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अलविदा : 2024 सियासी दलों को सबक के साथ खट्ठे-मीठे अनुभव दे गया गुजरता साल

04:13 AM Dec 30, 2024 IST
अलविदा   2024  सियासी दलों को सबक के साथ खट्ठे मीठे अनुभव दे गया गुजरता साल
सीएम नायब सैनी।
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यूचंडीगढ़, 29 दिसंबर
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हरियाणा के लिए 2024 राजनीतिक उठापठक वाला साल रहा। साल की शुरूआत ही सियासी उलटफेर से हुई। हालांकि जनवरी और फरवरी का महीना मनोहर सरकार ने बजट की तैयारियों में बीता दिया। भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने पांचवां और मनोहर सरकार ने अपना दसवां बजट पेश किया। 12 मार्च को एकाएक मनोहर लाल ने कैबिनेट और विधायक दल की बैठक बुलाकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस के लिए नये साल की शुरूआत गजब की रही। इसके नतीजे भी मई में हुए लोकसभा चुनावों में देखने को मिले। कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए प्रदेश में लोकसभा की 10 में से पांच सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेसियों का मनोबल तो बढ़ा लेकिन वे इस जीत को बरकरार नहीं रखे सके। आत्मविश्वास में इस कदर लबरेज हुए कि अक्तूबर के विधानसभा चुनावों में औधे मुंह आकर गिरे। तमाम पॉजिटिव सियासी माहौल के बावजूद कांग्रेस लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर हो गई।

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सालभर राजनीतिक दलों में नेताओं का आना-जाना भी लगा रहा। बरसों के बाद यह पहला मौका था जब सत्तारूढ़ भाजपा में ही बड़ी भगदड़ मची हुई दिखी। हालांकि लोकसभा चुनावों के बाद और फिर विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने की वजह से भाजपा छोड़कर कांग्रेस का ‘हाथ’ थामने वाले अब हाथ ही मल रहे हैं। उन्हें भी इस बात का आभास नहीं था कि भाजपा तीसरी बार और वह भी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएगी।

इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी ने भी करीब साढ़े चार वर्षों तक भाजपा के साथ मिलकर सत्ता का सुख भोगा लेकिन 2024 की शुरूआत जजपा के लिए भी कांटों भरी डगर बन गई। वहीं इनेलो के सामने पहले की तरह वजूद बचाए रखने की चुनौती बनी रही। नई दिल्ली और पंजाब में सत्तासीन आम आदमी पार्टी का हरियाणा में खाता खोलने का सपना इस बार भी सिरे नहीं चढ़ पाया। इनेलो ने मायावती के नेतृत्व वाली बसपा के हाथी की सवारी भी की लेकिन बात नहीं बन पाई।

अहम बात यह है कि साल की शुरूआत से लेकर आखिर तक कांग्रेस संविधान बचाने और इसके नाम पर एससी वोटर को लामबंद करने की कोशिश में जुटी रही। बेशक, लोकसभा चुनावों में यह लामबंदी कांग्रेस के काम आई, लेकिन विधानसभा चुनावों में भाजपा अपनी सधी हुई चुनावी रणनीति के तहत इस बड़े वोट बैंक में भी सेंधमारी में कामयाब रही। बहरहाल, अब अगले साल की शुरूआत निकायों – नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पालिकाओं के चुनावों से होगी लेकिन कांग्रेस का टूटा मनोबल एक बार फिर भाजपा के हौसले बुलंद कर रहा है।

