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हर तरफ धंधा ही धंधा, बाकी सब मंदा

04:00 AM May 28, 2025 IST
हर तरफ धंधा ही धंधा  बाकी सब मंदा
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डॉ. हेमंत कुमार पारीक

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जो धंधा आईपीएल में दिखता है वह कहीं नजर नहीं आता, चाहे ट्वेंटी-ट्वेंटी हो अथवा टेस्ट क्रिकेट। अगर किसी बेरोजगार भाई को एक बार मौका मिल गया तो उसकी बल्ले-बल्ले समझो। इसलिए अब कोई दीगर गेम खेलने की न सोचता। चार-पांच दिन दिहाड़ी करो और उसके बाद ठन-ठन गोपाल! क्या मतलब? रुपये में चमक होती है और मैदान में चकाचौंध। चारों तरफ लाइट, कैमरा और कट। चौके-छक्के पर मर मिटता है आम आदमी। उसकी नियति तो यही है कीड़े-मकौड़े जैसी। तभी तो बाजार में भीड़ होती है और फुटपाथ पर रात में सोलर लाइट के उजाले में एक के साथ एक फ्री चलता है। चाहे पेंट-कमीज हो, जींस, बिकनी, स्वेटर या मफलर।
धंधे रात में ज्यादा चलते हैं। यथा रात में जो क्रिकेट खेला जाता है उसमें स्टेडियम खचाखच भरा रहता है। चारों तरफ चमकते मोबाइल की लाइट। जिन्हें टीम इलेवन में जगह न मिलती उन्हें भी मलाल न रहता। पैसा कहीं से भी आए कोई बात नहीं। चालीस साल कुर्सी तोड़ने के बाद बाबू या मास्टर को क्या मिलता है जो एक क्रिकेट खिलाड़ी महीने भर के सीजन में कमा लेता है। कुंभ का इंतजार समझदार इंसान नहीं करता।
जहां बाजार है धंधा वहीं है। घर से बाहर बाजार में खड़े रहो बस। अपनी बोली का इंतजार करो। अगर लग गयी तो गंगा नहा ली। चुल्लूभर पानी छिड़का और बोला हर-हर गंगे! बस पट्टा घुमाना ही तो है। यहां किस्मत काम आती है। लग गयी तो बुलेट ट्रेन वरना धक्के पर मालगाड़ी।
देख लो उनका अता-पता नहीं है। वरना रोज सुबह जनता झाड़ू दर्शन लाभ करती थी। अब न जाने कहां बसेरा है? कारों के काफिले के साथ गए थे। पर अब एक कार भी नजर न आती। झाड़ू वाले भी न दिखते। वरना इधर-उधर झाड़ू चलाते दिख जाते थे। यही तो बाजार की कलाकारी है। कभी किसी को अर्श से उठाकर फर्श पर पटक देता है तो कभी वाइस वर्सा। गोडाउन में सड़ते माल को भी तो ठिकाने लगाना होता है। तभी तो बाजार में सीजनल दुकानें भी होती हैं। गर्मी में ठण्डे कपड़े और ठण्ड में गर्म कपड़े। कहीं-कहीं सीजन के हिसाब से दुकान के नाम बदल जाते हैं।
फिलहाल ड्रोन और मिसाइल का धंधा जोरों पर है। आग लगा दी और आग बुझा दी। एक हाथ में माचिस और दूसरे में पानी की बाल्टी। कारण कि बात धंधे की है। वरना अरबों डॉलर के माल का क्या होगा? धंधा धंधा होता है। धंधे में आदमी इमोशनल न होता। यारी दोस्ती चलती रहती है। दुकान पर हर खरीदार एक समान होता है। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर!

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