समाज और संबंधों का आईना
अजय सिंह राणा
‘प्रेम के स्याह रंग’ उपन्यासकार लाजपत राय गर्ग द्वारा लिखा गया एक गंभीर और संवेदनशील उपन्यास है। यह उपन्यास लेखक की सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग दृष्टि को दर्शाता है। लाजपत राय गर्ग उन लेखकों में से हैं जो समाज में घटने वाली घटनाओं को शब्द-दर-शब्द कागज़ पर उकेरने की क्षमता रखते हैं।
वाणी और मनीष के रिश्तों की डोर को बुनते हुए कहानी आरंभ से ही पाठकों को अपनी गिरफ्त में ले लेती है। हालांकि, जैसे-जैसे हम उपन्यास के अंतिम भाग की ओर बढ़ते हैं, यह पकड़ कुछ हद तक ढीली होती प्रतीत होती है।
उपन्यास की भाषा सामान्य, सहज एवं सुंदर है, जिससे इसकी बात आम पाठक तक भी सरलता से पहुंचती है। इसमें समय के साथ बदलते समाज की उस संरचना को प्रस्तुत किया गया है, जो पाठकों को सोचने पर विवश करती है—यही इस रचना की सार्थकता है।
लेखक ने अपने इस उपन्यास में कैंसर जैसी जटिल बीमारी और लव जिहाद जैसी समकालीन सामाजिक समस्याओं को प्रमुखता से उठाया है। पात्रों की बात करें तो रामणिक, काव्या, घाट का मल्लाह, आरती, लवलीना, प्रवेश, शफ़ीक अहमद, मीना आदि चरित्रों के माध्यम से लेखक ने पाठकों को विभिन्न सामाजिक घटनाओं से रू-ब-रू कराया है। विशेष रूप से लवलीना के माध्यम से कैंसर जैसी बीमारी पर लेखक ने कई तथ्यात्मक जानकारियां दी हैं, जो अत्यंत प्रशंसनीय हैं। दूसरी ओर, आरती और शफ़ीक अहमद के पात्रों के माध्यम से लेखक ने समाज के एक कड़वे यथार्थ को प्रभावी ढंग से सामने रखा है।
हालांकि उपन्यास रिश्तों और सामाजिक मुद्दों को बख़ूबी प्रस्तुत करता है, लेकिन एक पाठक के रूप में इसकी कथा में रोचकता की कुछ कमी महसूस हुई। कहानी के आरंभ में ही अंत का अनुमान लग जाना इसकी रहस्य भाव को प्रभावित करता है।
इस उपन्यास में पारंपरिक उपन्यासिक तत्वों की तुलना में डायरी लेखन की शैली अधिक प्रभावी है, जिससे कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है कि हम उपन्यास पढ़ रहे हैं या आत्मवृत्त। कुछ अंश तो यात्रा-वृत्तांत जैसे भी प्रतीत होते हैं।
फिर भी, यह कहना उचित होगा कि उपन्यास लेखन अपने आप में एक बड़ा कार्य है और उसमें भी इतने संवेदनशील विषयों को उठाना एक सराहनीय प्रयास है।
पुस्तक : प्रेम के स्याह रंग उपन्यासकार : लाजपत राय गर्ग प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 225.