट की आग सता रही है। वैसे हमारे यहां तो अफवाहें ही जंगल की आग की तरह से फैलती हैं। अब फेक न्यूज और पार्टियों के आईटी सेलों ने इस आग में और घी डालना शुरू कर दिया है। बहरहाल, समस्या यह है कि न वह आग बुझ रही है और न ही यह आग बुझ रही है। अमेरिका के जंगलों में तो ऐसी आग लगी है कि खुद हॉलीवुड के लिए ही खतरा पैदा हो गया है। हमारे बॉलीवुड के लिए तो साउथ की फिल्में ही खतरा बन गयी। साउथ वाली फिल्में हजार-हजार करोड़ के बिजनेस कर रही हैं और बॉलीवुड वाली फिल्में पिट रही हैं।
खैर, वो हमारी समस्या है। अमेरिका की समस्या तो कैलिफोर्निया में लगी आग है, जिसकी चपेट में अब तक सुना है कि कई सेलिब्रिटीज के घर आ चुके हैं और जलकर खाक हो चुके हैं। लेकिन जी, सेलिब्रिटीज भी नेताओं और सेठों की तरह ही होते हैं, वे आपदा में भी अवसर ढ़ूंढ़ लेते हैं। लेकिन हमारे यहां जो बाजार में आग लगी है, उस आपदा से कैसे पार पाया जाए। महंगाई कैसे कम हो। सब्जियां कैसे उपलब्ध हांे। दाल-रोटी कैसे चले। सवाल है कि गरीब के पेट की आग कैसे बुझायी जाए और चूल्हों की बुझी आग फिर से कैसे जलायी जाए। न बाजार में लगी आग अच्छी, न समाज को जलाने वाली आग अच्छी। आग तो वही अच्छी, जो चूल्हे में जले। कि मैं झूठ बोलिया!

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