समय रहते जानें बच्चे में डिप्रेशन के संकेत
आधुनिक समय में जीवनशैली तेजी से बदल रही है। भागमभाग के चलते तनाव व नकारात्मकता बढ़ रही है जिससे लोग डिप्रेशन से ग्रस्त हो रहे हैं। चिंताजनक है कि तनाव व अवसाद की चपेट में बच्चे भी आ रहे हैं। अगर माता-पिता बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन या अन्य लक्षणों पर गौर करें तो समय रहते बीमारी का पता चल सकता है। उसके बाद इलाज करवाया जा सकता है।
शिखर चंद जैन
डिप्रेशन की बढ़ती समस्या ने हमारे देश के मनोचिकित्सकों को चिंता में डाल दिया है। हाल के कुछ अध्ययनों में पता चला है कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा अवसाद ग्रस्त लोग रहते हैं। हर व्यक्ति में डिप्रेशन अलग तरह का या अलग लेवल का हो सकता है जो माइल्ड, मॉडरेट या सीवियर होता है। यह भी कि खुद अपना जीवन लेने वाले करने वाले ज्यादातर लोग 44 साल से कम उम्र के होते हैं। लेकिन चिंताजनक है कि छोटे बच्चों में स्ट्रेस व सुसाइडल प्रवृत्ति बढ़ रही है जिसने समाज शास्त्रियों को खास तौर पर परेशान कर दिया है।
बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण
बच्चों में अवसाद के लक्षण कई तरह के होते हैं कई बार तो इन्हें आसानी से समझा भी नहीं जा सकता है। अगर माता-पिता और शिक्षक बच्चों में स्वभावगत परिवर्तन या अन्य लक्षणों पर गौर करें तो समय रहते बीमारी का पता चल सकता है और इलाज करवाया जा सकता है। अगर बच्चे के स्वभाव में परिवर्तन आ रहा है यानी वह गुस्सैल, चिड़चिड़ा, उदास या चुप रहने लगा है, स्कूल जाने से कतराता है, पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी नहीं लेता है और स्कूल में उसकी परफॉर्मेंस ड्रॉप होती है तो यह अभिभावकों के लिए चेतावनी है। वहीं यदि बच्चे का वजन कम हो रहा है, भोजन ठीक से नहीं करता है, खेलकूद में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेता, इसके साथ ही खुद के कपड़ों या सजने-संवरने में दिलचस्पी नहीं लेता तो पैरेंट्स को सचेत हो जाना चाहिए और मनोविज्ञानी से संपर्क करना बेहतर है। साथ ही ऐसे लक्षणों को नजरअंदाज न करें। बच्चे के साथ मधुर व्यवहार करते हुए हर वक्त उसके साथ संवाद स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए।
तनाव व अवसाद के कारण
आजकल डिप्रेशन वयस्कों के साथ ही किशोरों व बच्चों को भी अपना शिकार बना रहा है। बालपन में डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं जैसे बायोलॉजिकल, मनोवैज्ञानिक या फिर घर व स्कूल का एनवायरमेंट।
बायोलॉजिकल कारण : ब्रेन में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन लेवल कम होने के कारण से बच्चों में डिप्रेशन हो सकता है। दरअसल सेरोटोनिन हमारे मिजाज, नींद के अलावा पाचन प्रक्रिया यानी भूख के नियंत्रण में मददगार है।
साइकोलॉजिकल वजह : लंबे समय से दिलोदिमाग में चलने वाले निगेटिव विचार तनाव और अवसाद की वजह बनते हैं। लो सेल्फ एस्टीम, निगेटिव सोशल स्किल यानी लोगों से मेलजोल न रखना, नेगेटिव शारीरिक हाव-भाव आदि डिप्रेशन की वजह बन सकते हैं। साथ ही बौद्धिक क्षमता की कमी भी इसकी एक वजह हो सकती है।
एनवायरमेंटल इफेक्ट : यदि किसी बच्चे को शुरू से माता-पिता का प्यार न मिले, वह घर या स्कूल में मारपीट का शिकार हो चुका हो, गाली गलौज ,बुलीइंग का शिकार रहा हो या फिर पीयर प्रेशर से परेशान रहना –ऐसे मामले डिप्रेशन का सबब बन सकते हैं।
अवसाद का इलाज
डिप्रेशन की शिकायत हो तो बच्चे की काउंसलिंग करवाएं। किसी मनोविज्ञानी या मनोचिकित्सक से उसका इलाज कराएं। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है घर में सबका बच्चे के साथ प्यार भरा व्यवहार और अपनेपन से नियमित बातचीत करना।
ये सावधानियां हैं जरूरी
बच्चों में डिप्रेशन की समस्या रोकने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि शुरू से बच्चों को फिजिकल एक्टिविटीज में इन्वोल्व रखें। उसे प्रेरित भी करें और जरूरत पड़े तो उसके साथ खेल आदि में भागीदारी भी करें। आउटडोर गेम्स जैसे क्रिकेट, फुटबॉल, बैडमिंटन, कबड्डी, तैराकी, रेसिंग, जोगिंग, स्विमिंग आदि के साथ-साथ इंडोर गेम्स जैसे शतरंज, लूडो, कैरम आदि भी खेलने चाहिए। इनसे मन प्रसन्न रहता है और बच्चा व्यस्त रहता है। साथ ही उसकी एकाग्रता व सीखने की क्षमता बढ़ती है। अगर पैरेंट्स में से किसी को साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर है तो बच्चे को शुरू से ही किसी अनुभवी और कुशल मनोचिकित्सक की निगरानी में रखें और नियमित काउंसलिंग करवाएं।