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अच्छी सेहत की गारंटी शरीर अनुकूल भोजन

12:14 PM Sep 18, 2024 IST
अच्छी सेहत की गारंटी शरीर अनुकूल भोजन
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गुणकारी, संतुलित भोजन से पाचन आसानी से होता है, वहीं यह स्वास्थ्य बेहतर बनाता है व शरीर को पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करता है। सेहतमंद रहना संभव है यदि हम अपना खानपान अपने शरीर की प्रकृति के अनुकूल रखें, दिनचर्या व ऋतुचर्या का ख्याल रखकर खायें-पीएं। समय-समय पर उपवास भी करें। साथ ही नियमानुसार व समय पर भोजन लें। वह भोजन पोषक तत्वों से भरपूर व ताजा भी होना चाहिये। जरूरी है कि हम विरुद्धाहार के प्रति भी सावधान रहें।

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अरुण नैथानी

हम पुरखों को पता था कि यदि हमारा भोजन संतुलित होगा, तो हमें पर्याप्त ऊर्जा भी मिलेगी और हम सेहतमंद रहेंगे। अनुभवी वैद्य कह गये हैं सभी रोग हमारे पेट से ही शुरू होते हैं। दूसरे शब्दों में हमारी खान-पान की आदतों पर ही हमारा स्वास्थ्य निर्भर करता है। दरअसल, हम जो भोजन, वायु व पानी प्राप्त करते हैं उसे हमारी पाचन प्रणाली ऊर्जा में बदल देती है। सामान्य व्यक्ति भोजन से प्राप्त ऊर्जा से जहां रोजमर्रा के कार्य हेतु शक्ति पाता है, वहीं बच्चों व किशोरों के शारीरिक विकास में भी यह ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आधुनिक पीढ़ी जिस मोटापे, खून की कमी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग व बाल गिरने की समस्या से जूझ रही है उसकी असली वजह हमारे भोजन का असंतुलन ही है। फलत: हमारी कार्यक्षमता में भी गिरने लगती है। संतुलित भोजन न मिलने के परिणामों में कम उम्र में चश्मा लगना, बाल सफेद होना, गर्दन व कंधे का दर्द होना भी शामिल है। कालांतर व्यक्ति के सामने अवसाद, अनिद्रा व तनाव जैसी समस्याएं आती हैं।

नुकसानदेह फास्ट फूड

दरअसल, विदेशियों की तर्ज पर युवा पीढ़ी आज जिस तरह का खाना खा रही है, वह मृत भोजन के समान ही है। पीजा, बर्गर, नूडल्स आदि जंक फूड और उनमें प्रयुक्त रासायनिक पदार्थ स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। डिब्बा बंद भोजन व शीतल पेय आदि में शरीर के लिये जरूरी पोषक तत्व नहीं होते हैं। इस तरह के भोजन को पचाने के लिये हमारे शरीर को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। जो फैट बनकर हमारे शरीर में जमने लगता है। कालांतर शरीर में प्राणिक ऊर्जा की कमी के कारण मोटापा, शूगर, दिल की बीमारी व उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां पैदा होने लगती हैं। वहीं महिलाओं में पीसीओडी व प्रजनन संबंधी दोष पैदा होने लगते हैं।

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शरीर की प्रकृति के अनुरूप भोजन

सही मायनों में संतुलित भोजन वह जो हमारी शरीर की प्रकृति के अनुरूप है। जो हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी हासिल अनुभवों से मिला है। कहा जाता है कि हमारा रसोईघर एक मेडिकल स्टोर है, जिसमें तमाम आयुर्वेदिक चिकित्सा में शामिल मसाले मिलते हैं। जो हमारी वात-पित्त-कफ की प्रकृति को संतुलित करते हैं। ऋतु चक्र में होने वाले परिवर्तन से हमें सुरक्षा देते हैं। इसीलिये घर में बने खाने के महत्व को दर्शाया जाता है। लेकिन आज बाहर से खाना मंगाकर खाने का फैशन चल पड़ा है। योग दर्शन में कहा गया है कि खाना बनाने वाली मनोवृत्ति का प्रभाव भी खाने की गुणवत्ता में पड़ता है।

