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सुरक्षा चुनौतियों के बीच पूर्ण राज्य का प्रश्न

04:00 AM May 02, 2025 IST
सुरक्षा चुनौतियों के बीच पूर्ण राज्य का प्रश्न
Srinagar: J&K Chief Minister Omar Abdullah with Deputy CM Surinder Kumar Choudhary and JKNC chief Farooq Abdullah addresses a press conference after all-party meet, in Srinagar, Thursday, April 24, 2025. (PTI Photo/S Irfan)(PTI04_24_2025_000426B)
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जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी नहीं है, पर एक परिपक्व राजनेता के रूप में उन्होंने ऐसा कहकर केंद्र सरकार पर नैतिक दबाव बनाया है। सवाल है कि क्या राज्य सरकार को जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का भागीदार नहीं बनाया जाना चाहिए?

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प्रमोद जोशी

पहलगाम हमले से कुछ हफ़्ते पहले ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाक़ात के बाद जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल होने को लेकर उम्मीद जताई थी। उस समय उन्होंने कहा था, हमें लगता है कि सही समय आ गया है, विधानसभा चुनाव हुए छह महीने बीत चुके हैं। शाह यहां आए थे, मैंने उनसे अलग से मुलाक़ात की, जो अच्छी रही... मुझे अब भी उम्मीद है कि जम्मू-कश्मीर को जल्द ही अपना राज्य का दर्जा वापस मिल जाएगा।
इसके पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने कहा था कि राज्य का दर्जा हमारा नैरेटिव है, यह भाजपा का वादा है। अब्दुल्ला को लोगों से किए गए वादों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। दो हफ्ते पहले राष्ट्रीय और खासतौर से जम्मू-कश्मीर की राजनीति में वक़्फ़ कानून को लेकर सरगर्मी थी, पर अब पहलगाम हमले के कारण हालात बदले हुए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इस हमले के कारण जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा मिलने में और विलंब होगा? क्या नेशनल कान्फ्रेंस इस मामले को उठाना बंद कर देगी?
11 दिसंबर, 2023 को, उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने को सर्वसम्मति से बरकरार रखा। साथ ही केंद्र सरकार को जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने और सितंबर 2024 से पहले विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया। पिछले साल चुनाव भी हो गए, पर राज्य के दर्जे की बहाली नहीं हुई है। नई सरकार बनने के बाद 19 अक्तूबर, 2024 को जम्मू-कश्मीर मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से राज्य का दर्जा बहाल करने का औपचारिक आग्रह भी कर दिया। उपराज्यपाल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी भी दे दी। अब अंतिम निर्णय केंद्र सरकार और संसद पर निर्भर है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को धीरे-धीरे हल करना चाहती है, ताकि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक स्थिरता बनी रहे। पहलगाम हमले ने इस स्थिरता को आंशिक रूप से भंग किया है। केंद्र सरकार अपने आत्मविश्वास में कमी नहीं दिखाना चाहती है। साथ ही हरेक कदम को वह अच्छी तरह सोच समझकर उठाएगी। फिलहाल तो उसका ध्यान पाकिस्तान को माकूल जवाब देने पर है, पर इससे निपटने के बाद संभवतः इस दिशा में भी फैसला होगा।
केंद्र-प्रशासित क्षेत्र होने के कारण जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल की शक्तियां बहुत अधिक हैं। कोई भी विधेयक या कानून बिना उनकी मंजूरी के पारित नहीं हो सकता। पूर्ण राज्य का दर्जा देने से काफी शक्ति स्थानीय सरकार के पास आ जाएगी, जिससे केंद्र का प्रत्यक्ष नियंत्रण कम हो जाएगा। केंद्र सरकार की रणनीति हो सकती है कि वह अभी इस क्षेत्र में अपनी प्रशासनिक पकड़ बनाए रखे। दूसरे अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद, जम्मू-कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया शुरू हुई है। पूर्ण राज्य का दर्जा देने से स्थानीय सरकार को इन नीतियों पर अधिक नियंत्रण मिल जाएगा, जो केंद्र की मौजूदा नीतियों के विपरीत भी हो सकता है।
