सुभाष की दयालुता
एक दिन सुभाष चंद्र बोस की माता प्रभावती देवी उनके अध्ययन कक्ष में आईं। उन्होंने देखा कि सुभाष की मेज से चीटियों की लंबी कतार किताबों की अलमारी की ओर जा रही थी। वे सोचने लगीं कि शायद अलमारी में कोई कीट मर गया हो, इसलिए उन्होंने अलमारी खोली और किताबें उलट-पलट कर देखने लगीं। तभी उन्हें दो मीठी रोटियां दिखाई दीं, जिनके कण चीटियां ले जा रही थीं। मां को यह समझते देर न लगी कि सुभाष ने किसी खास कारण से ये रोटियां रखी होंगी। तभी सुभाष कमरे में आए। मां ने पूछा, ‘बेटा, तुमने अलमारी में रोटियां क्यों रखी थीं?’ सुभाष ने जवाब दिया, ‘मां, आपने उन रोटियों को फेंक दिया? आपने बिल्कुल सही किया। दरअसल, मैं रोज अपने खाने से दो रोटियां बचाकर एक बूढ़ी भिखारिन को दिया करता था, जो मेरे स्कूल के रास्ते में खड़ी रहती थी। कल जब मैं रोटियां देने गया, तो वह नहीं मिली। सो, मैंने सोचा कि जब वह वापस मिलेगी, तो उसे दे दूंगा। लेकिन आज पता चला कि वह स्वर्ग सिधार चुकी हैं।’ सुभाष चंद्र बोस की माता उनके उत्तर को सुनकर कुछ देर तक उन्हें देखती रही।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी