For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

हिमालय से प्रयागराज तक पवित्रता का सफर

04:00 AM Jun 30, 2025 IST
हिमालय से प्रयागराज तक पवित्रता का सफर
Advertisement

धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के कारण हिन्दू समाज में यमुना जी को देवी के रूप में पूजा जाता है। तमाम प्रकार के कष्टों और बाधा निवारण के लिये यमुना में स्नान, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और दान का विधान होने के कारण प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग संगम तट पर पहुंचते है।

Advertisement

हरि मंगल
गंगा यमुना और अंतः सलिला सरस्वती की पावन नगरी प्रयागराज अनादि काल से धर्म और आस्था की नगरी के रूप में विश्वविख्यात है। सृष्टि काल से ही इस नगरी के धार्मिक महत्व को देवी-देवताओं द्वारा यज्ञ,जप,जप जैसे विभिन्न धार्मिक आयोजनों के माध्यम से प्रतिपादित किया गया। सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी द्वारा यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये गये, जिसकी स्मृति में स्थापित दशाश्वमेध घाट आज भी हिन्दू श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है।
अक्षयवट की पौराणिक महत्ता
यहां यमुना के पावन तट पर स्थापित अक्षयवट के बारे में मान्यता है कि जब प्रलयकाल में पृथ्वी जलमग्न हो जाती है तो वट का यह एकलौता वृक्ष ‘अक्षयवट’ ही शेष रहता है। भगवान विष्णु बालरूप में इस वृक्ष के पत्ते पर बैठकर सृष्टि के रहस्य का अवलोकन करते है। वर्तमान परिवेश की बात करें तो गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम ने इस तीर्थ नगरी को वैश्विक पटल पर मानवता की अमूर्त धरोहर के रूप में भी मान्यता दिलाई है। अभी चंद माह पहले सम्पन्न महाकुंभ में आये 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने पावन संगम में आस्था की डुबकी लगाई परन्तु संगम स्नान को आये अधिकांश लोगों ने शायद ही इस तथ्य पर ध्यान दिया होगा कि यमुना जी संगम का महत्व स्थापित करने के साथ ही अपने शाश्वत प्रवाह को यहीं स्थाई रूप से विराम दे देती हैं।
उद्गम और धार्मिक महत्व
यमुना जी का उद‍्गम स्थल उत्तराखंड में हिमालय के बंदरपूंछ पर्वत श्रृखला के पास यमनोत्री ग्लेशियर है। भारतीय धर्मग्रंथों, जिसमें वेद, पुराण और महाभारत शामिल है, में इसे पवित्र उद्गम वाली दिव्य नदी के रूप में मान्यता दी गई है। माना जाता है कि यमुना को भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त है जिसके कारण इसके पावन जल में स्नान करने से मनुष्य के पाप का नाश हो जाता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है। तमाम विद्वान यमुना नदी को गंगा नदी से अधिक प्राचीन और पौराणिक भी बताते हैं।
हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में यमुना जी को भगवान सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यमराज की बहन माना गया है। धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के कारण हिन्दू समाज में यमुना जी को देवी के रूप में पूजा जाता है। तमाम प्रकार के कष्टों और बाधा निवारण के लिये यमुना में स्नान, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और दान का विधान होने के कारण प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग संगम तट पर पहुंचते है।
स्नान के महत्वपूर्ण पर्व
