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अंतरिक्ष प्रवास तेज करता है बुढ़ापे की प्रक्रिया

04:00 AM Apr 11, 2025 IST
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दृष्टि क्षति लंबी अंतरिक्ष यात्रा के सबसे बड़े दुष्प्रभावों में से एक है। सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण और विकिरण भी श्वेत रक्त कोशिका उत्पादन को बदल सकते हैं, जिससे शरीर की वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। हर्पीज और चिकनपॉक्स जैसे निष्क्रिय वायरस, आईएसएस पर प्रवास के दौरान तनाव और इम्यून सिस्टम के दमन के कारण फिर से सक्रिय हो सकते हैं।

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मुकुल व्यास

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर विवशतावश नौ महीने बिताने के बाद नासा के अंतरिक्ष यात्री बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स सकुशल लौट आए लेकिन धरती पर लौटने पर जब वे अपने क्रू ड्रैगन कैप्सूल से बाहर निकले तो उन्हें व्हीलचेयर पर रखा गया। दोनों अंतरिक्ष यात्री बहुत अच्छी सेहत में नहीं दिखे। आईएसएस पर शून्य-गुरुत्वाकर्षण के वातावरण में रह कर उनकी मांसपेशियां कमजोर हो गईं और उनकी हड्डियों का घनत्व भी कम हो गया जिससे उनके लिए चलना या खड़ा होना भी मुश्किल हो गया। अंतरिक्ष यात्रियों की जोड़ी दुबली-पतली भी दिखाई दी। कुछ पर्यवेक्षकों ने पाया कि पिछले जून में अंतरिक्ष यात्रा पर निकलने के बाद से वे काफी बूढ़े हो गए हैं।
वैसे नौ महीने का प्रवास अंतरिक्ष में बिताया गया सबसे लंबा समय नहीं है। यह रिकॉर्ड रूसी अंतरिक्ष यात्री वालेरी पोल्याकोव के नाम है, जिन्होंने 1990 के दशक में मीर अंतरिक्ष स्टेशन पर 14 महीने बिताए थे। फिर भी नौ महीने की अवधि उनके शरीर के लिए अंतरिक्ष के चरम वातावरण के सबसे बुरे प्रभावों का अनुभव करने के लिए पर्याप्त थी। अंतरिक्ष की 286-दिवसीय यात्रा के दौरान दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को किन-किन शारीरिक परिवर्तनों से गुजरना पड़ा होगा, इसका खुलासा उनके स्वास्थ्य की विस्तृत समीक्षा के बाद ही हो पाएगा। अंतरिक्ष में रहना मनुष्य के लिए सहज नहीं है। अध्ययनों से पता चला है कि अंतरिक्ष में लंबा प्रवास बुढ़ापे की प्रक्रिया को तेज करता है। गुरुत्वाकर्षण की कमी से हृदय और रक्त वाहिकाओं को कम काम करना पड़ता है,जिससे उनमें कमजोरी आ जाती है। अंतरिक्ष यात्रियों को सामान्य से ज्यादा तेज गति से हड्डियों के घनत्व में कमी, मांसपेशियों में क्षय और कोशिकीय परिवर्तन का भी अनुभव होता है। हड्डियों का घनत्व हर महीने 1-2 प्रतिशत तक कम हो जाता है, जिससे पृथ्वी पर लौटने पर ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ जाता है। इन स्थितियों से निपटने में अंतरिक्ष यात्रियों की मदद करने के लिए आईएसएस विशेष ट्रेडमिल और व्यायाम बाइक से लैस है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बलों की नकल करने के लिए खास तौर से डिजाइन किए गए रजिस्टेंस बैंड (व्यायाम उपकरण) भी हैं।
ब्रह्मांडीय विकिरण के संपर्क में आने से डीएनए की क्षति के साथ ‘ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस’ भी हो सकता है, जिससे आणविक स्तर पर समय से पहले बुढ़ापा आ सकता है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस दरअसल पोषक तत्वों और अस्थिर अणुओं का असंतुलन है जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा कर रोग उत्पन्न करता है।
गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति में शारीरिक द्रव भी सिर की ओर शिफ्ट हो जाता है, जिससे दृष्टि संबंधी तंत्रिका में सूजन और रेटिना में सिलवटें आ जाती हैं। आंख का पिछला हिस्सा चपटा हो जाता है और मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। इससे स्पेसफ्लाइट-एसोसिएटेड न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम नामक बीमारी के कारण दृष्टि बाधित हो सकती है। पृथ्वी पर लौटने के बाद मस्तिष्क और आंखों पर दबाव सामान्य स्तर पर वापस आ जाता है, हालांकि इससे होने वाली क्षति कभी-कभी स्थायी हो सकती है। दृष्टि क्षति लंबी अंतरिक्ष यात्रा के सबसे बड़े दुष्प्रभावों में से एक है। सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण और विकिरण भी श्वेत रक्त कोशिका उत्पादन को बदल सकते हैं, जिससे शरीर की वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। हर्पीज और चिकनपॉक्स जैसे निष्क्रिय वायरस, आईएसएस पर प्रवास के दौरान तनाव और इम्यून सिस्टम के दमन के कारण फिर से सक्रिय हो सकते हैं।
