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सुरक्षा में रणनीतिक गेम चेंजर बनी ब्रह्मोस

04:00 AM May 24, 2025 IST
सुरक्षा में रणनीतिक गेम चेंजर बनी ब्रह्मोस
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हालिया सैन्य कार्रवाई में भारत ने सटीकता से लक्ष्य नष्ट करने में सक्षम ब्रह्मोस मिसाइल सुखोई एमकेआई-30 से छोड़ी। हमले का मकसद हासिल कर पायलटों के लिए न्यूनतम जोखिम यकीनी बनाया। कम ऊंचाई पर उड़ान व सुपरसोनिक क्रूज प्रोफ़ाइल ने इसकी श्रेष्ठता सिद्ध की। तकनीकी युद्धक तरीकों के चलते ब्रह्मोस रणनीतिक गेम चेंजर बन रही है।

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एयर मार्शल अमित तिवारी (अ.प्रा.)

महायुद्ध के दौरान वायु सेना के महारथी कहा करते थे कि हवाई ताकत स्वाभाविक रूप से आक्रामक होती है और इसको अपना काम करने की पूरी छूट होनी चाहिए, जीत के लिए हवाई युद्ध में श्रेष्ठता होना आवश्यक है; बमवर्षक दुश्मन की रक्षा में सेंध लगा देते हैं और इसके बाद रणनीतिक बमबारी के जरिए उसकी इच्छाशक्ति को तोड़ा जा सकता है। हालिया सैन्य कार्रवाई में, भारतीय वायु सेना द्वारा हवा से प्रक्षेपित ब्रह्मोस का समायोजन सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से करने की सार्थकता फिर पुष्टि करती है कि यह सिद्धांत अभी भी उतना ही सही है, जिसकी वजह से पाकिस्तान युद्ध विराम का अनुरोध करने को मजबूर हुआ।
1983 में, भारत सरकार ने एकीकृत गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम का गठन किया। शुरुआत में यह बैलिस्टिक मिसाइलों पर केंद्रित था। लेकिन 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान इराकी वायु रक्षा प्रणालियों पर अमेरिकी युद्धपोतों और हवाई जहाजों से प्रक्षेपित टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों के विनाशकारी प्रभाव ने भारत को इसका दायरा बढ़ाने को प्रेरित किया। साल 1998 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने रूसी समकक्ष के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत ब्रह्मोस एयरोस्पेस संयुक्त उद्यम की स्थापना की गई। साल 2001 में ब्रह्मोस का पहला टैस्ट लॉन्च किया गया।
ब्रह्मोस एक दो-चरणीय क्रूज मिसाइल है, जिसके प्रथम चरण प्रकोष्ठ में एक ठोस प्रोपैलेंट बूस्टर भरा रहता है, जो मिसाइल को सुपरसोनिक (आवाज की गति) बना देता है। अपना काम पूरा करने के बाद, इस प्रकोष्ठ के अलग होने के उपरांत, आगे की उड़ान एक तरल-ईंधन चालित रैमजेट इंजन से होती है। जो इसे मैक-3 (ध्वनि की गति से तीन गुणा) जितनी क्रूज़िंग रफ्तार प्रदान करता है। यह मिसाइल 15 किमी की ऊंचाई लेकर महज 10 मीटर के बीच उड़ान भर सकती है और इसकी कार्य सीमा 300-800 किमी तक हो सकती है। यह 200-300 किलोग्राम तक का पारंपरिक वारहेड (विस्फोटक) ले जा सकती है और ‘फायर-एंड-फॉरगेट’ सिद्धांत पर काम करती है। दागे जाने के बाद, यह इनर्शियल नेविगेशन, उपग्रहीय मार्गदर्शन और इलाके की भूगोलीय रूपरेखा के मिलान का उपयोग करके अपने लक्ष्य तक स्वायत्त रूप से पहुंचती है, और एक मीटर से भी कम की सटीकता से वार करने में समर्थ है।
हवा-से-सतह पर मार करने वाला इसका संस्करण 2017 में बना और इसे 2020 में स्क्वाड्रन 222, टाइगर शार्क्स में शामिल किया गया था। ब्रह्मोस को इसकी परम गति, सटीकता और गतिज प्रभाव सबसे घातक पारंपरिक क्रूज मिसाइलों में से एक बनाती है। ब्रह्मोस की गति से बनने वाले सीधे प्रबलित प्रहार का आघात गहरे बंकरों, युद्धपोतों या कमांड सेंटर तक को नष्ट कर सकता है। इसकी गतिज यानी काईनैटिक ऊर्जा अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइल से 32 गुना अधिक है।
जैसे-जैसे थल आधारित वायु रक्षा प्रणालियां अधिक सटीक एवं घातक होती जा रही, हवाई माध्यम (लड़ाकू विमान) को अपने काम को अंजाम देने में जो स्वतंत्रता पहले कभी हासिल थी, वह कम होती जा रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध इसका जीवंत उदाहरण है। शुरुआती चरणों में अपने-अपने विमान बेड़े का भारी नुकसान उठाने के बाद, दोनों पक्षों ने युद्धग्रस्त क्षेत्रों में उड़ान भरने से परहेज करने और लंबी दूरी के हवाई हथियारों पर भरोसा करना शुरू किया।
