समृद्धि के लिए और पाप मुक्ति का व्रत
अपरा एकादशी सनातन धर्म में अत्यंत पुण्यदायी तिथि मानी जाती है, जो भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन व्रत, पूजा और दान से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की यह एकादशी अचल सुख और अपार धन देने वाली मानी जाती है।
राजेंद्र कुमार शर्मा
हिंदू सनातन संस्कृति में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है। यह एकादशी ‘अचला’ तथा ‘अपरा’ दो नामों से जानी जाती है। ‘अचला’ का अर्थ है स्थिर या अचल और अपरा का अर्थ है लौकिक या सांसारिक। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसमें विशेष रूप से धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अचल और अपार धन देने वाली है।
अपरा एकादशी से शुभ फल
मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने और दान-पुण्य करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, परनिंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। युद्ध से भाग जाने वाला क्षत्रिय और गुरु की निंदा करने वाला शिष्य नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी पाप मुक्त हो सकते हैं। मान्यता है कि अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है। जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से प्राप्त होता है। यह व्रत पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान है।
किंवदंती
एक किंवदंती के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज एक धर्मात्मा राजा था जबकि उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। उसने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी मृत देह को एक पीपल के नीचे दबा दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और लोगों को परेशान करने लगा। एक दिन धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। दयालु ॠषि ने उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। उसने ॠषि को धन्यवाद दिया और दिव्य देह धारण कर स्वर्ग को गमन किया।
कब है अपरा एकादशी
ज्योतिषीय गणना और हिंदू पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत शुक्रवार, मई 23 को रखा जाएगा जबकि व्रत का उद्यापन (पारण) 24 मई को किया जाएगा। अपरा एकादशी का प्रारम्भ मई 23, 2025 को प्रातः 01:12 बजे तथा समापन मई 23, 2025 को रात्रि 10.29 बजे होगा। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।24 मई को पारण के लिए शुभ समय सुबह 05:26 बजे से शाम 08:11 बजे तक रहेगा। इस दौरान कभी भी व्रत खोला जा सकता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।
पूजा विधान
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर, सूर्य को अर्घ्य दें। घर में पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर, स्वच्छ वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित किए जाते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। जरूरतमंदों को यथासंभव, यथाशक्ति अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से व्रत के शुभ फलों की प्राप्ति होती है।