अखाड़ों की शक्ति और परंपराओं का अद्भुत संगम
प्रयागराज महाकुंभ एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जहां देशभर के अखाड़े अपने अनोखे शास्त्र, योग और साधना के साथ एकत्र होते हैं। यह आयोजन न केवल भारतीय सनातन धर्म की महत्ता को उजागर करता है, बल्कि दुनिया भर में भारतीय परंपराओं और संस्कृति का प्रचार भी करता है।
आर.सी. शर्मा
आगामी 14 जनवरी से शुरू हो रहे प्रयागराज महाकुंभ में हिस्सेदारी करने के लिए देश के विभिन्न अखाड़ों के संत प्रयागराज पहुंचने लगे हैं, जिससे महाकुंभ क्षेत्र गुलजार हो गया है। दरअसल, हिंदू धर्म में अखाड़ों का धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से बहुत महत्व है। 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने साधु-संन्यासियों के ये संगठन समाज में हिंदू धर्म की रक्षा, उसका प्रचार और सनातन परंपराओं को शुद्ध बनाये रखने के लिए निर्मित किया था। ये अखाड़े दरअसल साधु-संतों के ऐसे समूह होते हैं, जो वेद, योग, तपस्या और हिंदू धर्मशास्त्रों में निपुण होते हैं। इन्हें हिंदू धर्म की रक्षा और समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाला आज भी एक प्रमुख केंद्र माना जाता है।
देशभर में कुल 13 अखाड़े हैं, जो तीन अलग-अलग समूहों में बंटे हुए हैं। पहला समूह है शैव अखाड़ों का इसमें कुल 7 अखाड़े हैं। ये भगवान शिव के उपासक होते हैं। शैव अखाड़ों में हैं :-
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी - दारागंज प्रयाग (उ.प्र.); श्री पंच अटल अखाड़ा - चौक हनुमान, वाराणसी (उ.प्र.); श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी - दारागंज, प्रयाग (उ.प्र.); श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा - त्र्यम्बकेश्वर, नासिक, महाराष्ट्र; श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा - वाराणसी, (उ.प्र.); श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा - दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी; श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़, गुजरात।
अखाड़ों का दूसरा प्रमुख सम्प्रदाय वैष्णव अखाड़ों का है, इन अखाड़ों के साधु संत भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के उपासक होते हैं। देश में 3 वैष्णव अखाड़े हैं :-
श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा - शामलाजी खाकचौक मंदिर, साबरकांठा, गुजरात; श्री निर्वानी अखाड़ा - हनुमान गढ़ी, अयोध्या, उ.प्र.; श्री पंच निर्मोही अखाड़ा - धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा, उ.प्र.।
अखाड़ों का तीसरा सम्प्रदाय या समूह उदासीन और निर्मल अखाड़े का है। ये अखाड़े दरअसल सिख धर्म और हिंदू धर्म के मिश्रण से प्रेरित हैं। ये अखाड़े हैं :- श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा-कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग; श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन-कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड; श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा - कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड।
