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सकारात्मक जीवन शैली चिंता मुक्ति में मददगार

04:05 AM May 21, 2025 IST
सकारात्मक जीवन शैली  चिंता मुक्ति में मददगार
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युद्ध या आतंकी घटना से उपजे माहौल में हम टीवी न्यूज चैनलों पर ज्यादा समय बिताते हैं। इस बारे लगातार सोचकर चिंता यानी वॉर एंग्जाइटी हो जाती है। रिसर्च के मुताबिक यह स्थिति मानसिक विकार की वजह भी बन सकती है। ऐसे में जीवनचर्या बदलें व परिवर्तित हालात स्वीकार लें तो चिंता पास नहीं फटकेगी।

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शिखर चंद जैन
टीवी पर ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े समाचार देखते हुए मीरा ने महसूस किया कि उसका जी मितला रहा है, हल्के चक्कर आ रहे हैं और सिर भारी-भारी सा लग रहा है। उसे बार-बार वॉशरूम भी जाना पड़ रहा था और प्यास भी लग रही थी। पति को डायबिटीज की समस्या थी, मगर उसे तो कभी ऐसा नहीं लगा। उसने शुगर चेक किया, तो नॉर्मल था। घर में बीपी चेक करने वाली मशीन भी थी बीपी चेक किया तो, खास बढ़ा हुआ नहीं था, सामान्य ही था। मीरा ने टीवी बंद किया, एक गिलास नींबू पानी पिया और पार्क में टहलने के लिए निकल पड़ी।
सोसायटी की कुछ सहेलियां मिल गईं। उनसे बातें करते हुए उसने जब अपनी समस्या के बारे में बताया, तो एक और महिला ने भी बिल्कुल वैसे ही लक्षणों का जिक्र किया और कहा, कलेजा धक-धक कर रहा था तो मैं इधर आ गई। यहां अच्छा लग रहा है। मीरा ने भी कहा कि मुझे भी अब अच्छा फील हो रहा है। उनकी बातें सुनकर अवंतिका ने कहा, जरूर तुम दोनों को टीवी न्यूज सुनते-सुनते वार एंग्जाइटी की प्रॉब्लम हो गई। इन दिनों में डॉक्टर साहब के पास ऐसे कई केस आ रहे हैं। अवंतिका किसी साइकोलॉजिस्ट के यहां असिस्टेंट के पद पर काम करती थी, इसीलिए उसे मनोरोगों की थोड़ी-बहुत समझ थी।
वॉर एंग्जाइटी क्या है?
जब युद्ध, मौत और विनाश के बारे में ब्रेकिंग न्यूज़, वीडियो और तस्वीरें मीडिया में छा जाती हैं, तो यह स्थिति कई लोगों को परेशान करने वाली और डरावनी हो सकती है। कुछ लोगों में ये सब भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है, जिससे चिंता और तनाव बढ़ सकता है। कुछ विशेषज्ञों ने इस स्थिति को “हेडलाइन स्ट्रेस डिसऑर्डर”, “युद्ध की चिंता” या “परमाणु चिंता” नाम दिया है। मनोविज्ञानी स्टेफ़नी कोलियर, एमडी, ने हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग में प्रकाशित अपने लेख में बताया है कि युद्ध की चिंता सैन्य बलों द्वारा हमलों या आतंकी हिंसा के बारे में समाचार और भयावह तस्वीरों के प्रति भय से उपजी प्रतिक्रिया है।
चिंता के लक्षण
डर , चिंता और अनिश्चितता उत्पन्न करने वाले समाचार, एंकर्स और प्रवक्ताओं की उग्र टिप्पणियां, बम और मिसाइलों के धमाके, रक्तपात और विनाश के दृश्य आपके दिल,दिमाग और शरीर में तीव्र प्रतिक्रियाएं तेज कर सकते हैं। चिंता के शारीरिक लक्षणों में दिल की तेज धड़कन, पेट में गुड़गुड़ाहट या मरोड़, मतली या चक्कर आना शामिल हो सकते हैं। कुछ लोगों में घबराहट या एंग्जाइटी के दौरे पड़ते हैं। युद्ध की चिंता से सोने में परेशानी, बेचैनी या बुरे और डरावने सपने के रूप में सामने आती है। दिमाग को सुन्न महसूस कर सकते हैं ।
क्या करें वॉर एंग्जाइटी हो जाये तो...
न्यूज चैनल न देखें-सुनें
अगर आप बेचैनी महसूस करते हैं तो न्यूज चैनल से अपने संपर्क को सीमित करें। बेहतर होगा आप अपनी किसी हॉबी पर समय दें। अच्छी किताबें पढ़ें और प्रेरक आलेख पढ़ें।
परिजनों का सान्निध्य
परिवार के सदस्यों या दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। अपने प्रियजनों से जुड़े रहें और उनका हालचाल लेते रहें।
योग-ध्यान व सैर
माइंडफुलनेस, शारीरिक गतिविधि और ब्रीदिंग एक्सरसाइज से इमोशंस को पॉजिटिव रखें।बच्चों के साथ खेलें और पार्क में टहलने की आदत डालें। शोध बताते हैं कि प्रकृति में समय बिताने से तनाव और चिंता से राहत मिल सकती है।
तेज व्यायाम
अपनी शारीरिक गतिविधि की तीव्रता बढ़ाएं। कोई भी एरोबिक गतिविधि चिंता को कम कर सकती है, लेकिन व्यायाम की तीव्रता और उसमें आपकी संलग्नता जितनी अधिक होगी, चिंता पर अच्छा प्रभाव उतना ही अधिक होगा ।
भोजन और नींद
पोषक और सेहतमंद भोजन खाएं। पर्याप्त नींद लें। हाइड्रेटेड रहने के लिए खूब पानी पिएं।
बदलते हालात को स्वीकारें
अनिश्चितता को स्वीकार करें। युद्ध के कारण होने वाली चिंता या तनाव से निपटने के लिए, उस पर ध्यान केंद्रित करें जिसे आप नियंत्रित कर सकते हैं। अनिश्चितता महसूस करना पूरी तरह से सामान्य है। आपको स्वयं को समझना होगा कि इस स्थिति पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है।
चिंता से मानसिक विकार संबंधी रिसर्च
एक फिनिश अध्ययन में पाया गया कि परमाणु युद्ध के बारे में चिंतित किशोरों में पांच साल बाद सामान्य मानसिक विकारों का जोखिम बढ़ गया था। चिंता से ग्रस्त लोगों में संकटों के बारे में मीडिया कवरेज की तलाश करने की अधिक संभावना होती है। ऐसे में युद्ध की चिंता धीरे-धीरे आप पर हावी हो सकती है या यह किसी ट्रिगर के जवाब में अचानक प्रकट हो सकती है।
-मनोविज्ञानी रूपा तालुकदार से बातचीत पर आधारित।

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