सांस्कृतिक विरासत के प्रति जिम्मेदारी भी जरूरी
पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत का संबंध एक-दूसरे को बढ़ावा देने वाला है, जो न केवल आर्थिक विकास का स्रोत है, बल्कि समाज में सांस्कृतिक समझ और संरक्षण को भी प्रोत्साहित करता है। यह समृद्ध विरासत और पर्यटन उद्योग के संतुलन से ही स्थिर और समावेशी विकास संभव है।
प्रो. सुखदेव सिंह
संयुक्त राष्ट्र पर्यटन महासभा ने 2017 में अपने 22वें सत्र में सांस्कृतिक पर्यटन को एक ऐसी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया, जहां ‘पर्यटक की प्राथमिक प्रेरणा पर्यटन स्थल के मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक आकर्षणों-उत्पादों की खोज करना, सीखना, अनुभव करना और उनकी सराहना करना और आनंद लेना है।’
हाल के वर्षों में, स्थापत्य-सांस्कृतिक विरासत की समझ को केवल पुरातात्विक खंडहरों तक सीमित रखने के बजाय, इसे ‘जीवित विरासत’ तक विस्तारित किया गया है। अब इसे न केवल तीर्थयात्रा, बल्कि मनोरंजन, अनुभव और विश्राम की यात्रा के रूप में भी देखा जाता है। इस बदलाव ने पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत संरक्षण को एक प्रमुख उद्योग के रूप में विकसित किया, जो आतिथ्य, आवास, परिवहन और अन्य व्यवसायों के लिए उत्प्रेरक बन गया है। इसलिए, सरकारें सांस्कृतिक विरासत को पर्यटन से जोड़ रही हैं।
पर्यटन उद्योग समाज के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों को लाभ पहुंचाता है, जैसे स्थानीय व्यवसाय, ट्रांसपोर्टर, टूअर गाइड, होटल, कारीगर आदि। यह न केवल पर्यटन स्थल पर, बल्कि यात्रा के रास्ते में भी व्यवसाय को बढ़ावा देता है। सांस्कृतिक विरासत को पर्यटन से जोड़ने से रोजगार, विकास, अंतर-सांस्कृतिक समझ और सांस्कृतिक संरक्षण की संभावनाएं उत्पन्न होती हैं। पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत के बीच संबंध पारस्परिक है, जहां पर्यटन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में मदद करता है। इस प्रकार, सांस्कृतिक विरासत पर्यटन उद्योग का अहम हिस्सा बन रही है।
पर्यटन एक लाभ और आर्थिक विकास पर आधारित उद्योग है, जबकि सांस्कृतिक विरासत पहचान और इतिहास से जुड़ी होती है। पर्यटन के लिए सांस्कृतिक विरासत एक वस्तु है, जो आय का स्रोत बन सकती है, जबकि सांस्कृतिक विरासत के लिए पर्यटन एक पोषक तत्व है। सांस्कृतिक विरासत केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि एक समुदाय की संस्कृति, रीति-रिवाज, मूल्यों, कलाकृतियों और स्थानों का प्रतीक है, जो लोगों को उनके अतीत से जोड़ता है और उनकी पहचान को परिभाषित करता है।
जैसे-जैसे सांस्कृतिक विरासत पर्यटन उद्योग के फलने-फूलने की संभावना बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे जिम्मेदारियां भी बढ़ती जा रही हैं। पर्यटन उद्योग की सफलता और उससे लाभ उठाने के लिए, उपरोक्त सभी लाभार्थी क्षेत्रों को पर्यटकों के लिए प्रामाणिक और आनंददायक अनुभव प्रदान करने हेतु मिलकर काम करने के लिए तैयार होना चाहिए। जबकि पर्यटन उद्योग संचालकों और कार्यकर्ताओं को पर्यटकों को सांस्कृतिक विरासत स्थलों के प्रोटोकॉल को समझना और उनका सम्मान करना सिखाना चाहिए, वहीं विरासत-स्थल प्रबंधकों को यह स्वीकार करना होगा कि विरासत स्थलों के शिष्टाचार, प्रोटोकॉल और पवित्रता के बारे में पर्यटक उतने जागरूक नहीं हैं, जितना कि स्थानीय आबादी। पर्यटकों को यह समझना होगा कि सांस्कृतिक विरासत स्थल सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं है। यात्रा शुरू करने से पहले और यात्रा के दौरान, टूअर गाइड पर्यटकों को स्थानीय रीति-रिवाजों और जीवनशैली का पालन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। पर्यटकों को स्थानीय लोगों के साथ उस सीमा तक ही बातचीत करने और घुलने-मिलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि इससे उनकी निजता और व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप न हो।
सांस्कृतिक विरासत संरचनाओं, स्थलों और अन्य कला एवं शिल्प उत्पादों से लाभ उठाने के लिए उनका बेहतर संरक्षण, प्रबंधन और प्रदर्शन आवश्यक है। सांस्कृतिक विरासत स्थलों संबंधित नए शोध-आधारित आख्यानों को जोड़कर, उन्हें उचित देखभाल प्रदान करके और जागरूकता बढ़ाकर, पर्यटन उद्योग उनके महत्व को बढ़ा सकता है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बढ़ते पर्यटन से भीड़भाड़ बढ़ सकती है और पर्यावरणीय गिरावट से लोगों का जीवन बेहतर नहीं होता है। स्थानीय जनता के लिए यह असुविधाजनक और अप्रिय हो सकता है। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि सांस्कृतिक विरासत स्थल में अधिक रुचि पैदा करने और अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन उद्योग संचालक द्वारा बनाई गई कहानियों में दी गई जानकारी की प्रामाणिकता से समझौता न किया जाए।
भारत की कृषि, कला, वास्तुकला, शिल्प और दर्शन की विविध परंपराएं और साथ ही इसकी भौगोलिक, जातीय, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता इसकी समृद्ध विरासत का वर्णन करती हैं। विरासत स्थलों के अलावा, भारत में पर्यटन उद्योग की भी समृद्ध संभावनाएं हैं, जिसके लिए अच्छे और सुचारु परिवहन, स्वच्छ पर्यावरण और वातावरण, ईमानदार व्यवहार, लेन-देन और आख्यान, स्पष्ट और पारदर्शी नीतियों आदि पर आधारित बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता है। यदि सांस्कृतिक विरासत को भी पर्यटन उद्योग के एक अन्य घटक के रूप में शामिल किया जाए तो जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। पर्यटन उद्योग न केवल रोजगार और आर्थिक विकास के चालक के रूप में समावेशी है, बल्कि एक जिम्मेदारी के रूप में भी समावेशी है। इसलिए, पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत के बीच संतुलन और पूरक संबंध विकसित करना आवश्यक है।