For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

सस्ते लोन की आस

04:00 AM Apr 10, 2025 IST
सस्ते लोन की आस
Advertisement

अमेरिका के टैरिफ युद्ध से उपजी वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बीच केंद्रीय बैंक ने सावधानी के फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। शेयर बाजारों के ध्वस्त होने के बाद आर्थिक मंदी की आहट अमेरिका समेत पूरी दुनिया में महसूस की जा रही है। वैश्विक प्रतिकूलताओं के बीच केंद्रीय बैंक द्वारा हाल ही में दूसरी बार रेपो दर में 25 आधार अंक की कटौती अनिश्चितता के बीच सावधानी का ही संकेत है। केंद्रीय बैंक ने अब रेपो दर 6.25 से घटाकर 6 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है। इस साल यह दूसरी बार कटौती है। जबकि पहली कटौती पांच साल बाद की गई थी। यह कदम वैश्विक अस्थिरता के प्रति रिजर्व बैंक की चिंता को ही दर्शाता है। निश्चित रूप से आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में मौद्रिक नीति समिति द्वारा समायोजन के साथ बदलती प्राथमिकताओं का संकेत दिया है। अब बैंक की प्राथमिकता मुद्रास्फीति के बजाय विकास को गति देना है। निर्विवाद रूप से केंद्रीय बैंक ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब संयुक्त राज्य अमेरिका से उपजे व्यापार तनाव और टैरिफ संकट के बीच आर्थिक अनिश्चितता बढ़ रही है। ये हालात घरेलू स्तर पर खपत में कमी करके मंदी की आशंका बढ़ा सकते हैं। साथ ही विकास में निजी निवेश की संभावनाओं पर भी भारी पड़ सकते हैं। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के पूर्वानुमान को संशोधित करके 6.5 फीसदी कर दिया है। जो आने वाली आर्थिक चुनौतियों के मद्देनजर पैदा होने वाली चिंताओं को ही रेखांकित करता है। निश्चित रूप से यह फैसला आवास और ऑटो ऋण ले चुके लोगों के लिये राहत भरी खबर है क्योंकि रेपो रेट घटने पर ऋण लेने वालों की ईएमआई घट सकती है। साथ ही यह कदम नये ऋण लेने वाले लोगों को भी प्रोत्साहित करेगा। इससे रियल एस्टेट सेक्टर को गति मिलने की संभावना भी बढ़ गई है।
हालांकि, उन लोगों को कुछ निराशा हो सकती है जो बैंकों में सावधि जमा राशि के जरिये जीवनयापन करते हैं। ऐसे में ब्याज दरों में गिरावट से उनका वास्तविक रिटर्न कम हो सकता है। फलत: निवेश को प्रोत्साहन देने के लिये नई रणनीति बनाने की जरूरत है। निस्संदेह, रेपो दरों में कटौती मौद्रिक अनुशासन का एक जरूरी उपकरण है, लेकिन ये अंतिम रामबाण उपचार भी नहीं है। इसके साथ ही केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति के दबाव व मुद्रा अस्थिरता के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए। जिससे महंगाई बने रहने की चिंता भी पैदा हो सकती है। जरूरी है कि केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो दरों में की गई कटौती का लाभ बैंक यथाशीघ्र अपने ऋण लेने वाले ग्राहकों को प्रदान करें। बहरहाल, दरों की यह कटौती केंद्रीय बैंक की विकास को गति देने की मंशा को ही जाहिर करती है। लेकिन यह कदम तभी प्रभावकारी हो सकता है जब राजकोषीय उपायों और संरचनात्मक सुधारों को गति प्रदान की जाए। बहरहाल, आम आदमी के लिये यह सुखद है कि उसकी ईएमआई कम हो जाएगी। साथ ही नये लोन भी सस्ते होंगे। जिससे हाउसिंग क्षेत्र में डिमांड बढ़ेगी। साथ ही लोग रियल एस्टेट में अधिक निवेश कर सकेंगे। निश्चित रूप से इस कदम से रियल एस्टेट सेक्टर को नई ताकत मिलेगी। वहीं उद्योग जगत ने भी केंद्रीय बैंक के फैसले का स्वागत किया है। उद्योग जगत लंबे समय से ब्याज दरों में कटौती की मांग करता रहा है, जबकि केंद्रीय बैंक की प्राथमिकता मुद्रास्फीति पर नियंत्रण की बनी रही थी। बहरहाल, केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को बढ़ाने का मन बना लिया है। यह तार्किक ही कि आर्थिक प्रतिकूलताओं के बीच मंदी के प्रभाव को टालने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह बढ़ाने का सहारा लिया जाए। केंद्रीय बैंक को अहसास है कि टैरिफ टकराव से घरेलू विकास दर प्रभावित हो सकती है। साथ ही निर्यात पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। ऐसे में सकारात्मक स्थिति यह है कि दुनिया में कच्चे तेल के दामों में गिरावट आई है, जिससे सरकार को महंगाई को काबू में रखने में मदद मिल सकती है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement