For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

अन्याय से सीढ़ियां

04:00 AM Jul 16, 2025 IST
अन्याय से सीढ़ियां
Advertisement

एक दिन कर्ण, मन में गहरे दर्द और अन्याय की टीस लिए भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। उनकी आंखों में आक्रोश और मन में पीड़ा थी। उन्होंने कहा, ‘हे मधुसूदन! जन्म लेते ही मां ने त्याग दिया। गुरु द्रोण ने शिक्षा देने से मना कर दिया। द्रौपदी के स्वयंवर से मुझे अपमानित करके भगा दिया गया। पिता कहलाने वाला व्यक्ति जीवनभर छिपा रहा। क्या मेरा कसूर सिर्फ यह था कि मैं सूतपुत्र था?’ कृष्ण मुस्कराए, कर्ण की आंखों में गहराई से देखा और शांत स्वर में बोले, ‘हे सूर्यपुत्र! तेरा दर्द तेरा है, पर सुन मेरी भी कहानी। मेरा जन्म ही जेल में हुआ। जन्म लेते ही मां-बाप से अलग कर दिया गया। मैंने गायें चराईं, गोबर उठाया। मेरा सगा मामा मेरी जान का दुश्मन था। बचपन से मृत्यु की छाया में पला। तेरी तरह मेरी भी चुनौतियां कम नहीं थीं। मेरे जीवन में भी अन्याय की कमी नहीं थी, पर अंतर यह था कि तू बीते कल की कड़वाहट में जीता रहा, और मैंने हर अन्याय का उत्तर अपनी कर्मभूमि से दिया।’ कृष्ण आगे बोले, ‘प्रश्न यह नहीं है कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ या नहीं। प्रश्न यह है कि तुम उस अन्याय का उत्तर कैसे देते हो।’ कर्ण मौन रह गया। अब वह केवल सूतपुत्र नहीं रहा, वह एक उत्तर की तलाश में व्यक्ति बन गया। जीवन में सभी के हिस्से संघर्ष और अन्याय आते हैं, फर्क सिर्फ इतना होता है कोई उन्हें बहाने बना लेता है, और कोई सीढ़ियां।

Advertisement

प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा

Advertisement
Advertisement
Advertisement