अनुभव के सूत्रों की कविताएं
योगेश्वर कौर
समीक्षाधीन कृति ‘आईना बोलता है’, राजस्थान से संबद्ध रचनाकार हलीम आईना की छोटी-बड़ी कविताओं का पठनीय संग्रह है।
हलीम आईना की प्रस्तुत रचना में कवि के अनुभव और अध्ययन के सूत्र शामिल हैं, जो उनकी रचनात्मकता को संपन्न बना रहे हैं। आज हर प्रांत में रेडियो-दूरदर्शन पर जा आने, छा जाने की सुविधा है। हलीम आईना भी इस दृष्टि से सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें मंच मिलता रहा है।
आईना बोलता है की भूमिका में गिरीश पंकज ने सत्य वचन कहे हैं तो फारूख आफरीदी ने अभिमत देकर रचनाकार को प्रोत्साहित किया है। आज देश, समाज, शहर और व्यक्ति ही नहीं हमारा संघर्ष और विद्रूपताएं, इस कदर छा रही हैं कि उनका सामना करते हुए रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति दे रहे हैं। प्रस्तुत संग्रह में आईना बोलता है, तो समाज के कान भी खोलता है। गूंगी-बहरी व्यवस्था कितनी ही बड़बोलेपन के साथ मुखर होकर सामने आए, जनसामान्य की स्थितियों में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा। ऐसी संवेदना, इसी स्तर की भावना हलीम आईना की दर्जनों कविताओं में हमें देखने-पढ़ने को मिल जाती हैं। इनकी कविताओं में गिरावट, समानता, बाजार, फैशन, सबक और बदलाव जैसी रचनाएं जीवन सत्य को मुखर कर रही हैं, वहीं कटोक्तियां, व्यंग्योक्तियां भी हलीम आईना के काव्य फलक को विस्तृत करके दिखा रही हैं। भाषा, शैली, शिल्प और मुहावरे में हलीम आईना का यह संग्रह राजस्थान की हिंदी कविता को एक मंच दे रहा है।
‘हम मजदूर/ हम पेट के लिए हैं/ मजबूर/ हमें तो करना है/ ठेकेदार के आदेशानुसार/ रात-दिन काम जी हमारे लिए/ कोई मायने नहीं रखते/ तीज-त्योहार… अपना घरबार/ हमारे लिए ही तो नारा बना था ‘आराम हराम है।’ प्रकाशित यह कविता आईना के कई बिन्दुओं को उजागर कर रही है।
पुस्तक : आईना बोलता है रचनाकार : हलीम आईना प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन, राजस्थान पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 150.