भोजन करने के नियम

संतुलित भोजन के लिये जरूरी है कि हम खाना खाने से आधा घंटे पहले हरा सलाद खाएं। खाना खाते वक्त पानी का सेवन न करें। पानी खाना खाने से आधे घंटे पहले या खाना खाने के पैंतालिस मिनट बाद ही उपयोग करें। दिनभर पानी का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में करें। सुबह अंकुरित अनाज लें और रात को सात-आठ किशमिश व पांच-छह बादाम भिगोकर खाना बेहद उपयोगी होता है। भोजन को चबा-चबाकर खाना चाहिए। आयुर्वेद में कहा जाता है कि खाने को पानी की तरह और पानी को खाने की तरह-तरह धीरे-धीरे खाएं। कहा जाता है कि सफेद चीनी, नमक व मैदे के उपयोग से परहेज करना चाहिए। सेहत के विशेषज्ञ कहते हैं कि मनुष्य की मृत्यु के जो दस प्रमुख कारण हैं उनमें छह हमारी भोजन की गलत आदतों में से हैं। खासकर मोटापे को ही लें तो उसकी वजह से सांस लेने की गति बढ़ जाती है और काम करने की क्षमता घट जाती है। जिससे शरीर में चयापचय का असंतुलन पैदा होता है। जिससे हमारे शरीर में पाचन की क्रिया में असंतुलन पैदा होता है। जिससे मोटापा लगातार बढ़ता जाता है। मोटापे से ही शूगर, उच्च रक्तचाप व हृदय से संबंधित रोगों का विस्तार होता है।

उपवास भी महत्वपूर्ण

हमारे स्वस्थ रहने में उपवास का भी महत्वपूर्ण योगदान है। हम जिस दिन पार्टी खायें, अगले दिन फिर उपवास करना चाहिए। अगले दिन चार समय सिर्फ फ्रूट ही लेने चाहिए। आम आदमी को पता लग जाता है शूगर बढ़ रही है। खाने के मामले में अराजक न हों। स्वयं पर संयम रखें। नाशपाती का गूदा व रस उपयोगी है। कब्ज में नाशपाती रामबाण होती है। कब्ज दूर होने से अर्श आदि रोग नहीं होते। कब्ज आंतों में जूस कम जाने से होती है। कब्ज दूर करने के लिये रिच फाइबर वाले फल व सब्जी लेनी चाहिए।

भोजन में नियमितता

स्वस्थ रहने के लिये जरूरी है कि हम भोजन कम मात्रा में लें। सूर्योदय के बाद नाश्ता लें। हमारे खाने का समय निर्धारित होना चाहिए। रोज दिन में दो बजे जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है तो हमें खाना खाना चाहिए। इस समय खाने को पचाने वाली जठराग्नि तेज होती है। दरअसल अनियमित भोजन से लीवर फैटी हो जाता है। आयली खाना खाने से जीवन ज्यादा नहीं चलता। सत्तर-अस्सी प्रतिशत भारतीय पहले दूध-घी नियमित लेने के अलावा मूली और मूली पत्तों का रस लेते थे। एक महीने में फैटी लीवर ठीक हो जाता था।

सूर्यास्त के बाद खाने से परहेज

हम रात को सूर्य अस्त के बाद खाने से परहेज करें। आज की भागमभाग जिंदगी में रात आठ बजे तक खाना खा लें। खाना हमारे शरीर की प्रकृति के अनुसार हो। खाना मौसम के अनुसार लें। खाना खाते समय मन शांत होना भी जरूरी है। सबसे महत्वपूर्ण है कि खाना भूख से कम लें। भोजन आदत व समय के अनुसार नहीं बल्कि भूख के आधार पर लें। प्रकृति हर मौसम के हिसाब से सब्जी व फल देती है। उसका उपयोग हमारे भोजन को संतुलित करता है।

परंपरागत मोटे अनाज

संपन्नता के साथ हमने गेहूं-चावल को मुख्य भोजन बना लिया। मोटे अनाज से हमने दूरी बना ली जो रिच फाइबर वाले खाद्य पदार्थ थे। दरअसल, हमने अपने खाने में परंपरागत पौष्टिक भोजन को अलविदा कर दिया है। बाजरा, चना, जौ, रागी, अलसी आदि मोटा अनाज कभी हमारे भोजन को संपूर्णता देते थे। अलसी में ओमेगा-3 स्नायुतंत्र से जुड़े असंतुलन को दूर करने में सहायक है। जौ की रोटी लस्सी के साथ पेट के लिये अच्छी होती है।

खाना तालमेल से

हमें खाना तालमेल के हिसाब से लेना चाहिए। सुबह के समय नाश्ते के साथ फलों के रसों का इस्तेमाल करना चाहिए। फिर दोपहर में खाने के साथ दही व लस्सी का उपयोग करें। बेहतर सेहत के लिये रात को दूध का उपभोग करें। हम ध्यान रखें कि किस खाने के साथ क्या वर्जित है। आजकल बहुत लोगों को सफेद दाग की बीमारी होती है। पहले यह रोग दस लाख पर होता है अब दस हजार पर एक रोगी है। हमें मूली के साथ दूध-दही नहीं लेना चाहिए। हम लोग नमक दूध के साथ उपयोग कर रहे हैं। कुछ लोग नानवेज या मछली के साथ दूध से बने पदार्थों का सेवन कर लेते हैं। इस गलत संयोजन से कुष्ठ रोग तक होने की संभावना पैदा हो जाती है। यदि हम दही रात में लेगें तो कफ बढ़ा देगी। शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन होना चाहिए।

दिनचर्या, ऋतुचर्या व संतुलित भोजन

आयुर्वेद में हमें स्वस्थ जीवन के लिये अनुशासित दिनचर्या व ऋतुचर्या का संदेश दिया गया है। प्रकृति प्रदत्त पांच तत्व हमारे स्वास्थ्य का आधार हैं। मसलन शरीर में आकाश तत्व को हम उपवास से हासिल कर सकते हैं। इस दौरान हम फलाहार करें, रसाहार करें। इसके अलावा उबली सब्जियों का सेवन करें। हमारे खाने में अम्ल और क्षार तत्व का संतुलन होना चाहिए। आदर्श रूप में भोजन सत्तर प्रतिशत क्षारीय और तीस प्रतिशत अम्लीय होना चाहिए। गेहूं क्षारीय है, वह गेहूं पित्त नहीं बढ़ाएगा। सलाद रात को नहीं खाना चाहिए। निस्संदेह, संतुलित भोजन हमारी स्वास्थ्य की गारंटी होता है, लेकिन खाने के साथ तमाम ऐसी बातें जुड़ी हैं जो हमारे स्वास्थ्य को संपूर्णता प्रदान करती हैं। आयुर्वेद के आधारभूत स्तंभ आचार्य चरक अपने शिष्यों से कहते थे कि निरोगी रहने के स्वर्णिम सूत्र हैं- हितभुक‍्, मितभुक‍् व ऋतुभुक‍्। यानी हमेशा शरीर व मन के लिए हितकारी, सीमित मात्रा में तथा ऋतु के अनुसार भोजन लेना चाहिए। अधिकांश लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते और इसलिए रोगी बनते हैं।

हितकारी भोजन के तीन मापदंड

भोजन के बारे में यदि परंपरा से माने जाने वाले सर्वव्यापी तीन नियमों का पालन करें तो वह स्वास्थ्य के लिए हितकर होगा। ये हैं पहला हितभुक्, दूसरा मितभुक् व तीसरा ऋतभुक्।
हितभुक‍् यह विडंबना ही है कि देश का गरीब वर्ग गरीबी के कारण पोषक आहार नहीं जुटा सकता। लेकिन अमीर व मध्यम वर्ग उपलब्धता के बावजूद हितकारी व रोगनाशक भोजन से वंचित होकर रोगों का शिकार बन जाता है। हम अपने शरीर की प्रकृति के अनुरूप खानपान करें।
मितभुक‍् सही मायनों में हम अपनी भूख का आकलन नहीं करते और स्वाद के कारण जरूरत से ज्यादा खाना खा जाते हैं। जो संयमी व्यक्ति खाने में संयम रखते हैं, वे स्वस्थ व सुखी रहते हैं। अकसर हम शादी-व्याह व पार्टियों में स्वाद के प्रलोभन में जरूरत से बहुत ज्यादा खा जाते हैं और बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। दरअसल, जरूरत से ज्यादा खाया गया भोजन शरीर में रोगों को पैदा करता है।
ऋतभुक‍् दरअसल, हमें ऋतु चक्र व समय के अनुरूप ही भोजन लेना चाहिए। आयुर्वेद कहता है रात को दही नहीं खाना चाहिए। खाने के तुरंत बाद पानी पीना विष जैसा होता है। इसी तरह सुबह के समय खाली पेट ली गई चाय और खाने के बाद पी गई चाय गैस पैदा करती है। निस्संदेह यदि हम सेहत के उक्त तीनों नियमों के पालन नियमित करें तो कई रोगों से आसानी से मुक्त हो सकते हैं। आज हम पीढ़ी दर पीढ़ी मिले स्वस्थ्य जीवन में सहायक पाक कला को भूलते जा रहे हैं और बाहर के चटपटे और सेहत के लिये अटपटे भोजन का सेवन करने लगें हैं।

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