हर पल सिर्फ एक बार, न जाये बेकार
हमें हर पल को अनमोल समझना चाहिए। जीवन में आने वाले किसी एक संबंध पर एकाग्र होना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि जीवन में आने वाला एक संबंध व्यक्ति के पूरे जीवनकाल को बदल देता है।
रेनू सैनी
जापानी जीवनशैली अत्यंत सुंदर है। यहां के निवासी दीर्घ आयु जीते हैं। इसके पीछे अनेक कारण हैं। वे कई सकारात्मक धारणाओं को हृदय से अपनाते हैं। जापानी अवधारणा का ही एक शब्द है—इची-गो-इची-ए इसका अर्थ होता है ‘एक जीवनकाल, एक मुलाकात’। इसको इस तरह भी कहा जा सकता है कि ‘हर पल, सिर्फ एक बार।’ यह अवधारणा हमें सिखाती है कि हमें हर पल को अनमोल समझना चाहिए। जीवन में आने वाले किसी एक संबंध पर एकाग्र होना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि जीवन में आने वाला एक संबंध व्यक्ति के पूरे जीवनकाल को बदल देता है। आपके जीवन में सौ छोटे-मोटे संबंधों से बेहतर है कहीं एक ऐसा संबंध या जुड़ाव जो आपके पूरे व्यक्तित्व को बदलने की सामर्थ्य रखता हो। जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जब व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से पंगु की हालत में आ जाता है। उस समय उसे कोई रास्ता, कोई किरण नज़र नहीं आ रही होती। ऐसे बुरे वक्त में यदि कोई ऐसा व्यक्ति उसका हाथ थाम ले जो उसके मन को मजबूती दे तो दिशाएं बदल जाती हैं, हवाएं अपना रुख बदल देती हैं।
पायल नाग के हाथ-पैर दोनों ही नहीं हैं। वह बचपन से ऐसी नहीं थी। एक दुर्घटना ने उसके जीवन को भयावह बना दिया। साल 2015 में 11,000 वोल्ट की बिजली की तार छत के ऊपर से गुजर रही थी। उस तार के संपर्क में आने के कारण पायल के हाथ-पैर बेकार हो गए। उस समय उसकी आयु केवल पांच साल थी। जब पायल के साथ यह हादसा हुआ तो कुछ समय तक तो परिवार को समझ ही नहीं आया कि ये उनके साथ क्या घटा है। माता-पिता आर्थिक रूप से विपन्न थे। उस पर लड़की के हाथ-पैर दोनों कट चुके थे। अब उसका आगे का जीवन कैसा होगा? कैसे वह समाज और जीवन में आगे बढ़ेगी? यह प्रश्न परिवार को खाए जा रहा था। माता-पिता जिला कलेक्टर के पास मदद की गुहार लेकर पहुंचे। वर्ष 2019 में पायल को बालंगीर के पर्वतगिरी बाल निकेतन अनाथालय में रखा गया। वहां पर पायल तीन साल तक रही। वर्ष 2022 में वह जम्मू आ गई और यहीं से उसके जीवन में बड़े बदलाव आने शुरू हुए।
कुछ समय बाद यहीं उसके जीवन में एक ऐसा पड़ाव आया जिससे उसके अंदर ‘इची-गो-इची-ए’ की अवधारणा बलवती हो गई। हालांकि, वह इस जापानी अवधारणा को तो नहीं समझती थी, लेकिन मानवीय संवेदनाओं को अवश्य जानती थी। स्वयं को व्यस्त रखने के लिए उसने मुंह से चित्र बनाने शुरू किए। उसकी एक तस्वीर वायरल हुई। उस वायरल तस्वीर को देखकर ही कोच कुलदीप वेदवान ने उससे संपर्क किया। जब कोच कुलदीप उससे मिले तो उनकी बात सुनकर पायल बहुत घबरा गई कि वह बिना हाथ-पैरों के तीरंदाजी कैसे करेगी?
बस यही वह क्षण था जब कोच कुलदीप ने उसकी मुलाकात को सकारात्मक रुख दिया। उन्होंने उन्हें बिना हाथों के तीरंदाजी करने वाली अनेक हस्तियों के बारे में बताया और कहा कि जब वे सब कर सकते हैं, तो तुम भी कर सकती हो। वैसे भी अभी भी तो तुम बिना हाथ-पैरों के चित्र बना रही हो। इस बात ने पायल को संबल प्रदान किया।
जब पायल पहली बार अकादमी गई तो वहां पर सबके हाथ-पैर थे। बच्चे हाथों से धनुष पकड़ते थे। यह देखकर पायल फिर घबरा गई तो कोच ने कहा, ‘चिंता मत करो, तुम इन सबसे अच्छा कर सकती हो।’ पायल के लिए खास धनुष भी बनाया गया। उससे वह नेशनल चैंपियन बनीं।
जीतने के बाद पायल के अंदर आत्मविश्वास कूट-कूट कर भर गया है। अब वे इसी में अपना करिअर बनाकर देश का नाम रोशन करना चाहती हैं। पायल ने अपने धैर्य और आत्मविश्वास से यह साबित कर दिया है कि इच्छा हो तो हर कठिन मार्ग को पार किया जा सकता है।
इची-गो-इची-ए अत्यंत सकारात्मक और सार्थक शब्द है। इस शब्द को प्रत्येक व्यक्ति को न केवल जानना और समझना चाहिए, अपितु अपने जीवन में भी उतारना चाहिए। शब्दों की गहराई में उतरकर ही उसके अर्थ को अपने अंदर महसूस किया जा सकता है। हो सकता है कि एक अवधि में मिलने वाला कोई व्यक्ति आपको जीवन की नई राहें दिखा दे, आपकी समस्याओं को दूर भगा दे। इसके साथ ही आपके अंदर यह भावना भी अवश्य जन्म लेनी चाहिए कि आप भी किसी के जीवन में इची-गो-इची-ए के माध्यम से उनके मार्ग को सुनहरा बना दें। उनके कांटों को दूर करने में साधक बनें। बाधक जहां नकारात्मक शब्द है, वहीं साधक सकारात्मक और ऊर्जा से भरपूर। ऊर्जा, जोश और आत्मविश्वास व्यक्ति के अंदर हर चुनौती से लड़ने की सामर्थ्य उत्पन्न कर देते हैं। इची-गो-इच-ए की अवधारणा अपने अंतर्मन में उतारें, आपका तन-मन चमत्कृत तरह से जाग्रत हो उठेगा।