अच्छी संगत से ही चलेगा नशे पर नश्तर
बचपन व किशोर अवस्था में दोस्त अच्छे हों तो हम बुरी आदतों से बचे रह सकते हैं। खासकर नशे के जाल से। दरअसल, देश के कई राज्यों में नशे का सेवन व कारोबार तेजी से फैल रहा है। जिस पर लगाम लगाने की जरूरत है। जहां सरकार कड़े कदम उठाए वहीं पैरेंट्स भी बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें। उनके फ्रेंड सर्कल को लेकर सचेत रहें। बच्चे को भी जागरूक करें ताकि वे किसी गलत ऑफर को ना कह सकें।
केवल तिवारी
महापुरुषों के दिखाए रास्ते के मुताबिक संगत यानी दोस्ती-यारी की बात करें तो दो तरह की सीख सामने आती हैं। एक, जिसमें रहीम दास जी कहते हैं, ‘कह रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।’ और दूसरा, जिसमें कबीरदास जी कहते हैं, ‘संत ना छोड़े संतई, कोटिक मिले असंत। चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।’
पहले दोहे में रहीम दास जी के कहने का अर्थ है कि दो विपरीत प्रवृत्ति (सज्जन-दुर्जन) के लोग साथ नहीं रह सकते। उन्होंने बेर और केले के पेड़ का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर दोनों आसपास होंगे तो उनकी संगत कैसे निभ सकती है? दोनों का अलग-अलग स्वभाव है। बेर को अपने रसीले होने पर घमंड है, लेकिन कांटेदार है। केले के पेड़ को अपने पत्ते पर घमंड है, लेकिन बेर के कांटों से वह छिल जाते हैं।
दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि सज्जन पुरुषों को जितने मर्जी गलत लोग मिल जाएं, लेकिन उसकी सज्जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने उदाहरण दिया कि चंदन के पेड़ पर जहरीले सांप लिपटे रहते हैं, लेकिन वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता है।
इन दोनों उदाहरणों से इतर एक प्रसिद्ध उद्धरण है, ‘काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाए, एक लीक काजर की लागिहै पे लागिहै।’ इसमें कवि कहते हैं कि आप कितने ही अच्छे हों, संगत अगर बुरी है तो उसका असर तो पड़ ही जाता है।
संगत के संबंध में उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से बात कर रहे हैं नशे की गिरफ्त में आती हमारी नयी पीढ़ी की। पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड हो या फिर कोई अन्य राज्य। नशे के कारण नाश की ओर बढ़ते बच्चों की दर्दनाक कहानियां अक्सर सुनने, पढ़ने और देखने को मिल जाती हैं। अत्यंत दुखद स्थिति तो तब होती है जब यह पता चलता है कि जिनके कंधों पर नशे के सौदागरों को रोकने की जिम्मेदारी थी, वे ही नशे के कारोबारी बने मिले।
अच्छी आदतें, अच्छी दोस्ती
असल में अच्छी या बुरी संगत की बात आज हम नशे की लत के साथ जोड़कर कर रहे हैं। क्योंकि पिछले दिनों अनेक जगहों से ऐसी खबरें आयीं जिनका लब्बोलुआब यह था कि खराब संगत से चिट्टे की लत लग गई। सिल्वर पन्नी पर रखकर इस सफेद जहर को पीना शुरू किया। लत ऐसी लगी कि घर के बर्तन तक बेच दिए। नशा सिर्फ चिट्टे का ही नहीं, और भी कई तरह का, जिसने नाश की ओर ही धकेला। जानकार कहते हैं कि अपनी इच्छाशक्ति दृढ़ रखने वाले विरले ही होते हैं, खासतौर पर किशोरावस्था-युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे बच्चे। इसलिए ऐसे मौकों पर बच्चों पर नजर रखनी बहुत जरूरी है। संगत की बात इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि सफलता की कुंजी कहती है कि जीवन की सफलता अच्छी आदतों में ही निहित है। अच्छी आदतें और ज्यादा डेवलप हों और बरकरार रहें, इसके लिए अच्छी दोस्ती जरूरी है। अभिभावक इस बात को जितनी जल्दी समझ जाएं अच्छा है। क्योंकि समय निकल जाने के बाद किया गया प्रयास व्यर्थ ही होता है। जानकार कहते हैं कि किशोरावस्था और युवावस्था में बुरी आदतें अधिक प्रभावित करती हैं। इसलिए उम्र की इन अवस्थाओं में विशेष सतर्कता और सावधानी बरतने की जरूरत है। नशा व्यक्ति की बुद्धि का नाश करता है। सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की कार्य क्षमता प्रभावित होती है। इसलिए इससे दूर रहने से ही तरक्की के दरवाजे खुलते हैं।
खेप पकड़ी गयी, कहां खप रहा नशा
आये दिन खबरें आती हैं कि नशे की इतनी खेप पकड़ी गयी। जो नशा पकड़ा गया, हो सकता है उसे नष्ट कर दिया जाता हो, लेकिन जो पहुंच गया, वह कहां खप रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नशा कहां खप रहा है। जवान होते बच्चे उनकी गिरफ्त में आ रहे हैं, आखिर तंत्र कहां छिपा रहता है।
अंतर्राष्ट्रीय साजिश
जानकार कहते हैं कि देश की भावी पीढ़ी को बर्बाद करने की यह अंतर्राष्ट्रीय साजिश है। ओवरडोज से मौत, नशे के लिए घर-बार की बिक्री जैसी खौफनाक खबरें आये दिन आती रहती हैं। विभिन्न सीमाओं से अलग-अलग तरीके से अलग-अलग तरह के नशे की सामग्री पहुंच रही है। सीमाओं पर नशे की इस घुसपैठ के खिलाफ एनकाउंटर अभियान चलाया जाना बेहद जरूरी है। नहीं तो स्थिति और भयावह होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
आज की सावधानी से बेहतर कल
डॉ. अरदास संधु, न्यूरो साइकेट्रिस्ट
संगत यानी दोस्ती-यारी एवं स्कूल का माहौल अच्छा हो, बेहतरीन पैरेन्टिंग, महिलाओं के सम्मान की बचपन से ही शिक्षा, सरकार की इच्छाशक्ति। ये सारी चीजें सुदृढ़ हों तो कोई ताकत नहीं कि हमारी भावी पीढ़ी को नशे के गर्त में धकेल सके। यह कहना है न्यूरो साइकेट्रिस्ट डॉ. अरदास संधु का। नैतिक शिक्षा को जरूरी मानते हुए डॉ. अरदास कहते हैं कि नशा हो या कोई भी असामाजिक गतिविधि, बच्चों पर सीधा असर संगत का पड़ता है। बच्चे को जैसी संगत मिलेगी, उसका असर वैसा ही पड़ेगा। संगत दो-तीन तरह की हो सकती हैं। एक तो आपके सीनियर आपके अच्छे दोस्त हो सकते हैं। उनके साथ आपकी अच्छी बनती है। दूसरे, आपके जूनियर यानी आपसे कम उम्र के लोग आपके मित्र हो सकते हैं। या फिर आपके हमउम्र ही आपके दोस्त होते हैं। हमउम्र दोस्त तो आदर्श माने ही जाते हैं। अगर सीनियर यानी आपसे ज्यादा उम्र के आपके दोस्त हैं तो इस पर नजर रहनी चाहिए कि आपका वह दोस्त जो आपका ‘रोल मॉडल’ है, वह कैसा है? क्या आपका रोल मॉडल वह है जो बहुत ज्यादा खर्च करता है, उसकी लाइफस्टाइल एकदम अलग तरीके की है वह पिज़्ज़ा, बर्गर खाने वालों में से है। या आपका रोल मॉडल वह है जो बच्चा लाइब्रेरी जा रहा है, पढ़ाई के प्रति गंभीर है। अच्छी आदतों वाला है। बेवजह नहीं घूमता। इसी क्रम में यह बात भी आती है कि आपका साथी किस तरह के गाने सुन रहा है। किस तरह की जिंदगी जी रहा है। उसकी धार्मिक प्रवृत्ति कैसी है। धार्मिक होना बुरी बात नहीं, लेकिन कट्टरता खराब है।
स्कूल की भूमिका
डॉ. अरदास कहते हैं कि स्कूल की जिम्मेदारी बहुत सशक्त है। बेशक बच्चों की संगत पर नजर रखने की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा माता-पिता की है, लेकिन स्कूल को इनीशिएटिव लेना चाहिए। बच्चे का ज्यादातर समय स्कूल में व्यतीत होता है। वह किस तरह का व्यवहार करता है इस बात को लेकर बच्चे के माता-पिता से स्कूल का संपर्क रहना चाहिए और माता-पिता भी बच्चे के व्यवहार में तब्दीली देखें तो स्कूल से संपर्क करें। घर और स्कूल से शुरुआत से ही सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं का सम्मान करें। इसके साथ ही परिवार के लोग आपस में बातें करें। कई बार हम परिवार में देखते हैं कि लोग साथ तो बैठे हैं, लेकिन हर कोई अपने-अपने फोन पर लगा रहता है। इसकी वजह से भी अनजाने में ही बच्चे के कोमल मन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वह वर्चुअल लाइफ को ही दुनिया समझने लगता है।
शिक्षा व्यवस्था के बदलाव
नशे की समस्या से निजात पाने के लिए डॉ. अरदास शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन को भी जरूरी मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस तरह से समय बदला है, उस हिसाब से शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है। बच्चों को नैतिकता सिखाई जाये। साथ ही वह ‘हेल्दी डाइट’ को भी आवश्यक तत्व मानते हैं। डॉ. संधु का मानना है कि स्वस्थ भोजन शैली का तन-मन पर बहुत असर पड़ता है। नशा रोकने में सरकार की भूमिका के सवाल पर वह कहते हैं कि इच्छाशक्ति हो तो सब हो सकता है। कई बार ऐसी खबरें आई हैं कि सरकारी अफसर ही नशा तस्करी में पकड़े गये। अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो, लोग अपने कर्तव्यों को समझें तो कोई ताकत नहीं है जो सीमा क्षेत्र से अंदर नशे को हमारे देश में पहुंचा सके। हमारी नयी पीढ़ी को बर्बाद करने वाली साजिशों को बेनकाब किया जाना जरूरी है। इसके साथ ही डॉ. संधु कहते हैं कि बच्चों को ना कहना जरूर सिखाएं। क्योंकि ना कह सकने की आदत या हिम्मत ही हमें नशाखोरी से दूर रख पाएगी। पहले शौकिया, फिर दोस्तों की जिद में हां- हां करते-करते जीवन की खुशियां हमसे ना कहने लगती हैं। इसलिए गैर-जरूरी बातों पर ना कहना जरूरी है।-लेखक हीलिंग हॉस्पिटल, चंडीगढ़ से जुड़े हुए हैं।