आईएसएस पर जाने से पहले अंतरिक्ष यात्रियों को क्वारंटीन अवधि से गुजरना पड़ता है। इसका मतलब है कि अंतरिक्ष स्टेशन पर बहुत कम रोगाणु या वायरस हैं। हाल ही में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि अंतरिक्ष स्टेशन बहुत ज्यादा साफ हो सकता है। इसमें रोगाणुओं की कमी के कारण इम्यूनिटी संबंधी समस्याएं, त्वचा संबंधी विकार और अन्य स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। आईएसएस से लौटने वाले अंतरिक्ष यात्री इस समय 45-दिवसीय रिकंडीशनिंग प्रोग्राम से गुजर रहे हैं जिसमें मांसपेशियों के क्षय को ठीक करने के लिए फिजियोथेरैपी शामिल है।
वहीं नासा का कहना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के दल पहले भी अंतरिक्ष में लंबे समय तक रह चुके हैं और धरती पर वापसी के बाद सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की परफॉर्मेंस स्थापित मानदंडों के अनुरूप होने की उम्मीद है। पुनर्वास के पहले कुछ दिनों में अंतरिक्ष यात्रियों को चक्कर आएगा क्योंकि उनके शरीर को सीधा रहने के लिए संतुलन बनाए रखने की आदत होगी। कुछ महीनों के भीतर उनकी मांसपेशियों का द्रव्यमान वापस आ जाना चाहिए, जबकि हड्डियों का घनत्व कुछ वर्षों के बाद सामान्य स्तर पर वापस आएगा। उनके शरीर में कुछ परिवर्तनों, जैसे कि दृष्टि दोष, को ठीक करना कठिन हो सकता है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि अंतरिक्ष यात्रियों पर पड़ने वाले शारीरिक प्रभावों का अध्ययन भविष्य के मानव मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है। ध्यान रहे कि मंगल की एक तरफ़ की यात्रा में लगभग नौ महीने लगते हैं। सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर पिछले साल जून में 8 दिन के लिए अंतरिक्ष स्टेशन पर गए थे लेकिन उनको वहां नौ महीने बिताने पड़ गए क्योंकि उनको वापस लाने वाले बोइंग स्टार लाइनर में खराबी आ गई और किसी न किसी वजह उनकी वापसी टलती गई। लंबे समय तक रहने के बावजूद, विल्मोर और विलियम्स आईएसएस पर सक्रिय रहे। उन्होंने माइक्रोग्रैविटी रिसर्च और स्टेशन के रखरखाव में अपना काम जारी रखा।
ट्रंप और उनके खासमखास मस्क ने इस मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की। उन्होंने बिना किसी सबूत के दावा किया कि विल्मोर और विलियम्स को वापस लाने में देरी राजनीति से प्रेरित थी। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन पर अंतरिक्ष यात्रियों को अपने हाल पर छोड़ने का आरोप लगाया। इन आरोपों को विशेषज्ञों द्वारा तुरंत खारिज कर दिया गया, जिनमें डेनिश अंतरिक्ष यात्री एंड्रियास मोगेनसेन भी शामिल हैं, जो दो बार आईएसएस के लिए उड़ान भर चुके हैं। मोगेनसेन ने सार्वजनिक रूप से इन दावों की निंदा की और गलत सूचना फैलाने के लिए ट्रंप और मस्क की आलोचना की।
फिर भी अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी में देरी हमारे समक्ष कई खड़े सवाल खड़े करती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश और नासा जैसी साधन संपन्न अंतरिक्ष एजेंसी को दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने में नौ महीने क्यों लग गए? इस प्रसंग से एक और बात साफ हो गई है कि अंतरिक्ष में आपात स्थिति से निपटने के लिए हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं है। अंतरिक्ष विज्ञान में निरंतर प्रगति के बावजूद अंतरिक्ष मिशनों में आज भी अनिश्चितता का तत्व बना हुआ है। मनुष्य को मंगल पर ले जाने का सपना दिखाने वाले मस्क की स्पेसएक्स कंपनी के दो बड़े रॉकेटों में हाल में हुए विस्फोट यह दर्शाते हैं कि अंतरिक्ष की राह कितनी कठिन है। अंतरिक्ष मिशनों की सफलता के लिए प्रौद्योगिकी भी त्रुटिरहित होनी चाहिए।

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लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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