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समझें कैमिकल पके फलों के स्वास्थ्य जोखिम

04:05 AM Jul 02, 2025 IST
समझें कैमिकल पके फलों के स्वास्थ्य जोखिम
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फलों को जल्दी पकाने के लिए कैमिकल्स का उपयोग किया जा रहा है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकते हैं। दरअसल, लालच के चलते कुछ व्यापारी फलों के बीच में कैल्शियम कार्बाइड रखकर उन्हें कृत्रिम तरीके से पकाते हैं जिससे फल तो सुंदर दिखते हैं और जल्दी पक जाते हैं लेकिन इनमें न तो प्राकृतिक मिठास होती है और न ही पोषक तत्व।

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अली खान
कैल्शियम कार्बाइड से पकाए गए आम समेत कई फलों की देश की सबसे बड़ी मंडियों सहित छोटी-से-छोटी मंडी में भी धड़ल्ले से बिक्री जारी है हालांकि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा ऐसे कैमिकल से फल पकाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। विशेषज्ञों के मुताबिक, जल्दी फल पकाने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक है। कैल्शियम कार्बाइड रसायन के उपयोग से फल तो सुंदर, चमकीले रहते हैं और जल्दी पक जाते हैं लेकिन इनमें न तो प्राकृतिक मिठास होती है और न ही पोषक तत्व। बता दें कि कैल्शियम कार्बाइड एक औद्योगिक रसायन है, जिसका प्रयोग मुख्यतः वेल्डिंग तथा एसिटिलीन गैस के निर्माण में होता है। जब इसे पानी के संपर्क में लाया जाता है, तो यह एसिटिलीन गैस उत्पन्न करता है। यही कैल्शियम कार्बाइड फल को कृत्रिम रूप से जल्दी पकाता है। इस प्रक्रिया में उत्पन्न गैसों में केवल एसिटिलीन ही नहीं, बल्कि आर्सेनिक, फॉस्फीन और अन्य विषैले यौगिक भी निकलते हैं, जो मस्तिष्क, यकृत, गुर्दे और हृदय पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
38 फीसदी फल नमूने असुरक्षित
मालूम हो कि भारत फल उत्पादन में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है।‌ साल 2022-23 में भारत ने लगभग 100 मिलियन टन फल उत्पादित किए जिनमें मुख्यतः आम, केला, सेब शामिल हैं। इनमें से लगभग 20-30 फीसदी फल बिना पकाए बाजार तक पहुंचते हैं और वहीं पर रसायनों से पकाए जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि साल 2023 में दिल्ली, मुंबई और कोलकाता की 42 फीसदी फल दुकानों में इसे पकाने के कैल्शियम कार्बाइड का उपयोग पाया गया। चिंताजनक है कि देश में महज तीन सौ से भी कम लाइसेंसशुदा खाद्य निरीक्षक हैं। साल 2022 में एक हजार से अधिक खाद्य नमूनों में से 38 फीसदी फल नमूने असुरक्षित पाए गए।
ज्यादा मुनाफे की चाहत
यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर व्यापारी फलों को पकाने के कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग को क्यों प्राथमिकता देते है? दरअसल, व्यापारी कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए ऐसा करते है। कैल्शियम कार्बाइड के संपर्क में आने के बाद फल जल्दी पक जाते हैं और दिखने में सुंदर हो जाते हैं। विडंबना है कि जो लोग प्राकृतिक तरीके से आम पकाते हैं उनके फल बाजार में नहीं बिकते क्योंकि वे दिखने में कम सुंदर लगते हैं और जल्दी खराब हो जाते हैं। लेकिन हमें यह समझने की आवश्यकता है कि प्राकृतिक रूप से पके फल न केवल स्वाद में बेहतर होते हैं, बल्कि पोषक तत्वों से भी भरपूर होते हैं। परंतु व्यापारिक लालच, उपभोक्ता की दृश्यात्मक प्राथमिकता और उपज की शीघ्रता ने फल विक्रेताओं को रासायनिक तरीकों की ओर मोड़ दिया है। विशेषकर कैल्शियम कार्बाइड जैसे घातक रसायन से फल पकाना अब आम बात है।
सेहत को बड़ा नुकसान
विशेषज्ञों और चिकित्सा वैज्ञानिकों का मानना है कि कैल्शियम कार्बाइड से पके फल खाने से सेहत को बड़ा आघात पहुंच सकता है। कार्बाइड के संपर्क में आने से उत्पन्न अशुद्ध रासायनिक यौगिक लंबे समय तक सेवन करने पर शरीर में कोशिका उत्परिवर्तन को प्रेरित करते हैं, जिससे कैंसर जैसी बीमारी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। आर्सेनिक और फॉस्फीन जैसी गैसें तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती हैं, जिससे सिर दर्द, चक्कर आना और अनिद्रा की समस्या हो सकती है। इसके अलावा, शरीर में विषैले तत्त्वों का जमा होना धड़कन में गड़बड़ी, हाई बीपी और लीवर की क्रियाशीलता में अवरोध उत्पन्न करता है। कार्बाइड से पके फलों के संपर्क में आने पर खुजली, आंखों में जलन व सूजन हो सकती है। साथ ही गैस, अपच, पेट दर्द जैसी समस्याएं हो जाती हैं।
बिक्री पर अंकुश जरूरी
लोगों की सेहत को बनाए रखने के लिहाज से कैल्शियम कार्बाइड युक्त फलों की बिक्री पर अंकुश बेहद जरूरी है। राज्य खाद्य विभागों को नियमित निरीक्षण करना चाहिए और दोषी व्यापारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। उपभोक्ताओं को यह बताया जाना चाहिए कि सुंदर दिखने वाले फल हमेशा स्वास्थ्यवर्धक नहीं होते। आवश्यकता है कि फलों को पकाने के लिए प्राकृतिक तकनीक को अपनाया जाए। बांस के टोकरे, भूसे या अखबार में लपेटकर फल पकाने की पारंपरिक विधियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। किसानों और व्यापारियों को एथीलीन गैस से फल पकाने के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए। जागरूक किया जाये कि कैल्शियम कार्बाइड से पके फल स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं, व वे प्राकृतिक कृषि व्यवस्था को भी नष्ट कर रहे हैं। उपभोक्ताओं को सजग रहना चाहिए। जब तक जनसामान्य, व्यापारी और प्रशासन मिलकर इस समस्या के समाधान की दिशा में काम नहीं करेंगे, तब तक फलों की मिठास और जीवन की सुरक्षा दोनों पर संकट मंडराता रहेगा।

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