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सामाजिक सुरक्षा ही सुनिश्चित करेगी खुशी

04:00 AM Mar 21, 2025 IST
सामाजिक सुरक्षा ही सुनिश्चित करेगी खुशी
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सरकारें क्या कभी स्थायी सामाजिक सुरक्षा, जिसमें आशियाना-आबोदाना और स्वास्थ्य लाभ शामिल हैं, उस पर सोचेंगी? यह किसी भी नागरिक को स्थायी खुशियां प्रदान करती हैं। फ़िनलैंड और नॉर्डिक देशों की सरकारों ने इसका ध्यान रखा, तभी वो सबसे आगे हैं!

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पुष्परंजन

गुरुवार को प्रकाशित ‘वर्ल्ड हैपीनेस रिपोर्ट 2025’ के अनुसार, फिनलैंड को लगातार आठवें साल दुनिया का सबसे खुशहाल देश घोषित किया गया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वेलबीइंग रिसर्च सेंटर द्वारा प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट में अन्य नॉर्डिक देश एक बार फिर खुशहाली रैंकिंग में शीर्ष पर हैं। फिनलैंड के अलावा, डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन शीर्ष चार में क्रमशः बने हुए हैं। आप क्या केवल धन से खुश हैं? यह बात विश्व खुशहाली रिपोर्ट का हिस्सा नहीं होती। पूरी जीवनशैली का आकलन इनकी रेटिंग का आधार होता है। किसी देश की रैंकिंग लोगों द्वारा जीवनशैली के लिए पूछे जाने पर दिए गए उत्तरों पर आधारित थी। यह अध्ययन एनालिटिक्स फर्म ‘गैलप’ और ‘संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क’ के साथ साझेदारी में किया गया था।
गैलप के सीईओ जॉन क्लिफ्टन ने कहा, ‘खुशी केवल धन या विकास के बारे में नहीं है- यह विश्वास, आपसी संबंध और यह जानने के बारे में है, कि लोग आपका साथ दे रहे हैं। अगर हम मजबूत समुदाय और अर्थव्यवस्था चाहते हैं, जो वास्तव में सरकार और समाज को जोड़ती है, तो हर साल होने वाला आकलन उस देश विशेष के काम आता है।’ दिलचस्प है, कि सारी दुनिया को ज्ञान देने वाला अमेरिका इस रेटिंग में 24वें स्थान पर आ गया है, जो 2012 में पहली बार रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद से उसका सबसे कम स्कोर है।
शोधकर्ताओं का कहना है, कि स्वास्थ्य और धन के अलावा, खुशी को प्रभावित करने वाले कुछ कारक भ्रामक रूप से सरल लगते हैं : दूसरों के साथ भोजन साझा करना, सामाजिक समर्थन के लिए किसी पर भरोसा करना और घर का आकार हमारे पैरामीटर्स थे। उदाहरण के लिए, मेक्सिको और यूरोप में, चार से पांच लोगों का घर खुशी के उच्चतम स्तर को दर्शाता है। नवीनतम निष्कर्षों के अनुसार, दूसरों की दयानतदारी पर विश्वास करना भी इस शोध का एक पहलू रहा है।
अध्ययन में पाया गया, कि नॉर्डिक राष्ट्र खोए हुए बटुए की अपेक्षित वापसी के मामले में शीर्ष स्थानों में शुमार हैं। खोया हुआ बटुआ से आशय वैसा धन, जिस पर उसके नागरिकों का हक़ है, या फिर वो पैसे भी, जो किसी ने मार लिये हों। नॉर्डिक देशों में बटुए की वापसी की वास्तविक दरें, लोगों की अपेक्षा से लगभग दोगुनी हैं।
खुशियों की रैंकिंग में शीर्ष 20 में यूरोपीय देशों का दबदबा है, लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। हमास के साथ युद्ध के बावजूद, इस्राइल 8वें स्थान पर आया। कोस्टा रिका 6वें, और मैक्सिको पहली बार शीर्ष 10 में शामिल हुए। कभी खुशी-कभी ग़म से संयुक्त राज्य अमेरिका मुक्त नहीं है। अब वह 24वें स्थान पर पहुंच गया है, इससे पहले 2012 में अमेरिका 11वें स्थान पर था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका में अकेले भोजन करने वाले लोगों की संख्या में 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चीन 68वें स्थान पर आया, जो पिछली रिपोर्ट में 60वें स्थान से नीचे है। ब्रिटेन 23वें स्थान पर है, जहां सरकार और समाज को हम सहिष्णु समझते हैं।
