समता व न्याय आधारित विकल्प के समक्ष चुनौतियां
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष तथा देश के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर बहुमुखी प्रतिभा संपन्न शख्सियत थे। वे भारतीय समाज को दिशा देने वाले महापुरुषों में शामिल हैं। वे सामाजिक न्याय, जाति-पाति एवं छुआछूत उन्मूलन के प्रबल पैरोकार थे। अंबेडकरवादी विचारधारा वंचित वर्ग को न्याय दिलाने व समानता की पक्षधर है।
डॉ. रामजीलाल
प्रत्येक देश में ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने मानवता को नई दिशा देकर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, एवं राजनीतिक विकास में अग्रणी भूमिका निभाई। इन महापुरुषों में डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम भी शामिल है। अधिकांश देशों में समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं। लगभग 150 देशों में उनकी जयंती मनाई जाती है। हाल ही में अमेरिका स्थित न्यूयॉर्क के मेयर एरिक एडम्स ने घोषणा की है कि हर साल 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर दिवस मनाया जाएगा।
विश्व में डॉ. अंबेडकर की जयंती पर अनेक समारोह, सेमिनार, परिसंवाद आदि आयोजित किए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय समाज में अंबेडकरवाद और उनके योगदान को कम करने के प्रयास जारी हैं। अंबेडकरवादी विचारों के विरोधियों द्वारा उनकी प्रतिमाओं पर अभद्रता की घटनाएं भी सामने आती हैं। डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (14 अप्रैल, 1891 - 6 दिसम्बर, 1956) भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष, प्रसिद्ध वकील, भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भाषाविद्, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, जाति-पाति एवं छुआछूत उन्मूलन के समर्थक, वंचित वर्ग के मसीहा व विषमता के विरुद्ध आंदोलन के समर्थक थे। डॉ़ अंबेडकर के मुताबिक, महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सशक्तीकरण के बिना समाज का सुधार एवं विकास नहीं हो सकता। डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा समय-समय पर समाचार पत्रों, पुस्तकों, भाषणों, संविधान सभा की बहसों आदि में विभिन्न मुद्दों पर व्यक्त किए गए विचारों का व्यवस्थित रूप ही अंबेडकरवाद या अंबेडकर की सोच माना जाता है। अंबेडकरवाद की विचारधारा दुनिया के राजनेताओं से लेकर समाज के हाशिये पर मौजूद लोगों तक सभी का मार्गदर्शन करती है।
अंबेडकरवाद विचारों का एक समूह है, जिसमें समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय, मानवीय गरिमा, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, समाजवाद, और उपेक्षित वर्गों- दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, किसानों और कृषि श्रमिकों, श्रमिकों का सशक्तीकरण तथा ऐसे समतावादी समाज की स्थापना शामिल है, जहां बुनियादी जरूरतें -भोजन, आश्रय, वस्त्र, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम का अधिकार और समान काम के लिए समान वेतन का हक- पूरी हों। अंबेडकरवादी चिंतन इस बात का समर्थन करता है कि महत्वपूर्ण उद्योगों पर सार्वजनिक नियंत्रण (राष्ट्रीयकरण) होना चाहिए। ऐसे में यह चिंतन इस दौर में प्रचलित उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण सहित निगमीकरण के विरुद्ध है। डॉ़ अंबेडकर का समाजवादी चिंतकों में महत्वपूर्ण स्थान है।
अंबेडकरवाद ऐसे समाज की स्थापना की कल्पना करता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का मूल्य जीवन के हर क्षेत्र में समान हो, न कि जन्म, जाति, क्षेत्र, धर्म, भाषा व लैंगिक आदि संकीर्णताओं के आधार पर। भारत में कई तरह की विविधताओं के चलते अंबेडकरवाद सामाजिक सद्भाव और एकता बनाए रखने के लिए ‘विविधता में एकता के सिद्धांत’ की वकालत करता है। अंबेडकरवाद सामाजिक असमानता, अन्याय, अस्पृश्यता, जातिवाद, सामंतवाद, पूंजीवाद, नौकरशाही के जन-विरोधी रवैये, बहुसंख्यक तानाशाही, हिंसक आंदोलनों, धर्म-आधारित या धर्म-प्रधान राज्यों के खिलाफ है।
अंबेडकरवाद के अनुसार जातिवाद के कारण उत्पन्न अस्पृश्यता संकुचित, विभाजक व अमानवीय है। जो राष्ट्रीय एकता, एकीकरण के अलावा देश के विकास में अवरोधक है। अंबेडकरवाद के अनुसार अस्पृश्यता के कारण दलित वर्ग को अपमान झेलना पड़ा। सामाजिक क्रांति के बिना शोषण, असमानता, एवं अपमानजनक व्यवहार समाप्त नहीं होगा। वे जाति प्रथा उन्मूलन के पैरोकार थे। अंबेडकरवाद के समक्ष प्रमुख चुनौतियां हैं- भेदभाव और सामाजिक असमानता, राजनीति में नायक पूजा, जातिवाद, अनुसूचित जाति और जनजातियों के विरुद्ध अपराध, हिंसा, अमानवीय घटनाओं, जाति व रंग के आधार पर अत्याचारों में वृद्धि, प्रशासन में पक्षपात और आर्थिक असमानता आदि।
भारत के संविधान के लागू होने के संदर्भ में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने समाज में विद्यमान विरोधाभासों पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि ‘26 जनवरी, 1950 को हम विरोधाभासों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हम एक व्यक्ति, एक वोट और एक वोट, एक मूल्य के सिद्धांत को मान्यता देंगे। लेकिन सामाजिक और आर्थिक जीवन में, हम अपनी सामाजिक और आर्थिक संरचना के कारण, एक व्यक्ति, एक मूल्य के सिद्धांत को नकारते रहेंगे। हम कब तक विरोधाभासों का जीवन जीते रहेंगे व सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? अगर हम इसे लंबे समय तक नकारते रहेंगे, तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल देंगे। हमें इस विरोधाभास को जल्द से जल्द दूर करना होगा...।’ अंबेडकरवाद के अनुसार, विभिन्न जातियों, धर्मों, संस्कृतियों, क्षेत्रों और विभिन्न भाषा बोलने वाले लोगों के बीच सद्भावना आवश्यक है। भारत की विशालता और विविधता को ध्यान में रखते हुए ‘विविधता में एकता’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को मजबूत किया जा सकता है।
अंबेडकरवाद वर्तमान व्यवस्था के विकल्प की वकालत करता है जिसका उद्देश्य गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा से मुक्त समतावादी समाज की स्थापना; सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; प्रमुख उद्योगों पर सार्वजनिक नियंत्रण; धन का विकेंद्रीकरण और हाशिए पर मौजूद वर्गों का सशक्तीकरण है।
लेखक करनाल स्थित दयाल सिंह कॉलेज के पूर्व प्राचार्य व समाज वैज्ञानिक हैं।