सांस्कृतिक और भाषाई धाराओं का भी संगम
महाकुंभ केवल एक धार्मिक स्नान पर्व नहीं, बल्कि यह भारत की विविध संस्कृतियों का अद्वितीय संगम है। इसमें विभिन्न धार्मिक परंपराओं, भाषाओं, पहनावों और खानपान की विविधताएँ एक साथ मिलती हैं। कुंभ मेला भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं का जीवंत प्रदर्शन है, जिसमें देशभर से लोग अपनी आस्थाओं और परंपराओं के साथ शामिल होते हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक है, बल्कि एक सांस्कृतिक सम्मेलन भी है, जो भारत की बहुरंगी धरोहर को प्रदर्शित करता है।
धीरज बसाक
महाकुंभ महज एक धार्मिक स्नान पर्वभर नहीं है बल्कि यह भारत की विविध संस्कृतियों का महाकुंभ भी है। कुंभ में भारत के कोने-कोने की विविध संस्कृतियों और परंपराओं का विराट संगम होता है।
विविधता का प्रतिनिधित्व
वास्तव में महाकुंभ भारत की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं का बेमिसाल मंच है। कुंभ में भारत के कोने-कोने के लोग आते हैं और अगर ब्योरे और आंकड़ों के आधार पर देखें तो करीब करीब पूरी दुनिया में बसे वे लोग जिनका सनातन परंपरा से रिश्ता है तथा जो भारत की इस बहुसांस्कृतिक विविधता के प्रशंसक हैं, वह भी कुंभ में हिस्सेदारी करने आते हैं। इस तरह देखें तो महाकुंभ भारत की धार्मिक विविधता का अनूठा मंच है। महाकुंभ में भारत के विभिन्न सम्प्रदायों और परंपराओं के साधु, संत, अखाड़े और भक्त शामिल होते हैं।कुंभ के दौरान शैव, वैष्णवों, नागा साधु, उदासीपंथ और कई अन्य धार्मिक समुदायों के बीच चाहे जिस भी तरह के विभेद हों, वे सारे विभेद महाकुंभ में सम्मिलित होने के मुद्दे पर खत्म हो जाते हैं। सभी पंथों, समुदायों के साधु, संन्यासी और भक्त इसमें पूरी श्रद्धा और आस्था से हिस्सा लेते हैं। हर पंथ और परंपरा के साधुओं का यहां कुंभ के दौरान अखाड़ा सजता है।
इस तरह कुंभ में सिर्फ साधारणजनों की विविधता ही नहीं बल्कि साधु-संतों की इंद्रधनुषी विविधता भी देखने को मिलती है, साधु-संतों का भी संगम होता है। भाषाई विविधता भी एक वह सांस्कृतिक धरोहर है, जो कुंभ में विस्तृत ढंग से देखने को मिलती है। भारत के हर कोने के लोग कुंभ में स्नान के लिए आते हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूर्व से लेकर पश्चिम तक विविध पहनावों, विविध भाषा और विविध तरह की आस्थाओं को लेकर लोग महाकुंभ में एकत्र होते हैं और अपनी-अपनी भाषाओं, बोलियों, के साथ संगम में डुबकी लगाते हैं। इस दौरान पूरे महाकुंभ क्षेत्र में सैकड़ों तरह के धार्मिक अनुष्ठान, लोकनृत्य, संगीत और कलाओं का प्रदर्शन निरंतर चलता रहता है, जिससे भारत के अलग अलग क्षेत्रों की भरपूर सांस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है।
खानपान की भी विविधताएं
यह विविधता महाकुंभ परिसर में भोजन और खानपान के तौर-तरीकों में भी खूब देखने को मिलती है। कहीं लोग पूरी कचौड़ी खा रहे होते हैं, कहीं लिट्टी चोखा सज रहा होता है, तो कहीं डोसा, कहीं गुजराती पकवान,कहीं दक्षिण भारतीय पकवान, कहीं पंजाबी पकवान तो कहीं बंगाली पकवान बन और बिक रहे होते हैं। पूरे कुंभ परिसर में खानपान की अनगिनत तरह की खुश्ाबुएं आपस में मिलकर खुशबुओं का भी एक महासंगम बनाती हैं।
भाषाई-सांस्कृतिक कुंभ
दरअसल, महाकुंभ का समूचा बंदोबस्त विभिन्न संस्कृतियों को ध्यान में रखकर ही तैयार किया जाता है। कुंभ में देश के सभी 13 धार्मिक अखाड़ों के डेरे शामिल होते हैं, इसके लिए इन सभी धार्मिक अखाड़ों के लिए मेले में अलग-अलग स्थान आवंटित किये जाते हैं। जहां ये अखाड़े अपने तंबू और शिविर लगाते हैं, वहां उन अखाड़ों की अपनी विशिष्ट पहचान और परंपरा दिखती है। पुराने जमाने में राजा-महाराजा और स्थानीय प्रशासन अलग-अलग क्षेत्र के संतों और भक्तों के लिए विशेष तरह के स्थानों को चिन्हित करते थे ताकि यहां उन्हें असुविधा न हो। अब यही सब सरकार के जिम्मे है और सरकार अलग-अलग क्षेत्र के भक्तों, संतों और तीर्थयात्रियों को ध्यान में रखकर उनकी सुविधा और अनुष्ठानों के लिए जगह मुहैया कराती है। समूचे कुंभ क्षेत्र में डेढ़ महीनों तक पूरे भारत को भाषायी और सांस्कृतिक रूप में जीवंत ढंग से धड़कते हुए महसूस किया जाता है। सदियों की यह परंपरा आज भी कायम है।
बहुरंगी विविधताएं
आधुनिक प्रशासन और प्रबंधन ने इसे पहले से कहीं ज्यादा व्यवस्थित और सुविधाजनक बना दिया है। विभिन्न राज्यों के लिए अलग अलग जोन और शिविरों का प्रबंधन किया जाता है। विभिन्न तरह की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए खास मंच तैयार किए जाते हैं। सरकारी सहायता और योजनाओं से सुनिश्चित किया जाता है कि कुंभ मेला में भाग लेने के लिए आने वाले प्रतिभागियों को सभी तरह की सहूलियतें बिना किसी सांस्कृतिक गतिरोध के मिल सकें। इस तरह देखें तो कुंभ का यह आयोजन भारत की बहुरंगी विविधताओं और संस्कृतियों का भी महाकुंभ है।
इस बार प्रयागराज महाकुंभ में दो दर्जन से ज्यादा भाषाओं के सूचना केंद्र निर्मित किये गये हैं। करीब 30 तरह के खानपान और भोजन प्रबंध किये गये हैं। कुंभ क्षेत्र में किसी भी तरह की परेशानी के लिए जगह-जगह पूछताछ केंद्र बनाये गये हैं और वहां एक एक केंद्र में कम से कम 10 भाषाओं के जानकारों को बैठाया गया है कि किसी भी क्षेत्र के व्यक्ति की समस्याओं को उसी की भाषा में कैसे आसानी से समझा जा सके। इस तरह देखा जाए तो कुंभ का आयोजन महज एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि यह भारत की विविध संस्कृतियों का बहुत बड़ा सांस्कृतिक सम्मेलन भी है।
महाकुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक विविधताओं का बेमिसाल संगम है। कुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं का भी बेहतरीन आदान-प्रदान करने का एक मंच है, जो हर बार अपनी विशालता और भव्यता के कारण वैश्विक स्तर पर चर्चित होता है। इ.रि.सें.