अफ़गानिस्तान को फिर से दुनिया का सबसे नाखुश देश माना गया है। अफ़गान महिलाओं का कहना है, कि उनका जीवन बद से बदतर होता गया है। पश्चिमी अफ्रीका में सिएरा लियोन दूसरे सबसे दुखी देश है। उसके बाद लेबनान है, जो नीचे से तीसरे स्थान पर है। सभी देशों को 2022 से 2024 के दौरान उनके स्व-मूल्यांकन किए गए जीवन के अनुसार रैंक किया गया है। इसमें खुशहाली को मापने के लिए छह प्रमुख कारकों का उपयोग किया जाता है- सामाजिक सहयोग, आय, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार की स्थिति।
सवाल यह है, कि इस पूरे पैरा मीटर में भारत कहां खड़ा है? 2012 से दुनिया के देशों में खुशहाली की रेटिंग शुरू हुई, इसलिए मोदी शासनकाल का आकलन अहम हो जाता है। मोदी शासन के पिछले 10 वर्षों में, भारत विश्व प्रसन्नता सूचकांक में 2014 में 111वें स्थान से 2024 में 126वें स्थान पर 15 पायदान नीचे गिर गया था। भारत लीबिया, इराक, फिलिस्तीन और नाइजर जैसे देशों से भी पीछे है। भारत ने अपने खुशहाली गुणांक में मामूली सुधार किया है, जो 2024 में 126वें स्थान से बढ़कर इस साल 118वें स्थान पर पहुंच गया है। हैरानी की बात यह है, कि भारत यूक्रेन, मोजाम्बिक, ईरान, इराक, पाकिस्तान, फिलिस्तीन, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, युगांडा, गाम्बिया और वेनेजुएला जैसे संघर्ष प्रभावित देशों से भी अधिक तकलीफ़देह स्थिति में है।
सवाल यह है, कि क्या भारत में बूढ़े होते जा रहे लोग खुशहाल हैं? रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत की वृद्ध आबादी दुनियाभर में दूसरी सबसे बड़ी है, जिसमें 140 मिलियन भारतीय 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं। भारतीय बुजुर्ग, 250 मिलियन चीनी समकक्षों के बाद दूसरे स्थान पर हैं। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि वृद्धों, पुरुषों, विधवाओं और विशेष रूप से औपचारिक शिक्षा से वंचित लोगों के लिए आरामदायक जीवन व्यवस्था सुनिश्चित करने तथा भेदभाव को कम करने के लिए सामाजिक नेटवर्क को मजबूत करके वृद्धावस्था में खुशहाली को बढ़ाया जा सकता है।
भारत की वृद्ध होती आबादी जटिल स्थिति से गुज़र रही है, जिनमें आर्थिक असुरक्षा, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और सामाजिक सहायता की आवश्यकताएं शामिल हैं। करीब 30 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाएं और 28 फीसद बुजुर्ग पुरुष कम से कम एक दीर्घकालिक रुग्णता जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गठिया आदि से पीडि़त हैं, जिसके कारण उनकी रूटीन गतिविधियां प्रभावित होती दिखती हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने इसका आसान-सा रास्ता निकाला है, बुजुर्गों को काशी-मथुरा, चार धाम तीर्थ यात्रा करवा दो, वो प्रसन्न हो जायेंगे। यानी तथाकथित ज़िम्मेदारी पूरी हुई।
24 जनवरी, 2025 को एक खबर आई, ‘हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने ‘मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना’ का विस्तार किया है। इसमें महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज को भी शामिल कर लिया गया। इस योजना के तहत बीपीएल परिवार के 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को सरकारी खर्च पर कुंभ मेले में ले जाया जाएगा। उन्नाव और देश के कई स्थानों से बुजुर्गों को कुम्भ मुफ्त लेकर जाने की ख़बरें आई थीं। हम ये नहीं कहेंगे, कि बुजुर्गों को धार्मिक स्थलों का दर्शन कराना ग़ैर ज़रूरी है। लेकिन, सरकारें क्या कभी स्थायी सामाजिक सुरक्षा, जिसमें आशियाना-आबोदाना और स्वास्थ्य लाभ शामिल हैं, उस पर सोचेंगी? यह किसी भी नागरिक को स्थायी खुशियां प्रदान करती हैं। फ़िनलैंड और नॉर्डिक देशों की सरकारों ने इसका ध्यान रखा, तभी वो सबसे आगे हैं!

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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