स्थापित हुआ आतंकवाद के खिलाफ ‘मोदी सिद्धांत’
अब भारत के राजनयिकों और राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी है कि वे दुनिया को यह समझाएं कि ऑपरेशन सिंदूर की वैधता क्या है, पाकिस्तान पर आतंकवाद समाप्त करने का दबाव डाला जाए, और यह स्पष्ट किया जाए कि दो परमाणु संपन्न देशों के बीच तनाव की पहली सीढ़ी खुद एक आतंकी हमला होता है — और इसलिए पहलगाम हमला अपने आप में एक ‘एस्केलेटरी’ कदम था।
विवेक काटजू
भारतीय रक्षा बलों द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संचालन के साथ, स्वीकार्य न होने वाले पाकिस्तानी आतंकी हमले से निपटने के संबंध में एक निर्णायक ‘मोदी सिद्धांत’ अब पूरी तरह से स्थापित हो चुका है। इस सिद्धांत की शुरुआत 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक से मानी जा सकती है। इन सर्जिकल स्ट्राइक्स में नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के आतंकी लॉन्च पैड्स को निशाना बनाया गया था। इनकी खासियत यह थी कि भारत ने पहली बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि उसने आतंकवादी हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई की है।
दूसरी बार प्रधानमंत्री ने फरवरी, 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद सैन्य बल प्रयोग की अनुमति दी। भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में एक आतंकी ठिकाने को निशाना बनाया था। अगले दिन, भारत और पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों के बीच मुठभेड़ हुई। उस डॉगफाइट में एक भारतीय पायलट को पाकिस्तान में पैराशूट से उतरना पड़ा। पाकिस्तानी अधिकारियों ने तत्काल उसे भारत को सौंप दिया ताकि स्थिति और न बिगड़े। हालांकि उन्होंने यह भी दावा किया कि बालाकोट हमले से कोई नुकसान नहीं हुआ।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ इस दृष्टि से अलग रहा है कि इसमें तीनों सेनाओं — थल सेना, वायु सेना और नौसेना — ने मिलकर काम किया। इसके तहत उन मुख्य आतंकी संगठनों के मुख्यालयों को निशाना बनाया गया जो जम्मू-कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में आतंकवाद फैला रहे थे। सात मई की सुबह, नौ आतंकी अड्डों पर हमले किए गए। खास तौर पर, यह अभियान लश्कर-ए-तैयबा के मुरिदके स्थित मुख्यालय और जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित मुख्यालय पर केंद्रित था। ये दोनों आतंकी संगठन भारत में विशेष रूप से घृणा का विषय हैं, क्योंकि इन्होंने अतीत में बेहद घातक हमले किए हैं।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर ब्रीफिंग देते हुए कहा, ‘पाकिस्तान-प्रशिक्षित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में भारतीय पर्यटकों पर बर्बर हमला किया, जिसमें 26 लोगों की हत्या कर दी गई... इस हमले में विशेष रूप से क्रूरता दिखाई गई, क्योंकि अधिकतर पीड़ितों को उनके परिवार के सामने बहुत नजदीक से गोली मारकर मारा गया। परिवारजनों को जानबूझकर इस तरह से प्रताड़ित किया गया कि वे यह भयावह संदेश लेकर लौटें।’ उन्होंने आगे कहा’ ‘एक संगठन जिसने खुद को ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ कहा है, उसने हमले की जिम्मेदारी ली है, लेकिन यह यूएन द्वारा प्रतिबंधित पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही एक मुखौटा संगठन है।’
पहलगाम आतंकी हमला न केवल व्यापक आक्रोश का कारण बना, बल्कि इसलिए भी कि यह पूरी तरह से सांप्रदायिक नजरिया लिये था और निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया गया था। लश्कर और इसके नेता हाफिज सईद को भारत के राष्ट्रीय मानस में विशेष घृणा के साथ देखा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही 26/11 मुंबई हमला किया था। भारत को यह भी नहीं भूला है कि पाकिस्तान इस हमले के दोषियों को न्याय के कठघरे में नहीं लाया, भले ही उसने लश्कर की भूमिका को स्वीकार किया था।