अखाड़ों की स्थापना इसलिए की गई थी कि ये विदेशी आक्रमणों और मुगलों से सनातन धर्म की रक्षा करेंगे। कुंभ मेले में शुरू से ही साधु-संतों के ये अखाड़े बड़े आकर्षण का विषय रहे हैं। क्योंकि यही वो समय होता है, जब देशभर के तेरह अखाड़ों के संत, महंत कुंभ स्थल में एकत्र होकर अपने अनुयायियों से मिलते हैं, शास्त्र विमर्श करते हैं और धार्मिक मूल्यों के परिचालन में आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए नये मूल्यों का गठन करते हैं तथा पुराने मूल्यों को समय के अनुकूल परिवर्तित और प्रवर्धित करते हैं। कुंभ के दौरान शाही स्नान के समय अखाड़ों की शान उनके प्रति लोगों की श्रद्धा और सम्मान देखते ही बनता है। अखाड़ों में साधुओं को शास्त्र के साथ शस्त्र का भी ज्ञान और प्रशिक्षण दिया जाता है, क्योंकि ये धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए समर्पित समूह हैं। लेकिन महाकुंभ के दौरान बहुत बड़े पैमाने पर आये विदेशी सैलानियों और विदेशी मीडिया इन्हें कई अलग-अलग नजर से प्रस्तुत करती रही है। यही कारण है कि विदेशों में कुंभ का एक मतलब साधु-संन्यासियों के इन अखाड़ों की मौजूदी ही समझा जाता है। लेकिन अब धीरे-धीरे विदेशी इन अखाड़ों को भारतीय परंपरा और योग के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
वास्तव में पूरी दुनिया में योग और ध्यान की सबसे बड़ी प्रेरणा ये अखाड़े ही हैं। हालांकि, विदेशी मीडिया पूरी तरह से इन अखाड़ों की सांस्कृतिक महत्ता नहीं समझ पाती, इसलिए कई बार वह इन्हें रहस्यमयी और पारंपरिक संस्थाओं के रूप में भी प्रदर्शित करते हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर ये अखाड़े अपने विदेशी धर्मानुयायियों का योग और वेदांत का प्रशिक्षण देकर उन्हें यह मानने पर भी मजबूर करते हैं कि ये भारतीय संस्कृति के प्रचार, प्रसार के साथ साथ दुनियाभर को योग और आध्यात्मिक जीवनशैली देने का सबसे विश्वसनीय केंद्र हैं। जूना अखाड़ा देश के सभी 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा है। इसमें सबसे ज्यादा नागा साधुओं की संख्या है, जो आम लोगों के लिए ही नहीं, दूसरे अखाड़ों के लिए भी प्रेरणा का विषय है। जूना अखाड़ा शैव परंपरा से जुड़ा सबसे प्राचीन और प्रभावशाली अखाड़ा है। इसकी स्थापना 8वीं शताब्दी में हुई। इसका आध्यात्मिक और सामाजिक दोनो ही प्रभाव बहुत ज्यादा है।
अखाड़े आमतौर पर हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और वाराणसी जैसे प्रमुख धार्मिक नगरों में स्थित हैं। अगर जूना अखाड़ा देश का सबसे बड़ा अखाड़ा है तो निर्मल अखाड़ा देश का सबसे छोटा अखाड़ा है। अन्य अखाड़ों की तुलना में इसका क्षेत्रीय विस्तार उत्तर भारत तक ही सीमित है। सिख और सनातन धर्म के सिद्धांतों के संगम इस अखाड़े में साधुओं की संख्या सीमित है, इसी वजह से अखाड़ा मुख्यधारा की मीडिया में भी उपेक्षा का शिकार रहता है। कुंभ में भी इस पर कम चर्चा होती है। जबकि निरंजनी अखाड़ा और जूना अखाड़ा विदेशियों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। निरंजनी अखाड़ा योग और ध्यान परंपरा को बढ़ावा देने वाला वह अखाड़ा है, जिसकी तरफ विदेशी विशेष रूप से आकर्षित होते हैं। इस अखाड़े के कई आश्रम देश के अलग अलग हिस्सों में तो है ही, कुछ विदेशों में भी मौजूद हैं।
जबकि जूना अखाड़े में बड़े पैमाने पर नागा साधुओं की उपस्थिति, उनकी रहस्यमयी जीवनशैली और कठोर शैव परंपरा भी इस अखाड़े को प्रसिद्ध बनाती है। विदेशी लोग योग और साधना के लिए कुंभ के दौरान अलग-अलग अखाड़ों के शिविरों में हिस्सा लेते हैं। सबसे बड़ा शिविर जूना अखाड़े का ही लगता है। उत्तराखंड का हरिद्वार शहर वास्तव में विभिन्न सनातनी अखाड़ों का केंद्र है। गंगा किनारे स्थित हिंदू धर्म के इस पवित्र स्थल में कई प्रसिद्ध अखाड़ों के मुख्यालय मौजूद हैं। क्योंकि यह शहर कुंभ मेले का भी प्रमुख आयोजन स्थल है, इसलिए इस शहर में पूरे साल अखाड़ों की विभिन्न गतिविधियां जारी रहती हैं। देश के अन्य महत्वपूर्ण शहर जहां अखाड़ों के स्थायी आवास हैं उनमें प्रयाग, वाराणसी और नासिक हैं। इ.रि.सें.