For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

संतोष और अहंकार की खेती

04:00 AM Jun 30, 2025 IST
संतोष और अहंकार की खेती
Advertisement

प्रख्यात वैष्णव संत-कवि कुंभनदास अपनी संतोषवृत्ति और सरल स्वभाव के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। एक बार राजा मानसिंह उनके दर्शन करना चाहते थे, परंतु उन्होंने कवि से पहचान छिपाने के लिए भेष बदल लिया। उस समय कुंभनदास तिलक लगाने के लिए आईना खोज रहे थे। उन्हें बताया गया कि उनका आईना कल बिल्ली से टूट गया। कुंभनदास ने शांत स्वर में कहा, ‘कोई बात नहीं बेटी (बिल्ली) है, किसी कारणवश ऐसा हो गया।’ फिर वे एक टूटे हुए मटके के पात्र में भरे पानी में चेहरा देखकर तिलक लगाने लगे। यह देखकर राजा विस्मित रह गए। अगले दिन राजा ने उन्हें स्वर्ण मुद्राएं भेंट करनी चाहीं, पर कुंभनदास ने लेने से इनकार कर कहा, ‘महाराज, मेरा जीविकोपार्जन मेरी खेती से हो जाता है। कृपया करके इसे न बढ़ाएं, वरना मेरे जीवन में दिखावे और अहंकार की खेती हो जाएगी।’ राजा मानसिंह, उनकी संतोषवृत्ति और विनम्रता देखकर अभिभूत हो गए और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया।

Advertisement

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

Advertisement
Advertisement
Advertisement