सरकारी जवाबदेही व जनभागीदारी से संरक्षण
वन पृथ्वी पर जीवन के लिए अनिवार्य हैं, जो जैव विविधता, जलवायु नियंत्रण और ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत हैं। इनकी अंधाधुंध कटाई से उत्पन्न संकट को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर संरक्षण की आवश्यकता है।
योगेश कुमार गोयल
पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने में मनुष्यों, जीव-जंतुओं और वनों का अहम योगदान है। वनों का कार्य न केवल जीव-जंतुओं का आवास और भोजन प्रदान करना है, बल्कि पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए भी वनों का होना अनिवार्य है।
पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत वन हैं, जो वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड सोखकर उसे ऑक्सीजन में बदलते हैं। वन वर्षा, तापमान नियंत्रण, मृदा कटाव रोकने और जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों की मजबूत जड़ें मिट्टी को बांधकर भारी बारिश में कटाव और बाढ़ का खतरा कम करती हैं। हालांकि, वनों की अंधाधुंध कटाई से जीव-जंतुओं के आवास स्थान घट गए हैं और जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है।
हर साल दुनिया भर में जंगलों में लगने वाली आग के कारण लाखों हेक्टेयर जंगल और जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं। वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग ने न केवल जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया, बल्कि बड़ी संख्या में जंगल भी जलकर खाक हो गए।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में विश्वभर में लगभग एक अरब एकड़ वन नष्ट हो चुके हैं। कुछ दशकों पहले तक पृथ्वी का लगभग 50 प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित था, लेकिन अब यह घटकर केवल 30 प्रतिशत रह गया है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, वनों की घटती संख्या का सीधा प्रभाव पृथ्वी पर मौजूद जैव विविधता पर पड़ेगा। वृक्षों और वनों का क्षेत्रफल घटने से जीव-जंतुओं के आवास पर संकट आ जाएगा और अनियमित मौसम के रूप में मानव जाति पर भी इसके गंभीर दुष्प्रभाव सामने आएंगे।
वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता बढ़ रही है। यदि भविष्य में वनों की संख्या नहीं बढ़ाई जाती, तो बढ़ती मानव आबादी के कारण पृथ्वी पर ऑक्सीजन, उपजाऊ मिट्टी और स्वच्छ जल की भारी कमी हो सकती है। वन पृथ्वी के फेफड़ों का कार्य करते हैं, जो वातावरण से सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, अमोनिया, ओजोन इत्यादि प्रदूषक गैसों को अपने अंदर समाहित कर वातावरण में प्राणवायु छोड़ते हैं। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर वनों के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाने, इनके संरक्षण में समाज का योगदान प्राप्त करने और पौधारोपण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस’ मनाया जाता है।
वर्ष 2025 का विषय ‘वन और खाद्य पदार्थ’ है, जिसमें वनों की खाद्य सुरक्षा, पोषण और आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका को बढ़ाया जाएगा। वन केवल भोजन, ईंधन, आय और रोजगार प्रदान नहीं करते, वे मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखते हैं, जल संसाधनों की रक्षा करते हैं, और जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण आवास भी प्रदान करते हैं, जिसमें परागणकों का भी योगदान है। इसके अलावा, वन वन-निर्भर समुदायों, विशेष रूप से स्वदेशी लोगों के जीवन के लिए आवश्यक हैं और वे जलवायु परिवर्तन के शमन में भी मदद करते हैं, क्योंकि वे कार्बन को संगृहीत करते हैं।
पृथ्वी का वह क्षेत्र, जहां वृक्षों का घनत्व अधिक होता है, वन कहलाता है। वनों के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे सदाबहार वन, मैंग्रोव वन, शंकुधारी वन, उष्णकटिबंधीय वन, शीतोष्ण वन, पर्णपाती वन, बोरील वन और कांटेदार वन, जो विभिन्न जलवायु और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार विभाजित होते हैं।
भारत में प्रमुख वन प्रकारों में सदाबहार वन, मैंग्रोव वन, शंकुधारी वन, पर्णपाती वन और शीतोष्ण कटिबंधीय वन शामिल हैं। सदाबहार वनों को वर्षा वन भी कहा जाता है, जो उच्च वर्षा क्षेत्रों जैसे पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार और पूर्वोत्तर भारत में पाए जाते हैं। इन वनों में वृक्ष एक-दूसरे से मिलकर सूर्य के प्रकाश को जमीन तक नहीं पहुंचने देते। मैंग्रोव वनों का विकास डेल्टा क्षेत्रों और नदियों के किनारे लवणयुक्त जल में होता है।
पर्णपाती वन मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में होते हैं, जहां वर्षा केवल कुछ महीनों के लिए होती है। मानसून के दौरान तेज बारिश और सूर्य के प्रकाश के कारण इन वनों में तेजी से वृद्धि होती है, और गर्मी व सर्दी के मौसम में वृक्षों की पत्तियां झड़ जाती हैं। नए पत्ते चैत्र माह में उगते हैं। कांटेदार वन जैसे खजूर, कैक्टस और नागफनी कम नमी वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहां इनकी जड़ें गहरे तक समाई होती हैं और ये जल संरक्षण में मदद करते हैं। उष्णकटिबंधीय वन भूमध्य रेखा के पास होते हैं, जबकि शीतोष्ण वन मध्यम ऊंचाई वाले स्थानों पर और बोरील वन ध्रुवीय क्षेत्रों के निकट पाए जाते हैं।
इस संकट को देखते हुए, वर्ष 2021 के ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में 100 से अधिक देशों ने वर्ष 2030 तक वनों की अंधाधुंध कटाई पर पूरी तरह पाबंदी लगाने का संकल्प लिया था। वनों की कटाई और प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण कई ग्लेशियर लुप्त होने के कगार पर हैं और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा लगातार बढ़ रहा है, जिससे मौसम में बड़े बदलाव हो रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए, पूरी दुनिया को एकजुट होकर वनों के संरक्षण और उनके विनाश को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।