समय रहते ग्लूकोमा से बचाएं आंखों की रोशनी
देश-दुनिया में करोड़ों की तादाद में लोग ग्लूकोमा के रोग से पीड़ित हैं। यह रोग शुरुआती चरण में आसानी से पकड़ में न आने की वजह से धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। जो अंधेपन की वजह भी बन सकता है। आंखों की गंभीर बीमारी ग्लूकोमा के कारणों, लक्षणों, बचने के उपायों और उपचार को लेकर दिल्ली स्थित नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम अत्री से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
ग्लूकोमा या काला मोतिया आंखों की गंभीर बीमारी है, जो सबसे पहले आंखों की ऊपरी सतह को प्रभावित करती है। शुरुआती चरण में आसानी से पकड़ में न आने की वजह से ग्लूकोमा धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। समुचित उपचार न होने पर आंखों की रोशनी भी छीन लेता है। विशेषज्ञ इसे अंधेपन का दूसरा बड़ा कारण या साइलेंट साइट स्नेचर मानते हैं। थोड़ा सतर्क रहने पर इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।
आमतौर पर ग्लूकोमा बीमारी व्यस्कों या 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में देखी जाती है। लेकिन आनुवंशिक या जन्मजात दोष होने के कारण नवजात शिशु भी इसके शिकार हो जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसंधानों के हिसाब से दुनिया में 10 में से एक आदमी ग्लूकोमा पीड़ित है। करीब 7 लोग ग्लूकोमा का शिकार हैं। हमारे देश के करीब 1 करोड़ 20 लाख लोग इससे पीड़ित हैं।
ये है कार्यप्रणाली
आंखों की संरचना पर गौर करें तो आंख के कॉर्निया के पीछे सीलियरी टिशूज होते हैं। जिनमें एक तरल पदार्थ निरंतर बनता रहता है जिसे एक्वेस ह्यूमर कहा जाता है। एक्वेस ह्यूमर नामक तरल पदार्थ बाहर निकल कर पुतलियों से होता हुआ आंख के भीतरी हिस्से तक जाता है। जिससे मस्तिष्क को विजुअल सिग्नल भेजने वाली आंखों की ऑप्टिक नर्व्स अपना काम ठीक तरह कर पाती हैं और व्यक्ति देख पाता है। साथ ही आंख को पोषण मिलता है यानी आंख में नमी बनी रहती है और स्वस्थ रहती हैं।
इंट्राओक्युलर प्रेशर से गड़बड़ी
कई बार विभिन्न कारणों से जब आंखों पर इंट्राओक्युलर प्रेशर पड़ता है, तब सीलियरी टिशूज डैमेज या ब्लॉक होने लगते हैं। इससे एक्वेस ह्यूमर निर्माण की प्रक्रिया बाधित हो जाती है और ओपन एंगल ग्लूकोमा की स्थिति आ जाती है। यानी सीलियरी टिशूज से एक्वेस ह्यूमर का बहाव कम होता जाता है। इससे मस्तिष्क को विजुअल सिग्नल भेजने वाली ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है जिससे आई साइट धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है।
ध्यान न देने पर आंखों में प्रेशर अधिक बढ़ जाता है। जिससे आंखों में एक्वेस ह्यूमर तरल पदार्थ का प्रवाह बंद हो जाता है। धुंधला दिखाई देता है या दिखाई देना बंद हो जाता है यानी अंधेपन की स्थिति आ जाती है। इस स्थिति को क्लोज एंगल ग्लूकोमा कहा जाता है।
ये हैं कारण
आनुवांशिक या फैमिली हिस्ट्री होना। प्रेग्नेंसी के दौरान भ्रूण मंे बच्चे की आंखों में सीलियरी टिशूज की बनावट ठीक न होना। नवजात शिशुओं की आंखों के एंगल में दोष होना। लंबे समय से स्टेरॉयड लेना। आंखों में किसी तरह की चोट लगना या सर्जरी होना। अस्थमा, आर्थराइटिस,डायबिटीज, हार्ट डिजीज, ब्लड प्रेशर जैसे रोग होना।
ऐसे पहचानें
ग्लूकोमा के शुरुआती संकेतों के प्रति सतर्क रहना जरूरी है। किसी भी तरह की समस्या होने पर नेत्र विशेषज्ञ को कंसल्ट करना चाहिए जैसे आई साइट कमजोर होने से चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव आना। आंखें लाल रहना, ड्राईनेस और भारीपन होना। शाम को आंखों या सिर में दर्द रहना, चक्कर आना व घबराहट। धुंधला दिखाई देना, बल्ब के चारों ओर इंद्रधनुषी रंग दिखना। अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत। साइड विजन को नुकसान पहुंचना । बच्चों की आंखों का साइज बढ़ जाता है, एक आंख छोटी और एक बड़ी नजर आती है। आई बॉल का रंग सफेद होने लगता है ।
कब करें डॉक्टर को कंसल्ट
ग्लूकोमा से बचने के लिए जरूरी है कि इसकी पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही कर ली जाए क्योंकि एक बार ग्लूकोमा होने के बाद आई साइट को हुए नुकसान को ठीक कर पाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन समय रहते समुचित उपचार से मरीज को नेत्रहीन होने से बचाया जा सकता है।
ऐसे होता है डायग्नोज- नेत्र विशेषज्ञ रेटिनल नर्व फाइबर लेयर एनालिसिस (आर एन एफ एल) और विजुअल फील्ड टेस्ट से ग्लूकोमा की स्थिति का पता लगाते है। आंखों पर पड़ने वाले दवाब को चैक करने के लिए टोनोमेटरी टेस्ट, ऑप्टिक नर्व के लिए ऑप्टिक नर्व मॉनिटरिंग व कम लाइट में कॉर्निया के लिए पेरीमेटरी टेस्ट भी किए जाते हैं।
क्या है इलाज
आंखों में बढ़े हुए प्रेशर को कम करने के लिए मेडिसिन और आई ड्रॉप्स दी जाती हैं। मरीज को नियमित अंतराल पर चेकअप कराने की हिदायत दी जाती है ताकि कोई समस्या होने पर उपचार किया जा सके। आराम न आने पर लेजर सर्जरी से आंखों की ऑप्टिकल नर्व्स को ठीक कर ग्लूकोमा नियंत्रित किया जाता है। सर्जरी के बाद मरीज को आंखों की सफाई का विशेष ध्यान रखने ,धूल-मिट्टी से बचाने, मसलने या रगड़ने से मना किया जाता है ताकि इंफेक्शन न हो।
बचाव के उपाय
ग्लूकोमा से बचने के लिए इन बातो का ध्यान रखना चाहिए- 35 साल की उम्र के बाद हर साल दो बार, 40-54 साल में 3 बार, 55-64 साल में 2 बार और 65 साल के बाद हर 6 महीने के बाद आरएनएफएल टेस्ट कराना चाहिए। इसमें विजन टेस्ट के अलावा रेटिना इवेल्यूशन और विजुअल फील्ड टेस्ट कराएं। आनुवांशिक बीमारी होने के कारण बच्चों का आइज चेकअप जरूर कराएं। चश्मे का नंबर जल्दी-जल्दी बदल रहा है, साइड विजन में समस्या आ रही है, आंखों में दर्द होने या आंखें लाल होने पर जितना जल्दी हो सके, नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। आंख में चोट लगने या सर्जरी होने पर समय-समय पर चेकअप कराते रहें। आहार का विशेष ध्यान रखें। पौष्टिक तत्वों खासकर विटामिन ए,बी,सी और ई से भरपूर हरी सब्जियां, फल, दूध, ड्राई फ्रूट्स, सोया उत्पाद का अधिक सेवन करें।