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समान नागरिक संहिता की तार्किकता

04:00 AM Feb 10, 2025 IST
समान नागरिक संहिता की तार्किकता
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जन संसद की राय है कि उत्तराखंड में यूसीसी लागू करना एक साहसिक और सुधारात्मक कदम है, जो समाज में समानता, न्याय और समतामूलक समाज की स्थापना को बढ़ावा देगा, हालांकि इसे समग्र विचार-विमर्श के साथ लागू किया जाना चाहिए।

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साहसिक कदम
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात एक साहसिक कदम है। हालांकि, इस कानून के लागू होते ही सरकार को बहुत सतर्कता से कदम उठाने होंगे। हम चाहे किसी भी जाति या समुदाय से संबंधित हों, जब हम एक ही स्थान पर रहते हैं, तो स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण के लिए हमारे नियम और कानून समान होने चाहिए। किसी विशेष जाति या सम्प्रदाय से संबंधित होने के कारण हमें विशेष छूट क्यों दी जाए? इससे अन्य समुदायों में वैमनस्य की भावना उत्पन्न होती है और हमारे सामाजिक सरोकार प्रभावित होते हैं। यह बात समझनी होगी।
सत्यप्रकाश गुप्ता, रेवाड़ी

राजनीति न हो
समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि इसके लागू होने के बाद सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होगा। समान नागरिक संहिता लागू करने की तार्किकता यह है कि इसमें शादी, जमीन, जायदाद के बंटवारे आदि के समय सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होता है। अच्छा होगा कि इस मुद्दे को राजनीतिक रंग न दिया जाए। यह देश हित में होगा यदि विभिन्न धर्मों के लोग आपसी विचार विमर्श करके किसी एक निर्णय पर पहंुचें। भारत जैसे विभिन्नताओं से भरे देश में इसे लागू करना आसान प्रतीत नहीं होता।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल

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न्याय और समान अधिकार
भारत विभिन्न भाषा, जाति और धर्म-संप्रदाय के मानने वालों का देश है, जिनके सामाजिक रीति-रिवाज और धार्मिक आस्थाएं-मान्यताएं अलग-अलग हैं। कोई भी इनमें हस्तक्षेप पसंद नहीं करेगा, लेकिन संविधान के तहत सभी को न्याय और समान अधिकार देने की वचनबद्धता का पालन भी किया जाना चाहिए। इसके लिए देश में सभी के लिए एक समान कानून का होना आवश्यक है। इस दृष्टि से, देश में समान नागरिक संहिता की मांग लंबे समय से की जा रही है। अतः इस मुद्दे के सभी पहलुओं पर विचार करते हुए इसे लागू किया जाना चाहिए।
गजानन पांडेय, काचीगुड़ा, हैदराबाद

सुधारात्मक कोशिश
उत्तराखंड जहां समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू की गई है, जो समय की आवश्यकता है। यह समाज के किसी वर्ग विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि सुधारात्मक है। यूसीसी के तहत विवाह पंजीकरण अनिवार्य होगा, लिव-इन-रिलेशनशिप का पंजीकरण, हलाला प्रथा का उन्मूलन, धर्म परिवर्तन पर दंड, लड़कियों को संपत्ति में हिस्सा और लड़कों के लिए 21 और लड़कियों के लिए 18 वर्ष विवाह आयु तय की गई है। यह कदम समाज सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य प्रयास है, जिसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक

सराहनीय पहल
समान नागरिक संहिता सभी धर्मों, जाति, वर्ग के लोगों को एक समान कानून का प्रावधान देता है। यह लोगों के हित में है। जबकि कुछ धर्म व जाति के लोग इसे अपने मजहब के नाम पर राजनीतिक मुद्दा बना इसे ग़लत बताने का प्रयास कर रहे हैं जो ग़लत है। हमारे देश के नागरिकों को धर्म, राज्य से हट इस बात को समझना चाहिए कि समान नागरिक संहिता सबको समान कानूनी अधिकार दे रहा है और इसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। उत्तराखंड राज्य में यूसीसी का लागू होना एक सराहनीय कदम है।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली

पुरस्कृत पत्र

समतामूलक समाज
भारत में विभिन्न समुदायों के धार्मिक ग्रंथों द्वारा लंबे समय से परिभाषित शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत कानूनों के स्थान पर सभी के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रस्ताव की सराहना की जानी चाहिए। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को सुनिश्चित करना है। लेकिन कुछ राजनीतिक लाभार्थियों ने इसे विवादास्पद बना दिया है। संहिता के समर्थकों का तर्क है कि यह समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगा, वहीं विरोधी इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों और धार्मिक प्रथाओं को कमजोर करने वाले कानून के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। जबकि इस बदलाव को भारतीय संविधान में निहित आदर्शों के अनुरूप और समतामूलक समाज की स्थापना के रूप में देखा जाना चाहिए।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

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