यमुना जी में स्नान की सामान्य परम्परा के अतिरिक्त कार्तिक माह में स्नान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यमुना में सबसे महत्वपूर्ण स्नान कार्तिक मास में दिवाली के बाद आने वाली द्वितीया तिथि को होता है, जो कि यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन लाखों लोग यमुना जी के विभिन्न घाटों पर डुबकी लगाते हैं। दरअसल यम द्वितीया भाई बहन के बीच अटूट बंधन के त्योहार के रूप में कई राज्यों में अत्यंत ही लोकप्रिय एवं विख्यात पर्व है। इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर यमुना नदी में स्नान करते है। इसके पीछे मान्यता है कि यमराज ने अपनी बहन यमुना जी को वचन दिया है कि आज के दिन जो भाई बहन एक साथ तुम्हारे जल में स्नान करेंगे उन्हें यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलेगी और वह मोक्ष प्राप्त करेंगे। दूसरा प्रमुख स्नान पर्व यमुना छठ है जो उत्तर भारत में यमुना जयंती के भी नाम से विख्यात है। यह पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाया जाता है। इस दिन लाखों लोग सुबह से ही यमुना जी के विभिन्न घाटों पर स्नान के साथ पूजा, आरती और भोग लगाते हैंे। जनमानस में इस पर्व की लोकप्रियता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जो लोग स्नान करने जाते है वह अपने साथ यमुना का जल घर लेकर आते है और उन परिवारीजनों को स्नान कराते हैं जो किसी कारण से स्नान के लिये नहीं जा पाते हैं।
सामाजिक लोकप्रियता
प्रयागराज और उसके आसपास के नगर, कस्बों और शहरों में यमुना जी केवल एक नदी ही नहीं मनोकामना पूर्ति करने वाली देवी के रूप में विख्यात है। आम जनमानस में लोकप्रियता की बात करें तो स्थानीय लोग बोलचाल में यमुना नदी को जमुना नदी ही कहते है जो उनके लिये संतान सुख, दरिद्रता से मुक्ति, पापों से मुक्ति के साथ ही मोक्षदायनी है। यमुना नदी के पुण्य प्रताप और लोकप्रियता ने इस क्षेत्र में नामकरण को लेकर लिंग भेद समाप्त कर दिया है। आज हर गांव और कस्बों में जमुना, जमुना देवी, जमुना प्रसाद और जमुना कुमार जैसे नाम वाले मिल जायेगें।
किनारे बसे महत्वपूर्ण शहर
यमुना जी यमनोत्री से निकल कर हरियाणा, दिल्ली होते हुये उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। यमुना जी के तट पर देश की राजधानी दिल्ली, भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा, ताजमहल का शहर आगरा और तीर्थ नगरी प्रयागराज जैसे महत्वपूर्ण शहर बसे हुए हैं। यमुना जी को प्रयागराज तक पहुंचने के लिये लगभग 1376 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।
संगम और अंतिम दर्शन
प्रयागराज में यमुना जी की गहराई को लेकर अलग-अलग कयास लगते है। माना जाता है कि यहां पानी की गहराई 10 फीट से लेकर 25 फीट तक है जो बरसात के मौसम में बढ़ जाती है। इस शहर में यमुना जी का प्रवेश दक्षिणी दिशा से होता है जबकि उसी के सामान्तर गंगा जी उत्तर दिशा से प्रवेश करती है। शहर सीमा समाप्त होने के बाद गंगा जी की धारा एकदम दाहिनी ओर घूम कर अरैल क्षेत्र के सामने यमुना नदी से मिलती है, जिसे पावन संगम कहा जाता है।
संगम स्थल पर यमुना जी अपने अथाह जल के साथ नील वर्ण में बिलकुल शांत दिखायी पड़ती है जबकि धवल रूप धारण किये गंगा जी का जल तीव्र गति से संगम स्थल से आगे विंध्याचलधाम से होता हुआ भगवान शिव की नगरी काशी की ओर प्रस्थान करता हैं। मोक्षदायिनी यमुना जी इसी संगम स्थल पर अपना रूप-रंग और शाश्वत प्रवाह गंगा जी को समर्पित करके स्थाई रूप से विराम ले लेती है। श्रद्धालुओं के लिये यमुना जी को प्रणाम करने हेतु संगम ही अंतिम स्थल है, इसके आगे उन्हें यमुना जी के दर्शन नहीं होते है। यमुना का नील वर्ण धारण करने के बाद मां गंगा का उज्जवल स्वरूप भी यही से कज्जवल स्वरूप में बदल जाता है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement