सफल फिल्मों की फेहरिस्त में दीवार ने रचा था इतिहास
साल 1975 में दर्शकों के सामने आयी भावनात्मक फिल्म दीवार ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाये। इस में यश चोपड़ा के निर्देशन में अमिताभ बच्चन ने यादगार भूमिका निभाई। सलीम-जावेद की सधी स्क्रिप्ट के साथ खास तौर से ‘मेरे पास मां है’ जैसे संवाद भी एक मिसाल हैं। हिंदी फिल्मों के कथ्य व कला पक्ष की कई स्थापित रिवायतें भी इस फिल्म ने तोड़ीं।
राजेंद्र शर्मा
पचास साल पहले 24 जनवरी 1975 को रिलीज हुई फिल्म दीवार ऐसी ब्लॉकबस्टर फिल्म साबित हुई कि इसने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया था। लगातार 100 हफ्ते तक सिनेमाहाल में हाउसफुल रही दीवार 70 और 80 के दशक की उन 13 फ़िल्मों में से एक थी जिन्होंने पूरे भारत के हर राज्य में एक करोड़ रुपये से अधिक का बिजनेस किया। दीवार को क्रिटिक की दुनिया का भी बेशुमार प्यार मिला। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समीक्षक स्टीवन जे श्नाइडर ने अपनी किताब ‘1001 मूवीज़ यू मस्ट सी बिफ़ोर यू डाई’ की सूची में जिन तीन हिंदी फ़िल्मों को शामिल किया था उनमें ‘दीवार’ भी है। इस फिल्म ने उस साल फिल्मफेयर के कुल छह अवार्ड अपने नाम कराये।
दीवार की कहानी
फिल्म गरीब भाइयों की कहानी है, जो अपने पिता के आदर्शवाद के कारण मुंबई की मलिन बस्तियों में जीवन का संघर्ष करते हैं और अंततः दोनों में से एक अच्छाई और दूसरा बुराई का प्रतीक बन जाता है। दीवार शीर्षक उस दीवार का प्रतीक है जो परिस्थितियों के कारण दोनों भाइयों के बीच खड़ी हो गई। आनंद वर्मा (सत्यन कप्पू) मजदूर संघ का नेता है और मजदूरों के हक़ के लिए फैक्ट्री मालिकों से लड़ाई करता है, पर फैक्ट्री मालिक उसके परिवार को जान से मारने की धमकी देते हैं, जिससे डरकर आनंद उनकी बात मान लेता है। इससे गुस्साये मजदूर आनंद पर हमला कर देते हैं। आनंद घर छोड़कर भाग जाता है। मजदूर, आनंद के बड़े बेटे विजय के हाथ पर ‘मेरा बाप चोर है’ लिख देते हैं। मजदूरों से परेशान होकर आनंद की पत्नी सुमित्रा (निरुपा रॉय) अपने बच्चों विजय (अमिताभ बच्चन) और रवि (शशि कपूर) के साथ बंबई चली आती है। विजय मज़दूरी करता है ताकि उसका भाई रवि पढ़ सके। गरीबी से लड़ रहा विजय तस्कर गिरोह का सरगना बन जाता है जबकि छोटा भाई रवि पुलिस अफ़सर। विजय को लगता है सच्चाई पर चलने से सिर्फ़ नाकामी मिलती है पर रवि को क़ानून पर विश्वास है। ऐसे में रवि को क़ानून और भाई में से किसी एक को चुनना है और यह फैसला उसने मां पर छोड़ दिया। मां बुरे बेटे को चाहती है लेकिन उसे अच्छे बेटे को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ‘दीवार’ के चरित्र बहुत हद तक ‘मदर इंडिया’ से मिलते हैं लेकिन सलीम-जावेद ने उन्हें समकालीन टच दिया। निर्देशक यश चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘पहली नज़र में मुझे सुनकर लगा कि ये कहानी ‘मदर इंडिया’ से प्रभावित है लेकिन सलीम-जावेद की स्क्रिप्ट ज़बरदस्त थी और उससे भी ज़बरदस्त थे उसके डायलॉग।’ ये एक भावनात्मक फ़िल्म थी।