यही तरीका हालिया भारत-पाक टकराव में देखने को मिला। न तो भारतीय और न ही पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एक-दूसरे देश की वायु सीमा में दाखिल हुए। पाकिस्तानी हमलों में ज्यादा निर्भरता तुर्किये निर्मित ड्रोनों पर रही, जिनमें अधिकांश मार गिराये गये। पाकिस्तान ने ‘फतह’ नामक बैलेस्टिक मिसाइल का भी उपयोग किया। इन बैलिस्टिक मिसाइलों का राडार क्रॉस-सेक्शन मार्क अधिक होता है और वे एक पूर्वानुमानित लीक, उच्च-ऊंचाई वाले परवलयिक प्रक्षेप पथ (हाई आल्टीट्यूड पैराबॉलिक ट्रैजेक्ट्री) का अनुसरण करती हैं। यह उनकी कमजोरी भी बन जाता है, जिसका आकलन करके, उन्हें हवा में ही नष्ट करना आसान हो जाता है। निश्चित रूप से, भारत ने तमाम हमलावर मिसाइलों को मार गिराया। इसके विपरीत, भारत ने एकदम सटीकता के साथ लक्ष्यों को नष्ट करने की क्षमता रखने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों को सुखोई एमकेआई-30 से छोड़ा। हालांकि विस्तृत परिणाम गोपनीय ही रहेंगे, लेकिन इनकी मार का असर निर्विवाद है। इन मिसाइलों ने सटीक हमले के मकसद हासिल करते हुए, पायलटों के लिए न्यूनतम जोखिम सुनिश्चित किया। कम ऊंचाई पर उड़ने की अपनी क्षमता, सुपरसोनिक क्रूज प्रोफ़ाइल के कारण, ब्रह्मोस को मौजूदा वायु रक्षा प्रणालियों के साथ रोक पाना लगभग असंभव है।
भारतीय वैज्ञानिक पहले से ही भविष्य के अधिक घातक संस्करण, ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन) विकसित करने में लगे हैं। यह छोटी और हल्की होंगी और तेजस, मिराज़ और राफेल जैसे विमानों से छोड़ी जा सकेंगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह करते वक्त गति, दायरा, मारक क्षमता या चुपके से मार करने की विशेषता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे रडार से लैस करने से इनकी सटीकता और बढ़ जाएगी। ठीक इसके साथ, रूसी जिरकोन मिसाइल से प्रेरित, ब्रह्मोस-II के रूप में एक हाइपरसोनिक संस्करण विकसित किया जा रहा है। इसमें स्क्रैमजेट इंजन लगा होगा, जिससे गति 8 मैक से अधिक और रेंज 1,500 किमी से अधिक हो जाएगी। इसे रोकना असंभव होगा। यह मिसाइल सच में गेम चेंजर हो सकती है।
किसी देश के रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाने में हथियारों का निर्यात महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने वाला फिलीपींस 2022 में इसका पहला ग्राहक बना। वियतनाम और इंडोनेशिया ने भी दिलचस्पी दिखाई है। दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति से बनती चिंताओं के आलोक में, आसियान देशों द्वारा ब्रह्मोस खरीदना उनकी क्षेत्रीय प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती प्रदान कर सकता है। इस विशिष्ट बाजार में भारत के प्रवेश से एशियाभर में इसके सामरिक और आर्थिक संबंध मजबूत होंगे।
ब्रह्मोस की सफलता 'आत्मनिर्भर भारत' को बढ़ावा देने वाले सरकार के प्रयासों का एक उदाहरण है। इस मिसाइल में 70 प्रतिशत से अधिक कल-पुर्जे भारत निर्मित हैं। इसकी सफलता से डीआरडीओ, भारतीय उद्योगों और शिक्षाविदों के बीच सहयोग और नवाचार को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
ब्रह्मोस की सफलता युद्ध के मैदान की बदलती प्रकृति का प्रमाण है, जो अब रणनीति आधारित योजना से बदलकर तकनीकी रूप से संचालित युद्धक तौर-तरीकों की ओर बढ़ रही है, विशेष रूप से क्रूज मिसाइलों जैसे सटीक-निर्देशित हथियारों का उदय। सुरक्षा परिदृश्य में ब्रह्मोस एक सामरिक संपदा और रणनीतिक गेम-चेंजर बनने जा रही है।

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लेखक भारतीय वायुसेना की मध्य भारत कमान में एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ रहे हैं।

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