मनोहर गए, नायब आए

2014 के विधानसभा चुनावों ने भाजपा ने 47 सीटों के पूर्ण बहुमत के साथ पहली बार हरियाणा में सरकार बनाई। मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2019 में भी उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव हुए और भाजपा फिर से सत्ता में आई। 12 मार्च, 2024 को नाटकीय घटनाक्रम में मनोहर लाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह उसी दिन नायब सिंह सैनी ने सीएम पद की शपथ ग्रहण की। मनोहर लाल ने करनाल से लोकसभा चुनाव लड़ा और वे मोदी सरकार में बिजली, शहरी विकास एवं आवास मंत्री बने। हालांकि मनोहर लाल का प्रभाव हरियाणा में पहले की तरह बना रहा। विधानसभा चुनावों में उनका टिकट आवंटन कामयाब रहा। साथ ही, साढ़े नौ वर्षों की सरकार में उनकी नीतियों पर भी लोगों ने इस बार के चुनाव में मुहर लगा दी। ऐसे में सीएम पद छोड़ने के बाद भी केंद्र में उनका कद बढ़ गया। वहीं इस घटनाक्रम से करीब पांच माह पूर्व भाजपा अध्यक्ष बने नायब सिंह सैनी की बैठे-बिठाए लॉटरी लग गई। वे सूबे के सीएम बन गए।

साढ़े 4 साल की दोस्ती टूटी

2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 40 सीटों पर जीत हासिल की थी। सरकार गठन के लिए 46 विधायक चाहिए थे। इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जजपा ने 10 सीटों पर जीत हासिल की। ऐसे में जजपा के साथ गठबंधन में सरकार का गठन किया गया। करीब साढ़े चार वर्षों तक गठबंधन सरकार चली और दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री रहे। 12 मार्च को मनोहर लाल के साथ पूरी कैबिनेट के इस्तीफे के साथ ही गठबंधन भी टूट गया। इसके बाद लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनावों में जजपा को बुरी हार का मुंह देखना पड़ा। 2019 में दस सीटों पर जीत दर्ज करने वाली जजपा इस बार के विधानसभा चुनावों में अधिकांश सीटों पर जमानत भी खो बैठी।

कांग्रेस में गुटबाजी ही हावी

हरियाणा कांग्रेस के नेताओं के बीच की गुटबाजी और आपसी खींचतान को 2024 भी मिटा नहीं पाया। अलबत्ता नेताओं के बीच दूरियां बढ़ गई और रिश्तों की कड़वड़ाहट भी बढ़ती चली गई। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत हासिल क्या की, इसके नेताओं के बातचीत करने का तरीका और वर्किंग स्टाइल पूरी तरह से बदल गया। सीधे मुंह बात करना बंद सा कर दिया। जीत का खुमार इस कदर हावी रहा कि टिकट आवंटन से लेकर पार्टी के ही नेताओं के प्रति हीन भावना सिर चढ़कर बोलने लगी। नतीजतन, पॉजिटिव माहौल विधानसभा चुनावों के मतदान से सप्ताह-दस दिन में ही नेगेटिव होता चला गया। वैसे भी जितनी सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया, उसके हिसाब से बेहतरीन नतीजे भी मिले। बागियों को समझाने या मनाने की कोशिश भी ना के बराबर ही हुई। सो, बागियों ने एकाध नहीं बल्कि एक दर्जन से अधिक सीटों पर कांग्रेस का गेम बिगाड़ दिया।

किरण गईं, सैलजा रूठी रहीं

कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल रहीं पूर्व मंत्री व चौ़ बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी ने भी हालातों के सामने बेबस होकर कांग्रेस को अलविदा बोल दिया। लोकसभा चुनावों में उनकी बेटी व पूर्व सांसद श्रुति चौधरी टिकट काट दिया। नतीजों के बाद किरण व श्रुति ने भाजपा ज्वाइन कर ली। भाजपा ने चौ़ बंसीलाल के प्रभाव को समझा। किरण को राज्यसभा भेजा और फिर श्रुति को तोशाम से चुनाव लड़वाया। श्रुति विधायक बन गईं और नायब सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनने का मौका भी मिल गया। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री व सिरसा सांसद कुमारी सैलजा की अनदेखी, उनके प्रति की गई जातिगत टिप्पणी का असर यह हुआ कि एससी वोट बैंक में सेंधमारी हो गई। सैलजा की नाराजगी कांग्रेस पर इस कदर भारी पड़ी कि पार्टी सत्ता से दूर हो गई। महज एक-दो टिकट की जिद ने पूरा गेम बिगाड़ दिया।

