आखिर कब तक साथ सुलाएं नौनिहाल को
छोटे बच्चों की सुरक्षा, फीड देने में आसानी और बेहतर बॉन्डिंग जैसे कई कारण हैं जिनके चलते माता-पिता के साथ अक्सर उन्हें अपने बेड पर ही सुलाते हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के साथ लंबे समय तक बेड शेयरिंग नहीं करनी चाहिए। वे प्राइवेसी, आरामदायक नींद और संक्रमण के जोखिम के चलते अलग कमरे व बेड पर सुलाने को बेहतर मानते हैं।
नीलम अरोड़ा
हमारे देश में ही नहीं, दुनिया के कई और देशों में भी बच्चों को काफी उम्र तक माता-पिता अपने साथ सुलाते हैं। उनका मानना होता है कि इससे बच्चों की माता-पिता के साथ बॉन्डिंग ज्यादा गहरी होती है। बच्चे स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं और पैरेंट्स भी उनकी सुरक्षा के विषय में निश्चिंत रहते हैं। कई माता-पिता अपने बेडरूम में ही बच्चों को एक ही पलंग पर सुलाते हैं, तो उनके लिए अलग बेड की व्यवस्था करते हैं। ज्यादातर पश्चिमी देशों में बच्चों को शुरू से ही अलग सुलाया जाता है, जिसमें सबसे बड़ी वजह बच्चों को बेहतर नींद आये और माता-पिता की प्राइवेसी में भी खलल न पड़े।
भावनात्मक सुरक्षा और विकास
बच्चों को साथ सुलाने के कई फायदे होते हैं। इससे उनको भावनात्मक सुरक्षा तो मिलती ही है, जब वो साथ सोते हैं तो कम रोते हैं और कम तनावग्रस्त होते हैं। उनका शारीरिक विकास भी बेहतर होता है। क्योंकि अलग सोने वाले बच्चों की तुलना में वे ज्यादा अच्छी तरह से ब्रेस्ट फीड लेते हैं। खुश रहने, कम तनाव होने और स्वस्थ रहने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी इजाफा होता है। माता-पिता जब बच्चों को अपने साथ सुलाते हैं तो चूंकि वे उनकी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होते हैं, उन्हें भी अच्छी नींद आती है। बच्चों के साथ उनके रिश्ते मजबूत होते हैं। एक-दूसरे के करीब होने के कारण वे एक दूसरे की शारीरिक और मानसिक जरूरतों को ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं। बच्चों के साथ सोने से माता-पिता के बीच भी अच्छी अंडरस्टेंडिंग बनती है, क्योंकि दोनों ही एक-दूसरे को इस तरीके से ज्यादा समय देते हैं। साथ में सुलाने से बच्चों की देखभाल करना, उनकी किसी भी तरह की जरूरत को समझना उनके लिए ज्यादा सुविधाजनक होता है।
अलग कब सुलाएं नौनिहाल को
इस विषय में कोई सटीक जवाब नहीं दिया जा सकता। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को 6 महीने के बाद अलग सुलाना चाहिए। जबकि कुछ का मानना यह है कि बच्चे जब दो या तीन साल के हो जाते हैं तो पेरेंट्स को अपनी प्राइवेसी मेंटेन करने के लिए उन्हें अपने से अलग सुलाना चाहिए। कुछ बालरोग विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के साथ लंबे समय तक बेड शेयरिंग नहीं करनी चाहिए। खास तौरपर बच्चे जब छोटे हों। क्योंकि नींद में बच्चों की स्थिति का पता नहीं चलता और यदि माता-पिता को कोई संक्रामक रोग है तो इसका भी असर बच्चे पर पड़ता है। यदि दोनों पेरेंट्स या दोनों में से कोई एक शराब या सिगरेट पीता है और ज्यादा छोटे बच्चे के साथ सोते हैं तो इसका बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। यदि बच्चा प्री-मैच्योर है तो उसे मां को अपने साथ सुलाना चाहिए। बच्चे को एक ही बिस्तर पर सुलाने से जगह कम होने के कारण उनके गिरने की भी आशंका रहती है और इससे कपल की लव लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है।
अकेले सोने की डालें आदत
यदि बच्चों को लंबे समय तक अपने साथ सुलाया जाए तो एक समय के बाद उन्हें अकेले सोने में डर लगता है और उनकी इस आदत को बदलना मुश्किल हो जाता है। अगर आप भी अपने बच्चों को अपने साथ सुलाते हैं तो इस बात का खास ख्याल रखें कि आपका बिस्तर कितना लंबा-चौड़ा है और बच्चे के लिए इसमें पर्याप्त स्थान है या नहीं। क्योंकि इससे बच्चे के गिरने या दबने की भी आशंका रहती है। अगर बच्चे का माता-पिता के साथ ज्यादा भावनात्मक जुड़ाव हो तो उसे धीरे-धीरे अपने से अलग सुलाने की आदत डालनी चाहिए।
ताकि नींद में न आये बाधा
साथ सुलाने में माता-पिता की ही नहीं, बच्चे की नींद भी बाधित होती है। क्योंकि कई बार बच्चों की हरकतों, खर्राटों या देर रात तक जागने, दिन में सोने के कारण, रात में नींद न आने के कारण दिनभर काम के थके माता-पिता की नींद पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए इस बारे में उचित यही है कि उसके लिए अपने ही कमरे में अलग बेड की व्यवस्था पहली बार करने के बाद धीरे-धीरे उसे अपने साथ के अलग कमरे में सुलाना चाहिए। लेकिन उसका कमरा ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए। क्योंकि रात के समय जब उसे आपकी जरूरत हो तो आप उसके लिए हाजिर हो सकें। इ.रि.सें.