इसी तरह जैश और इसके नेता मसूद अजहर को लेकर भी भारत में अत्यधिक आक्रोश है, क्योंकि इसके कारण ही कंधार विमान अपहरण हुआ और 2001 में संसद पर हमला भी हुआ। पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के प्रोत्साहन से ही जैश ने 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हमला किया, जिससे प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया विफल हो गई।
इसलिए बहावलपुर और मुरिदके पर हुए हमले भारतीयों के लिए गहरा महत्व रखते हैं। ये संगठन और इनके नेता वस्तुतः पाकिस्तानी राज्य के ही अंग हैं, जिन्हें एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए पाकिस्तान को मजबूरन निशाना बनाना पड़ा। लेकिन ये कार्रवाई महज दिखावटी थीं। वास्तव में, ये दोनों संगठन पाकिस्तानी समाज के कुछ वर्गों में इतनी गहरी पैठ बना चुके हैं कि इन्हें हटाना अब पाकिस्तान की सेना और राज्य के लिए बेहद कठिन है — और वे इस लागत को चुकाने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि आतंक अब उनके सुरक्षा सिद्धांत का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
भारत आज मोदी सरकार के साथ एकजुट खड़ा है, लेकिन ऐसे समय में जब राष्ट्रीय भावनाएं उफान पर हैं, तब भी यह जरूरी है कि पाकिस्तान की प्रतिक्रिया की ठंडे दिमाग से समीक्षा की जाए। इसके साथ ही यह आकलन भी जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत की इस सैन्य कार्रवाई को कैसे देखेगा।
इस लेख के लिखे जाने तक, पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि भारतीय हमलों में उसके 26 नागरिक मारे गए और 40 से अधिक घायल हुए हैं। उसने यह भी दावा किया है कि उसने भारत के पांच विमान गिरा दिए और एक ब्रिगेड मुख्यालय नष्ट कर दिया। इसके अलावा 2021 की एलओसी और आईबी पर बनी संघर्षविराम संधि अब टूट चुकी है — क्योंकि पाकिस्तान ने तोपों से हमला शुरू कर दिया है, जिसमें भारत के कई जवान शहीद हुए हैं। भारतीय सेना भी उसी अंदाज में जवाब दे रही है।
पाकिस्तानी सेना हमेशा खुद को वहां की जनता का अंतिम रक्षक बताती रही है। इसलिए उसके लिए यह डीएनए में है कि वह किसी भी भारतीय सैन्य कार्रवाई का ‘उचित’ जवाब दे, खासकर तब जब नागरिक हताहत हुए हों। और क्योंकि मुरिदके और बहावलपुर के अलावा हिज़्बुल मुजाहिदीन के ठिकानों को भी निशाना बनाया गया है, इसलिए आतंकी नेताओं से भी जबर्दस्त दबाव होगा कि भारत को ‘सबक सिखाया’ जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत सरकार और रक्षा बलों ने इस ऑपरेशन में सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए पूरी तैयारी की है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रमुख चिंता यही है कि भारत-पाकिस्तान के बीच शत्रुता तुरंत खत्म हो। अमेरिकी राष्ट्रपति की ऑपरेशन सिंदूर की खबर सुनने पर पहली प्रतिक्रिया यही थी कि स्थिति जल्द शांत होनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का मुख्य डर यह है कि कहीं यह तनाव दो परमाणु संपन्न देशों के बीच एक खतरनाक शृंखला की शुरुआत न कर दे। इसलिए वो संयम की अपील करेगा और संभव है कि सुरक्षा परिषद आज ही की बैठक में ऐसा कोई बयान जारी करे। अगर पाकिस्तान संयम रखता है और भारतीय ठिकानों पर कोई जवाबी हमला नहीं करता, तो तनाव और बढ़ने से रोका जा सकता है। लेकिन अगर उसने ऐसा किया और उसमें बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि हुई, तो मोदी सरकार पर घरेलू स्तर पर जबर्दस्त दबाव आएगा।
अब भारत के राजनयिकों और राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी है कि वे दुनिया को यह समझाएं कि ऑपरेशन सिंदूर की वैधता क्या है, पाकिस्तान पर आतंकवाद समाप्त करने का दबाव डाला जाए, और यह स्पष्ट किया जाए कि दो परमाणु संपन्न देशों के बीच तनाव की पहली सीढ़ी खुद एक आतंकी हमला होता है— और इसलिए पहलगाम हमला अपने आप में एक ‘एस्केलेटरी’ कदम था।
लेखक भारत सरकार के पूर्व विदेश सचिव हैं।