सरकार व समाज मिलकर निकालें समाधान
भारत में विश्व की 36 प्रतिशत रैबीज मौतें होती हैंैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल देश में 20,000 से अधिक लोग रैबीज से मरते हैं। दरअसल, रैबीज से होने वाली मौतों में 99 प्रतिशत मामले कुत्ते काटने के होते हैं।
दीपक कुमार शर्मा
भारत में गली-कूचों में घूमने वाले आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या एक गंभीर जन-सुरक्षा संकट बन चुकी है। हाल ही में कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उठाया। उन्होंने समस्या के समाधान के लिए एक नेशनल टास्क फोर्स गठित करने की मांग की। बताया जाता है कि भारत में करोड़ों आवारा कुत्ते गंभीर चुनौती का सबब बने हुए हैं। कई शहरों में यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है, लेकिन प्रशासन के पास इस संकट के समाधान के लिये कोई प्रभावी नीति नहीं है। वर्ष 2012 की लाइवस्टॉक सेंसस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 1.7 करोड़ आवारा कुत्ते थे, लेकिन 2019 तक यह संख्या बढ़कर 6.2 करोड़ हो गई। कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए सरकार की एबीसी (एनीमल बर्थ कंट्रोल) योजना है, लेकिन इसे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा रहा। देश में हर साल 1.75 करोड़ से अधिक लोग कुत्तों के हमलों का शिकार होते हैं। भारत में विश्व की 36 प्रतिशत रैबीज मौतें होती हैंैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल देश में 20,000 से अधिक लोग रैबीज से मरते हैं। दरअसल, रैबीज से होने वाली मौतों में 99 प्रतिशत मामले कुत्ते काटने के होते हैं।
रैबीज एक जानलेवा बीमारी है और इसका कोई इलाज नहीं है। रैबीज का एकमात्र समाधान टीकाकरण और जानवर आबादी नियंत्रण है। लेकिन भारत में 80 प्रतिशत से अधिक आवारा कुत्तों का कोई टीकाकरण नहीं होता। इसके कारण संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गली के कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं। छोटे बच्चे और बुजुर्ग इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। कुत्तों के हमले की कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें कई लोगों की जान तक चली गई। आवारा कुत्ते कचरे के ढेर में खाना खोजते हैं, जिससे गंदगी फैलती हंै। साथ ही अन्य बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ता है। खुले में भोजन की तलाश करने वाले ये कुत्ते अन्य जीव-जंतुओं पर भी हमला करते हैं, जिससे उनमें भी रैबीज फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
अब तक भारत में कोई समग्र राष्ट्रीय नीति नहीं है जो इस समस्या का समाधान कर सके। वहीं स्थानीय निकायों के पास भी इस मुद्दे से निपटने की कोई ठोस रणनीति नहीं है। इसी कारण सांसद कार्ति चिदंबरम ने प्रधानमंत्री से नेशनल टास्क फोर्स बनाने की अपील की है। टास्क फोर्स में केंद्र, राज्य सरकारें, नगर निकाय, पशु चिकित्सा विशेषज्ञ और एनजीओ को शामिल करने की मांग की गई है।
आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए प्रभावी नीति बनाने के अलावा टीकाकरण कार्यक्रम को तेज करने के साथ ही आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने की जरूरत है। सरकार को राज्य और जिला स्तर पर नसबंदी केंद्र बनाने चाहिए।
डब्ल्यूएचओ के 2030 तक रैबीज मुक्त भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक टीकाकरण अभियान चलाना चाहिए। अस्पतालों में मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध कराई जाए। साथ ही स्ट्रे डॉग शेल्टर बनाने के लिए अनुदान दिया जाए। एनिमल हेल्थ सेंटर बनें, जहां घायल-बीमार आवारा कुत्तों का इलाज हो सके।
जरूरी है कि जनता को रैबीज और कुत्तों से बचाव के तरीकों के बारे में जागरूक किया जाए। कुत्तों के प्रति हिंसा को रोकने के लिए उनके पुनर्वास कार्यक्रम चलाए जाएं। एनजीओ और पशु कल्याण संगठनों को इस अभियान में शामिल किया जाए।
हरियाणा में भी आवारा कुत्तों बढ़ती संख्या और उनके हमलों की कई चिंताजनक घटनाएं सामने आई हैं। फतेहाबाद के बड़ोपल क्षेत्र और हिसार जिले के मंगली-रावतखेड़ा क्षेत्र में आवारा कुत्तों के हमलों से स्थानीय नीलगाय और काले हिरण की आबादी खतरे में है। जनवरी, 2016 से मई, 2020 तक, हिसार संभाग में कुत्तों द्वारा 361 काले हिरण, 1,641 नीलगाय, 25 मोर, 29 चिंकारा और 35 बंदरों की मौत दर्ज की गई है। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में, हरियाणा-पंजाब ने आवारा कुत्तों से निपटने को जिला-स्तरीय समितियों का गठन किया है।
निस्संदेह, नेशनल टास्क फोर्स के गठन से इस मुद्दे का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है। इससे लोगों की जान बचाने में मदद मिलेगी। यदि हम समय पर उचित कदम नहीं उठाते, तो यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है। सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस संकट से निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना बनाएं।