दिग्गजों को मिला झटका

2024 दिग्गज नेताओं के लिए झटके वाला भी रहा। पहले मनोहर और फिर नायब सरकार के अधिकांश मंत्री चुनाव हार गए। केवल अनिल विज और महीपाल ढांडा ही अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। इनेलो प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला खुद ऐलनाबाद हलके से कांग्रेस के भरत सिंह बेनीवाल के हाथों चुनाव हार गए। भूतपूर्व सीएम चौ़ भजनलाल का गढ़ भी पांच दशकों के बाद ढह गया। आदमपुर में भजनलाल परिवार को कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा था, लेकिन इस बार आईएएस सेवाओं से सेवानिवृत्त और पहली बार चुनावी मैदान में उतरे चंद्र प्रकाश ने भजनलाल के पोते और कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को परिवार की परंपरागत सीट पर ही पटकनी दे दी। अब भजनलाल का परिवार भी राजनीतिक वजूद की लड़ाई लड़ रहा है।

तीन भूतपूर्व सीएम के वंशज आगे बढ़े

हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री रहे राव बीरेंद्र सिंह की पोती व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव के विधानसभा पहुंचने का सपना भी इस बार साकार हो गया। भाजपा ने उन्हें अटेली से टिकट दिया था। आरती राव अब नायब सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं। वहीं भूतपूर्व सीएम चौ़ बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी तोशाम से विधायक हैं और नायब सरकार में सिंचाई तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं। तीसरे भूतपूर्व मुख्यमंत्री चौ़ ओमप्रकाश चौटाला हैं, जिनके बेटे अभय चौटाला तो चुनाव हार गए। लेकिन उनके पोते अर्जुन चौटाला ने रानियां से चुनाव लड़कर पहली बार विधानसभा में कदम रखा है।

पहले अध्यक्ष फिर सुप्रीमो खोया

इनेलो के लिए यह साल बड़े झटकों वाला रहा। राजनीतिक तौर पर इनेलो 2005 के बाद से ही सत्ता से दूर है। इस साल पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नफे सिंह राठी का मर्डर हो गया। यह पार्टी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था। साल के आखिरी दिनों में इनेलो ने अपने सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को भी खो दिया। 89 वर्ष की उम्र में चौटाला का निधन हो गया। ‘सरकार आपके द्वार’ जैसे कार्यक्रम के जनक रहे चौटाला की गिनती अच्छे और कड़क प्रशासकों में होती थी। वे ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो सरकारी खजाने को लेकर सबसे सजग रहे। सत्ता में रहते हुए अधिकांश सरप्लस बजट पेश करने वाले चौटाला अपने सभी वर्करों को नाम से पुकारा करते थे। उनका जाना इनेलो के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है।

अब जजपा के सामने चुनौती

चौटाला व इनेलो परिवार में वर्चस्व की जंग के चलते ही पार्टी और परिवार में बिखराव हुआ। 2018 में हुआ बिखराव 2019 में नई पार्टी के गठन का कारण बन गया। ओपी चौटाला के ज्येष्ठ पुत्र अजय सिंह चौटाला ने जननायक जनता पार्टी बना ली। अपने बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला को इसका नेतृत्व सौंपा। दुष्यंत चूंकि नये थे और उर्जावान भी। सो, प्रदेश के लोगों और इनेलो के पुराने वोटर ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। 2019 के विधानसभा चुनावों में 10 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा को जरूरत हुई तो गठबंधन में सरकार चलाने का मौका भी मिल गया। लेकिन पहले 2014 के लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को तगड़ा झटका दिया। अब जजपा के सामने भी इनेलो की तरह ही वजूद बचाए रखने की चुनौती है। हालांकि दुष्यंत की उम्र उनके साथ है। लेकिन पार्टी का अस्तित्व उनके आगे के फैसलों और कार्यशैली पर निर्भर करेगा।

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