सरकारी स्कूलों पर भरोसा
निर्विवाद रूप से आम लोगों की धारणा सरकारी स्कूलों के प्रति अच्छी नहीं रहती। थोड़ी आर्थिक स्थिति सुधरते ही लोग अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में भेजने को आतुर हो जाते हैं। कोरोना संकट ने बताया था कि जब तमाम लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हुई और नौकरियां गई, तो सरकारी स्कूलों ने उनके बच्चों को सहारा दिया। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संकट के दौरान व बाद में सरकारी स्कूलों में बच्चों के दाखिलों में खासी तेजी आई थी। लेकिन यह सवाल नीति-नियंताओं के लिये विचारणीय है कि बेहतर संरचनात्मक सुविधाओं व ऊंचे वेतनमान वाले शिक्षकों के बावजूद सरकारी स्कूल जनमानस की आकांक्षाओं की कसौटी पर खरे क्यों नहीं उतरते। समाज के संपन्न तबके व अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में जाने से गुरेज क्यों करते हैं? बहरहाल, एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट यानी असर 2024 के जो निष्कर्ष बीते मंगलवार को दिल्ली में जारी किए गए, वे नई उम्मीद जगाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को लेकर किए गए अध्ययन वाली असर की रिपोर्ट बताती है कि देश में छह से चौदह वर्ष के बच्चों के पढ़ने की क्षमता और गणितीय कौशल में कोरोना संकट के बाद सुधार देखा गया है। सरकारी स्कूलों में तीसरी कक्षा के बच्चों के पढ़ने की बुनियादी क्षमता में पहले से सुधार हुआ है। जो पिछले दो दशकों में सर्वोत्तम स्तर पर है। अच्छी बात यह है कि सरकारी व निजी दोनों स्तर पर स्कूलों में विद्यार्थियों के बुनियादी गणितीय कौशल में सुधार देखा गया। जो पिछले एक दशक में बेहतर है। अब कक्षा तीन के छात्र घटाव के प्रश्न हल करने में सक्षम हैं। वहीं कक्षा पांच के बच्चे भाग के प्रश्न हल कर सकते हैं। अच्छी बात यह भी कि देशभर के स्कूलों में सीखने के स्तर में भी सुधार आया है। यह स्तर 2010 तक स्थिर था, फिर इसमें गिरावट का ट्रेंड देखा गया था।
दरअसल,कोरोना काल में बच्चों के सीखने की क्षमता में गिरावट देखी गई। महामारी के चलते स्कूल बंद होने के बाद बच्चे पढ़ नहीं पाए। अधिकांश बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं थे। वहीं घर में माता पिता के कम पढ़े-लिखे होने या अनपढ़ होने से बच्चों का सीखने का मूलभूत कौशल प्रभावित हुआ था। बच्चे पहले का सीखा भूल गए और बड़ी संख्या में बच्चों को स्कूल भी छोड़ना पड़ा। असर की रिपोर्ट बताती है कि जहां नामांकन प्रतिशत में वृद्धि हुई है,वहीं डिजिटल साक्षरता की दर में भी वृद्धि देखी गई है। सुखद है कि कोरोना काल के बाद स्कूलों में पढ़ाई को लेकर गंभीरता देखी गई है। जागरूकता अभिभावकों के स्तर पर भी देखी गई है। हालांकि, बीते वर्ष के मुकाबले छह से चौदह वर्ष तक के बच्चों के दाखिलों में कमी देखी गई है। जिसकी वजह है कि कोरोना संकट के चलते रोजगार प्रभावित होने से जो बच्चे सरकारी स्कूलों की तरफ आए थे, वे फिर आय बढ़ने पर निजी स्कूलों की ओर रुख करने लगे हैं। दरअसल, सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भरोसा कायम करने की जरूरत है। वैसे सरकारी स्कूलों में भी स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। वहीं दूसरी असर की रिपोर्ट में पंजाब को लेकर कहा गया है कि स्कूली बच्चे पंजाबी पढ़ने को लेकर निराशाजनक प्रदर्शन कर रहे हैं। पंजाब सरकार के स्कूलों में कक्षा तीन के केवल 34 फीसदी छात्र ही दूसरी कक्षा की पाठ्य पुस्तकें पढ़ सकते हैं। हालांकि, पढ़ने की क्षमता और अंकगणित की समस्याओं के हल करने के मामले में सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया । लेकिन चौंकाने वाली बात यह कि सरकारी व निजी स्कूलों के तीसरी कक्षा के 15 फीसदी से अधिक छात्र ही गुरुमुखी लिपि के अक्षर पढ़ सकते हैं, शब्द नहीं। वहीं 4.6 फीसदी छात्र पंजाबी के अक्षर भी नहीं पढ़ सकते। हालांकि, बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर पंजाब राष्ट्रीय औसत से बेहतर स्थिति में रहा है। राष्ट्रीय स्तर से बेहतर 97.4 स्कूलों मे मध्याह्न भोजन परोसा गया। वहीं राष्ट्रीय औसत 11.1 के मुकाबले 32.7 फीसदी स्कूलों में छात्र कंप्यूटर का उपयोग करते हैं। लेकिन अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है।