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समझदारी से संभालें मानसिक सेहत

04:05 AM Mar 05, 2025 IST
समझदारी से संभालें मानसिक सेहत
मानसिक तनाव
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जिंदगी की तेज रफ्तार के चलते कभी-कभी तनाव स्वाभाविक है। लेकिन लंबे समय तक स्ट्रेस का मानसिक सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है जो एंग्जाइटी समेत कई रोगों की वजह बनता है। बड़ी संख्या में कामकाजी लोग तनाव ग्रस्त हैं। अवैध प्रवासियों के लिए भी डिपोर्टेशन का डर मानसिक बीमारी का जोखिम बढ़ा सकता है। मानसिक समस्याओं चिंता, अवसाद आदि से कैसे निपटें, बता रहे हैं पीजीआई चंडीगढ़ के मनोचिकित्सा विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. असीम मेहरा।

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कविता राज संघाइक
डिपोर्टेशन यानी निर्वासन। किसी देश से दूसरे देश में भेजा जाना। निर्वासन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है, विशेष रूप से तब जब व्यक्ति बहुत से सपने और पैसे खोने के अलावा अपनों से भी दूर होता है। ऐसे में उन्हें तनावपूर्ण और अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ता है। इसका सबसे बुरा असर पड़ता है मानसिक स्वास्थ्य पर। ये घटनाएं विशेषतया युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। इन हालात में युवाओं को तनाव, चिंता, अवसाद आदि का सामना करना पड़ सकता है। उनमें असुरक्षा, अकेलापन, भय, और निराशा रहती है, ऐसे लोगों की देखभाल, काउंसलिंग और कानूनी सहायता इस स्थिति से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पीजीआई चंडीगढ़ के मनोचिकित्सा विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. असीम मेहरा के मुताबिक डिपोर्टेशन या हिरासत में रहने वाले युवाओं में अक्सर चिंता, अवसाद और पीटीएसडी जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे परिवार, युवा या बच्चे अपने भविष्य के बारे में चिंतित रहते हैं जो अवसाद का कारण बनता है।
युवाओं में बढ़ सकती है नशे की प्रवृति
प्रोफेसर असीम के मुताबिक निर्वासन की पीड़ा झेल रहे युवा करिअर के बारे में सोचकर डिप्रेशन में चले जाते हैं एक तरफ उन पर परिवार और रिश्तेदारों का दबाव होता है तो दूसरी तरफ जिंदगी को फिर पटरी पर लाने का। वहीं निर्वासन से पहले अगर वे हिरासत में रहे हैं, या अवैध तरीके से किसी अन्य देश में रह चुके हैं तो वे हमेशा डर के साये में जीते हैं। असुरक्षा की भावना रहती है। तो वे ड्रग्स या शराब के आदी हो सकते हैं।
मदद में न करें देरी
प्रभावित युवा जितनी जल्दी हो सके दोस्तों और परिवार से बात करें। समाज से जुड़ें। परिवार को भी उनके साथ समझदारी दिखाने की जरूरत है। अगर वे डिप्रेशन में हैं तो उनके लक्षण पहचान कर जितनी जल्दी हो सके उन्हें मदद मुहैया कराएं। कई बार प्रभावित परिवार मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को छिपाने की कोशिश करते हैं, जिसका नकारात्मक असर होता है।
समाधान और उपचार
डिपोर्टेशन का सामना कर रहे व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य उपचार और सामाजिक सहयोग की आवश्यकता होती है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, जैसे काउंसलिंग और थैरेपी मददगार हो सकती है। मेडिकेशन से डरने की भी आवश्यकता नहीं होती। प्रोफेसर असीम के मुताबिक डिपोर्टेशन के प्रभावों से निपटने में टॉक थैरेपी, साइकोथैरेपी और कभी कभी स्टिमुलेशन थैरेपी भी मदद कर सकती है। इसके अलावा, उनके लिए कानूनी सहायता भी महत्वपूर्ण है।
बच्चे अधिक प्रभावित
डिपोर्टेशन के दौरान परिवार से अलगाव और घर छोड़ने का अनुभव बच्चों के लिए अत्यंत कष्टदायक हो सकता है। स्कूल ,दोस्तों से अलग होना, कभी-कभी परिवार से भी अलग होने से उनकी मानसिक सेहत पर कई तरह के असर देखे जाते हैं। किशोरावस्था में तो बच्चे कभी-कभी स्किजोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर के शिकार भी हो जाते हैं, खासकर वे बच्चे जो निर्वासन के वक्त माता-पिता से जबरन अलग कर दिये जाते हैं।
परिवार पर असर
निर्वासन से प्रभावित परिवार एक तरफ जहां आर्थिक संकट से गुजरता है, वहीं समाज में वे इसे एक धब्बा यानी सोशल स्टिगमा भी समझने लगते हैं। कुछ मामलों में रिश्तेदारों और जानकारों का सहयोग न मिल पाना परेशानी और बढ़ा देता है। रोजगार के अवसर कम हो जाने, काम न मिलने और सरकार या समाज से सहयोग न मिल पाने के कारण उनकी समस्याएं गंभीर हो जाती हैं। ऐसे में उन्हें मदद की सख्त जरूरत होती है।
ये कदम उठाने हैं जरूरी
अगर आप या आपका कोई भी अपना निर्वासन का दंश झेल रहा है तो उसका सहयोग करें। उसे मित्रतापूर्ण व्यवहार करें। तनाव में है तो बात करें, उसे काउंसलिंग के लिये लेकर जायें। अकेले न रहने दें। अगर बाहर जाकर डॉक्टर से बात करने में हिचकिचाहट हो तो अपने शहर में टेलीमानस हेल्पलाइन पर कॉल कर ऑनलाइन मदद मांगें। टेलीसाइकेट्री पर संपर्क करें। कई बड़े अस्पताल क्राइसेस नंबर भी मुहैया कराते हैं। उस पर ऑनलाइन मदद लें।

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