सक्रिय जीवन और परहेज से दूर करें मधुमेह
बिगड़ी जीवनचर्या और खानपान के अलावा तनाव मधुमेह यानी शूगर रोग की प्रमुख वजह है। आयुर्वेद के मुताबिक, खानपान में परहेज और दिनचर्या में परिवर्तन लाकर इस रोग से मुकाबला संभव है। वहीं कई औषधियां भी इस रोग में कारगर मानी जाती हैं।
प्रो. अनूप कुमार गक्खड़
कोई व्यक्ति अगर अचानक थकावट महसूस करने लगे, चल रहा हो तो उसकी इच्छा खड़ा होने की हो और खड़ा है तो उसकी इच्छा बैठने की हो और बैठा हो तो लेटने की इच्छा हो और लेट गया हो तो उसकी इच्छा सोने की हो तो वह व्यक्ति मधुमेह रोग से ग्रसित हो रहा है। सुश्रुत ने हजारों वर्ष पूर्व इन लक्षणों से मधुमेह के बारे में सचेत कर दिया था। चरक संहिता ने स्पष्ट कर दिया कि जो व्यक्ति अधिक खाता है और स्नान और सैर से परहेज करता है उसका शरीर प्रमेह रोग के लिए सबसे उपयुक्त है। आयुर्वेद में डायबिटीज के लिए मधुमेह शब्द का प्रयोग हुआ है। इसकी शुरुआत प्रमेहरोग के रूप में होती है और बाद में सभी प्रकार के प्रमेह मधुमेह अर्थात डायबिटीज में परिवर्तित हो जाते हैं। यद्यपि यह एक विश्वव्यापी समस्या है पर हमारे देश में इसके खतरे की घंटी बज गयी है। लोग छोटी आयु में ही इससे ग्रसित हो रहे हैं।
रोग के कारक
जो लोग एक ही स्थान पर बैठे रहते हैं, शारीरिक श्रम नहीं करते हैं और दही व दूध से बनी वस्तुओं का सेवन अधिक करते हैं उनके प्रमेह रोग से ग्रसित होने की सम्भावना रहती है। नया अन्न खाना, मीठी वस्तुओं का सेवन अधिक करना, खट्टी और नमकीन वस्तुओं का अधिक प्रयोग करना कुछ प्रमुख कारण हैं जिनसे इस रोग की उत्पत्ति अधिक होती है। गरिष्ठ भोजन करना भी इस रोग का कारण है। वहीं तनाव इस रोग की वृद्धि करता है।
मधुमेह के लक्षण
शूगर रोग के लक्षण आपको सचेत करते हैं। व्यक्ति मधुमेह से ग्रसित हो रहा है उनमें कुछ संकेत शामिल हैं जैसे प्यास अधिक लगना, बार-बार पेशाब, बालों में चिपचिपाहट होना, दांतों पर मैल जमना शुरु होना, मुख में मीठापन महसूस होना, हाथ व पैरों का सुन्न होना तथा जलन होना मुख तालु व कंठ का सूखना, मूत्र के ऊपर चींटियां आना, थकावट महसूस होना, शरीर से बदबू आना व सुस्ती आदि। उक्त लक्षणों का पैदा होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति भविष्य में मधुमेह से ग्रसित होने वाला है। रक्त में शर्करा की मात्रा के आधार पर रोग का यकीनी निदान किया जाता है। वर्तमान में खाली पेट रक्त में शर्करा की मात्रा 100 मि.ग्रा. से अधिक होने पर डायबिटिक कहा जाता है।
जीवनशैली में परिवर्तन
आचार्य चरक ने कहा है कि मधुमेह रोग को जितनी बार ठीक करागे उतनी बार ही यह पुनः अंकुरित होगा। अतः इसका इलाज सतत परहेज करने में और अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाने में निहित है। खानपान व उचित रहन-सहन के नियमों का पालन करने से इस रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है।
परहेज
आयुर्वेदिक शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन करने से लाभ होता है। जैसे कम खाएं, रोजाना सैर करें, नित्य स्नान करें। मठ्ठे का प्रयोग करें पर दही से परहेज करें।
खुराक और औषधियां
जौ का प्रयोग रोजाना करें। जौ का प्रयोग पाचन सुचारू करता है और मूत्र की मात्रा में कमी लाता है। प्रमेह के रोगी के लिए यह एक श्रेष्ठ आहार है। कब्ज की शिकायत मत रहने दें। हरड़ का चूर्ण रात को सोते समय लें। आंवला व हल्दी को सर्वश्रेष्ठ प्रमेहनाशक द्रव्य कहा गया है। इन का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर तीन-तीन ग्राम की मात्रा में प्रातः-सायं लें। कड़वी सब्जियों यथा करेला, मेथी परवल आदि का प्रयोग करें। भोजन में कुलत्थ, मूंग,अरहर, चना व मोठ की दालों का प्रयोग करें। शिलाजीत का प्रयोग चिकित्सकीय निर्देश अनुसार करें। पानी का प्रयोग कम करें। भोजन के बाद जल न पिएं। सोते समय पानी न पिएं। मल व मूत्र का वेग होने पर उसे रोकें नहीं। दूध और घी का प्रयोग कम करें। किसी भी प्रकार का सेक शरीर पर मत करें। सदैव एक स्थान पर लगातार मत बैठे रहें। शरीर में किसी तरह से खून निकलने पर उसे तुरन्त रोकें। अधिक मीठी, अधिक नमकीन व अधिक खट्टी वस्तुओं के प्रयोग से परहेज करें। तेल, गुड़ व पिसे हुए अन्न का प्रयोग न करें। सिगरेट, शराब से परहेज करें। गर्मियों के मौसम को छोडकर दिन में मत सोएं।
मधुमेह के रोगियों के लिये त्रिफला, गुड़ूची का प्रयोग श्रेष्ठ फलदायी हैं। त्रिफला के बारे में आम धारणा है कि यह केवल पेट साफ करने की दवाई के रूप में ग्रहण किया जाता है जबकि प्रमेह रोग को जीतने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।