सच्चा मार्गदर्शक
मालवा के राजा भोज, माघ पंडित को साथ लेकर घूमते-घामते नगरी से कोसों दूर निकल गये और रास्ता भूल गए। लाख सिर पटका, पर सही रास्ता न मिला। हारकर दोनों एक बुढ़िया के पास पहुंचे। माघ ने कहा, ‘मां, पाय लागूं।’ ‘जीते रहो, बेटे! तुम दोनों कौन हो?’ बुढ़िया ने आशीष देकर पूछा। ‘मां, हम राही हैं, रास्ता भूल गए हैं।’ माघ ने असलियत छिपाते हुए कहा। ‘बेटा! संसार में राही तो दो ही हैं। एक सूर्य, दूसरा चन्द्रमा। तुम तीसरे कहां से आये?’ ‘मां! मैं राजा हूं।’ भोज ने जवाब दिया। बुढ़िया हंसकर बोली, ‘बेटा, राजा भी दो ही हैं। एक इन्द्र और दूसरे यमराज तुम इनमें से कौन से हो?’ ‘मां! हम परदेशी हैं।’ माघ ने कहा। ‘मगर परदेशी भी दो हैं- पहले जीव-जन्तु और दूसरे पेड़-पौधे। बताओ, इनमें से तुम कौन हो?’ ‘हम बहुत क्षमता वाले हैं।’ भोज ने कहा। ‘पर बेटा! क्षमतावान भी केवल दो हैं। एक पृथ्वी और दूसरी स्त्री। तुम कौन से हो?’ ‘मां। हम हारे हुए पथिक है।’ माघ बोले। ‘हारे हुए भी संसार में दो ही हैं-कर्जदार और कन्या का पिता। तुम कौन हो?’ ‘मां! हमें कुछ नहीं मालूम, तुम्ही बताओ...?’ भोज ने कहा। ‘बेटा, मैं तो यूं ही अटकल लगा रही थी। आपको कौन नहीं जानता। आप है राजा भोज और ये हैं माघ पंडित!’ यह कहकर बुढ़िया ने उनको सही रास्ता दिखा दिया। गंवई बुढ़िया की चतुरता और बुद्धिमानी देखकर राजा भोज और माघ अवाक् रह गये।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन