For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

साधिका की दृष्टि से जीवन के बिंब

04:05 AM Mar 02, 2025 IST
साधिका की दृष्टि से जीवन के बिंब
Advertisement

शील कौशिक
स्व. आशा जी का जीवन संघर्षमय रहा। वे एक सफल शिक्षिका रहीं। सेवानिवृत्ति के बाद, वह अपने अनुभव और विचार डायरी में लिखती रहीं। कबीर को पढ़ते-गुनते आशा जी ने लेखनी थाम ली। उन्हें कबीर के अनेक दोहे कंठस्थ थे। कबीर में उनकी अटूट आस्था देखकर उनके सहकर्मी उन्हें कबीर की परछाई कहते थे। वे स्वयं लिखती हैं, ‘जुबान से कंठ में, कंठ से हृदय में इस तरह समा गई कि वह मेरी जीवन शैली बन गई और अंततः यह मेरे जीवन का अंग बन गई। मैं कबीर को जीने लगी।’
सांसों की सरगम, बुलंद आवाज, अंधेरे को कोसो मत—इनकी हिंदी में पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। पुस्तक को 11 अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिसमें कबीर के प्रवचन, संदेश, शिक्षा और चेतावनी, उनके दोहे, साखियां अभिव्यक्त हुई हैं। इन पदों की भाषा सहज, सरल, सटीक तथा जीवनानुभवों से निकली है। कबीर कहते थे कि उन्होंने मसि और कागद को कभी नहीं छुआ था और चारों युग का महात्म्य मुंह से ही बखाना था। शिष्यों ने उनके कंठस्थ पद ‘बीजक’ रूप में संकलित किए।
सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव जी ने ‘आदिग्रंथ’ में गुरुओं की बानियां संकलित कीं, जिसमें कबीर का नाम भी है। ‘आदिग्रंथ’ में कबीर के 1146 पद्य हैं, जिनमें 244 साखियां और गेय पद हैं। काशी-नागरी-प्रचारिणी द्वारा प्रकाशित ग्रंथ में कबीर के रचित ग्रंथों की सूची 60 से ऊपर बताई गई है। ‘कबीर की ग्रंथावली’ को उनके जीवनकाल में लिखा गया अब तक का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। आशा जी ने इसे विस्तार से प्रस्तुत किया है।
सचमुच, कबीर की वाणी एक ऐसा आईना है, जिसमें कोई भी अपना असली चेहरा देख सकता है। विभिन्न संदर्भ ग्रंथों की सूची कृति की प्रामाणिकता सिद्ध करती है। पुस्तक का पठन उपरांत ऐसा महसूस होता है कि कबीर एक बार फिर से जीवित हो गए हैं।

Advertisement

पुस्तक : परछांई आशा की लेखिका : आशा भागवत प्रकाशन : सप्तऋषि पब्लिकेशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 140 मूल्य : रु. 280.

Advertisement
Advertisement
Advertisement