व्यावहारिक रूप से इस मामले को ज़्यादा टालने का कोई मतलब नहीं है और आसार हैं कि भविष्य में संसद द्वारा पुनर्गठन अधिनियम में संशोधन के साथ यह दर्जा बहाल हो जाएगा। राज्य में हालात को सामान्य साबित करने के लिए भी ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर को उसका दर्जा वापस दिलाया जाए। केंद्रशासित क्षेत्र होने के कारण कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्य के अधीन नहीं है। और शायद यह एक बड़ा कारण है, जिसने इस फैसले को रोक रखा है। केंद्र सरकार ने कई बार साफ-साफ कहा है कि पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, पर पहलगाम की हिंसा ने फिर से अटकलों को जन्म दे दिया है।
उमर अब्दुल्ला राज्य का दर्जा वापस करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, जिसे अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ ही समाप्त कर दिया गया था। वे मानते हैं कि विशेष दर्जे की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में उन्होंने इस बात को तल्खी के साथ कहना बंद कर दिया है। अब्दुल्ला ने फरवरी में कहा था, हम इस मुद्दे को जीवित रखेंगे, जो हमने किया भी है... लेकिन हमने लोगों को यह कहकर कभी गुमराह नहीं किया कि वे एक ऐसी सरकार चुनने जा रहे हैं जो तुरंत विशेष दर्जा बहाल करेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों ने इसे हमसे छीन लिया, उनसे यह उम्मीद करना कि वे इसे हमें वापस देंगे, सिर्फ इसलिए कि हम इसके लिए कह रहे हैं, बेकार है। अब पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद उमर अब्दुल्ला ने प्रदेश की विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान एक संदेश दिया कि यह राजनीतिक अवसरवाद का समय नहीं है। राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करने के लिए सदन के कुछ सदस्यों के आह्वान को खारिज करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि मैं इस मौके का इस्तेमाल राज्य का दर्जा मांगने के लिए नहीं करूंगा। मैं सस्ती राजनीति में विश्वास नहीं करता। इस वक्त मुझे 26 लोगों की जान की परवाह करनी चाहिए, न कि केंद्र से राज्य का दर्जा मांगना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पर्यटकों की सुरक्षा की गारंटी देना हमारी मौलिक जिम्मेदारी थी और हम अपने कर्तव्य में विफल रहे।
जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी नहीं है, पर एक परिपक्व राजनेता के रूप में उन्होंने ऐसा कहकर केंद्र सरकार पर नैतिक दबाव बनाया है। सवाल है कि क्या राज्य सरकार को जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का भागीदार नहीं बनाया जाना चाहिए? विधानसभा का विशेष सत्र 22 अप्रैल को हुए क्रूर हमले पर चर्चा के लिए बुलाया गया था, जिसमें एक मिनट का मौन रखने और पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने के बाद सदन ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें देश और जम्मू-कश्मीर के सांप्रदायिक सौहार्द और प्रगति को बाधित करने की कोशिश करने वालों के नापाक इरादों को दृढ़ता से हराने का संकल्प लिया गया। अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य के दर्जे पर राजनीतिक बातचीत का समय बाद में आएगा।
पहलगाम में पर्यटकों की हत्या सुरक्षा के लिए धक्का होने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्र राज्य के लिए एक प्रकार की चुनौती है। जम्मू-कश्मीर एक दीर्घकालिक रणनीति पर चल रहा है, जिसका पहला कदम अनुच्छेद 370 को हटाना था। पिछले साल के अंत में राज्य में हुए सफल चुनावों ने यहां की जनता के मन में भरोसा भरा है। श्रीनगर तक रेलवे संपर्क स्थापित करना हमारी एक और बड़ी सफलता है। ज़ाहिर है कि पाकिस्तानी ‘डीप स्टेट’ को यह ‘नया कश्मीर’ पसंद नहीं आया है। भारत सरकार इस दौरान आतंकवाद पर केंद्रीय निगरानी के साथ राज्य का दर्जा देने की तैयारी कर रही है और इसका वादा उसने कई बार किया है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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