सबक सिखाने को जरूरी आयात नियंत्रण के उपाय
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को समर्थन व हथियार देकर खुल्लमखुल्ला मदद की। इसके बावजूद वह भारत का दूसरा बड़ा कारोबारी साझेदार बना हुआ है। खास बात यह कि व्यापार संतुलन उसके पक्ष में है। ऐसे में जरूरी है कि भारत अपने आयात चीन से कम करे। यह उस पर बड़ा आर्थिक प्रहार होगा।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाई पर चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखाई दिया। चीन ने न केवल पाकिस्तान को पूर्ण समर्थन दिया, बल्कि उसे मिसाइलों सहित विभिन्न हथियारों की आपूर्ति भी की। हालांकि चीन निर्मित जिन हथियारों का पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ प्रयोग किया, वे पराक्रमी भारतीय सेना और प्रभावी सैन्य व्यवस्था को हानि पहुंचाने में नाकाम रहे। दरअसल,चीन अप्रत्यक्ष रूप से भारत को आर्थिक शक्ति बनने से रोकना चाहता है। ऐसे में अब भारत द्वारा पाकिस्तान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंधों के साथ ही चीन से बढ़ते आयात को नियंत्रित करके उसे भी आर्थिक सबक दिया जाना जरूरी है।
हालिया आंकड़ों के मुताबिक चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में भारत लगातार घाटे में है। पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में चीन को भारत का निर्यात 14.5 प्रतिशत घटकर 14.25 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2023-24 में यह 16.66 अरब डॉलर था। चिंताजनक यह कि चीन से 2024-25 में आयात 11.52 प्रतिशत बढ़कर 113.45 अरब डॉलर हो गया, जबकि 2023-24 में यह 101.73 अरब डॉलर था। चीन के साथ व्यापार घाटा बीते वित्त वर्ष में करीब 17 प्रतिशत बढ़कर 99.2 अरब डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 85.07 अरब डॉलर था। चीन 2024-25 में 127.7 अरब डॉलर द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा। चीन पर निर्भरता कम करने के जो रणनीतिक कदम उठाए गए हैं, उनका कोई विशेष असर नहीं दिखा। अब पाकिस्तान को खुला समर्थन दे रहे चीन के साथ कोई छह माह पूर्व भारत ने मित्रता की जिस राह को आगे बढ़ाया था, उसे रोककर चीन के साथ कारोबार असंतुलन कम करने को कदम उठाने जरूरी हैं।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष 31 अक्तूबर को दीपावली के दिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन के सैनिकों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई थी। इसका कारण था कि पिछले वर्ष 23 अक्तूबर को रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच सफल द्विपक्षीय वार्ता हुई जिसमें दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया था। दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध हल करने के लिए समझौते का स्वागत किया और अधिकारियों को लद्दाख में सीमा विवाद सुलझाने के लिए बातचीत जारी रखने के निर्देश दिए। इस वार्ता के बाद सैन्य स्तर पर क्रियान्वयन के साथ डेमचोक और डेपसांग क्षेत्रों में टकराव बिंदुओं से सैनिकों की वापसी के बाद से लगातार पेट्रोलिंग हो रही है। यद्यपि चीन से नए सैन्य समझौते के बाद भारत को वहां से ज्यादा आयात से बचने के लिए सावधानी बरतना जरूरी लग रहा था, लेकिन भारत ऐसा नहीं कर पाया व चीन से आयात बढ़ते गए।
कोई दो मत नहीं कि चीन पाकिस्तान को आतंकी प्रोत्साहन देते हुए भारत की तेजी से बढ़ती आर्थिकी की राह में बाधक बनना चाहता है। चीन जानता है कि भारत अपनी बढ़ती आर्थिक साख व तेजी से इसी वर्ष 2025 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आर्थिकी बनते हुए दिखाई देगा! हाल ही में प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। इसी वर्ष 2025 के अंत तक भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। उस समय देश का जीडीपी बढ़कर 4.187 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा और यह जापान के जीडीपी 4.186 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा होगा। रिपोर्ट में कहा गया कि विकास की ऊंची दर से भारत का जीडीपी 2028 में बढ़कर 5.584 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
इसी तरह हाल ही में वैश्विक रेटिंग एजेंसी मॉर्निंग स्टार डीबीआरएस ने भारत की सॉवरेन रेटिंग को निम्नतम निवेश ग्रेड ‘बीबीबी (कम)’ से एक पायदान ऊपर उठाकर ‘बीबीबी’ कर दिया है। रेटिंग प्रवृत्ति को भी ‘सकारात्मक’ से ‘स्थिर’ कर दिया गया है। इस रेटिंग एजेंसी ने उन्नयन के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश और डिजिटलीकरण, राजकोषीय समेकन, व्यापक आर्थिक स्थिरता के साथ सतत उच्च विकास और लचीली बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से देश के संरचनात्मक सुधारों का हवाला दिया है। दुनिया के उभरते हुए देशों में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से आगे बढ़ रही है। बीती अप्रैल में जीएसटी संग्रह 2.09 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया, जो किसी माह अभी तक का सर्वाधिक राजस्व है। पिछले वर्ष 2024-25 में जीएसटी और इनकम टैक्स संग्रह रिकॉर्ड ऊंचाई पर रहा।
निश्चित रूप से भारत को आर्थिक रूप से आगे बढ़ने से रोकने और शत्रुतापूर्ण व्यवहार कर रहे चीन से व्यापार घाटा कम करने के लिए सरकार को कारगर प्रयास करने होंगे। कोई दो मत नहीं कि पिछले एक दशक से स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित करके चीन से आयात घटाने के प्रयास हुए। वर्ष 2019 और 2020 में चीन की भारत के प्रति आक्रामक और विस्तारवादी नीति सामने आई, तोे स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश में बढ़ती दिखाई दी। वोकल फॉर लोकल मुहिम के प्रसार ने स्थानीय उत्पादों की खरीदी को पहले की तुलना में अधिक समर्थन दिया। अब एक बार फिर से देश के करोड़ों लोगों को चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नए संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा। चीन के लिए भारत के विशाल बाजार में आयातों में कमी आर्थिक प्रहार के रूप में दिखाई देगी और इससे स्वदेशी उद्योग तथा एमएसएमई लाभान्वित होंगे।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।