दमदार संवाद
कहानी के साथ दीवार के बहुत ही दमदार संवाद सलीम-जावेद ने लिखे , जो दर्शकों को आज पचास साल बाद भी याद आते हैं। जैसे ‘मेरा बाप चोर है।’ ‘आज मेरे पास बंगला है, प्रॉपर्टी है, गाड़ी है, बैंक बैलेन्स है, तुम्हारे पास क्या है?’ - ‘मेरे पास मां है।’
फिल्म के कलाकार
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने विजय वर्मा तथा शशि कपूर ने रवि वर्मा की भूमिका का निर्वाह किया था। विजय और रवि की मां सुमित्रा देवी का चरित्र निरूपा रॉय ने अभिनीत किया। विजय और रवि के पिता की भूमिका सत्येन्द्र कप्पू ने अदा की। रवि की प्रेमिका लीला नारंग की भूमिका नीतू सिंह ने और विजय की प्रेमिका अनिता की भूमिका परवीन बॉबी ने अदा की। इफ़्तेख़ार ने मुल्कराज धाबडिया ,मनमोहन कृष्णा ने डीसीपी नारंग, मदन पुरी ने सामन्त,सुधीर ने जयचन्द तथा जगदीश राज ने जग्गी की भूमिका अदा की। राज किशोर ने दर्पण की,युनुस परवेज़ ने रहीम चाचा, राजन वर्मा ने लच्छू तथा एके हंगल ने चन्दर के पिता की भूमिका अदा की।
अमिताभ नहीं थे पहली पंसद
निर्देशक यश चोपड़ा इस फिल्म में विजय वर्मा के रोल के लिए अमिताभ बच्चन को कास्ट नहीं करना चाहते थे। विजय वर्मा के किरदार के लिए राजेश खन्ना ,रवि वर्मा के लिए नवीन निश्चल तथा मां सुमित्रा के किरदार के लिए वैजयंतीमाला यश चोपड़ा की पहली पसंद थे। सलीम-जावेद ने मनमुटाव के चलते राजेश खन्ना को फ़िल्म में नहीं लेने दिया। नवीन निश्चल और वैजयंतीमाला ने फ़िल्म में काम करने से मना कर दिया। इसके बाद यश चोपड़ा ने विजय के रोल के लिए अमिताभ और रवि के लिए शशि कपूर को लिया।
सलीम-जावेद की किस्मत पलटी
कहा जाता है कि इस फ़िल्म के बाद सलीम-जावेद ने अपनी फ़ीस 8 लाख रुपए कर दी थी, जो उस ज़माने में किसी कहानीकार के लिए सबसे बड़ा पारिश्रमिक था। पहले जब सलीम-जावेद ने यश चोपड़ा को अपनी कहानी सुनाई थी तो उन्होंने उनसे बतौर मेहनताना एक 1 लाख रुपए मांगे थे जिसे उन्होंने देने से इंकार कर दिया था।
‘दीवार’ फ़िल्म ने कई रवायतें तोड़ी थीं। फ़िल्म में मात्र दो गाने थे, निर्माता गुलशन राय को ये बात पसंद नहीं आ रही थी। उनके ज़ोर देने पर फ़िल्म में एक सूफ़ी गाना जोड़ा गया। यश चोपड़ा ने इसे पसंद नहीं किया था लेकिन बाद में गुलशन राय की बात मान ली। हीरो ‘एंटी हीरो’ था, रोमांस की गुंजाइश बहुत कम थी, हीरोइन का बहुत छोटा रोल था। फ़िल्म में एक्शन था, इमोशंस थे, रोमांस था, और थी क्राइम की दुनिया। इस फ़िल्म का जादू अगर आज तक क़ायम है तो इसमें अमिताभ बच्चन-शशि कपूर की जोड़ी के अभिनय के अलावा दमदार कहानी, चुस्त पटकथा और एक से बढ़कर एक डायलॉग की भूमिका रही।