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संतुष्ट जीवन के लिए योग के संयोग

04:00 AM Jun 20, 2025 IST
संतुष्ट जीवन के लिए योग के संयोग
Puri: Sand artist Sudarsan Pattnaik creates a sand sculpture of Prime Minister Narendra Modi in yoga pose, on the eve of International Day of Yoga, at Puri beach, Monday, June 20, 2022. (PTI Photo)(PTI06_20_2022_000308B)
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क्रियायोग आध्यात्मिक अभ्यास की पद्धति सच्चे योगी को अन्ततः जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को दिए गए उपदेश में दो बार क्रियायोग का उल्लेख किया है।

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विवेक अत्रे

यदि हम किसी नवयुवक से आग्रहपूर्वक योग को अपनाने के लिए कहें तो वह हमसे पूछ सकता है, ‘मेरे लिए योग इतना महत्वपूर्ण क्यों है?’ निश्चित रूप से उसके प्रश्न का बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर देने के लिए स्वयं हमें इसका उत्तर ज्ञात होना चाहिए। निस्संदेह, पिछले एक दशक से प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर भारत ने हमारे जीवन में योग के शाश्वत महत्व को उत्सव के रूप में मनाने में सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्व किया है। फिर भी, जैसा कि हममें से कुछ लोग जानते हैं कि योग का सही अर्थ इसकी आंतरिक एवं गहन व्यक्तिगत अभिव्यक्ति में निहित है। योग और ध्यान की वैज्ञानिक पद्धतियों का नियमित अभ्यास हमें उस ईश्वर के साथ एकता की दिव्य खोज की ओर ले जाता है, जिस पर संसार के सभी धर्म बल देते हैं; यह खोज कालांतर में प्रेरित होती है और अंततः संभव भी होती है।
क्रियायोग आध्यात्मिक अभ्यास की पद्धति सच्चे योगी को अन्ततः जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को दिए गए उपदेश में दो बार क्रियायोग का उल्लेख किया है। दरअसल, अनेक सदियों की मानवीय अज्ञानता के पश्चात उन्नीसवीं शताब्दी में महान आध्यात्मिक गुरु लाहिड़ी महाशय ने अपने शाश्वत गुरु महावतार बाबाजी के आशीर्वाद से इस महत्वपूर्ण और शुद्ध विज्ञान की पुनः खोज की। तत्पश्चात लाहिड़ी महाशय के शिष्य स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरिजी ने कालांतर में अपने शिष्य श्री श्री परमहंस योगानन्द को क्रियायोग का गहन ज्ञान प्रदान किया।
कालांतर में योगानन्द जी ने मानव कल्याण के लिये क्रियायोग के वैश्विक दूत होने का संकल्प किया और इसके लाभों का सम्पूर्ण पाश्चात्य जगत में प्राणपण से प्रचार किया। आज सम्पूर्ण विश्व में उनके लाखों अनुयायी योग-ध्यान की वैज्ञानिक प्रविधियों का अभ्यास निरंतर करते हैं, जो स्वाभाविक रूप से क्रियायोग मार्ग का ही विस्तार है। योगानन्दजी ने अपनी विश्व प्रसिद्ध और तमाम वैश्विक भाषाओं में अनुवादित पुस्तक ‘योगी कथामृत’ में अत्यंत प्रेरक ढंग से इसका वर्णन किया है, ‘माया या प्रकृति के नियम के अधीन जीने वाले मनुष्यों में प्राणशक्ति का प्रवाह हमेशा बाह्य जगत की ओर होता है और इन्द्रियों में प्राणशक्ति का व्यय हो जाता है। साथ ही गाहे-बगाहे उसका दुरुपयोग भी होता है। सुखद ही है कि क्रियायोग का अभ्यास इस प्रवाह को वापस मोड़ देता है; प्राणशक्ति को मन द्वारा अन्तर्जगत में ले जाया जाता है, जहां प्राणशक्ति मेरुदण्ड की सूक्ष्म शक्तियों के साथ पुनः एक हो जाती है। प्राणशक्ति को इस प्रकार पुनः बल मिलने से योगी के शरीर एवं मस्तिष्क की कोशिकाओं को एक आध्यात्मिक अमृत से नवशक्ति प्राप्त होती है।’
निश्चित रूप से क्रिया योग हमारे तन-मन के साथ ही आध्यात्मिक कल्याण करता है। योगी कथामृत पुस्तक से हम यह भी सीखते हैं कि क्रियायोग का नियमित अभ्यास सच्चे साधक को अपने रक्त को कार्बनरहित करने और उसे ऑक्सीजन से आपूरित करने में सक्षम बनाता है, जिसका संबंध हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से है। इस प्रकार मस्तिष्क और मेरुदण्ड इस अतिरिक्त ऑक्सीजन से पुनर्जीवन प्राप्त करते हैं और ऊतकों का क्षय रुक जाता है। पूर्ण रूप से क्रियायोग के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभों का वर्णन करना सम्भव नहीं है। यह जीवन को समृद्ध बनाने वाली एक प्रविधि है जिसका निष्ठापूर्ण अभ्यास निश्चित रूप से योगी के अस्तित्व को उन्नत करता है।
निस्संदेह, क्रियायोग एक सार्वजनीन प्रविधि है और इसके अभ्यास द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन की साधारण दिनचर्या से परे आध्यात्मिक ऊंचाइयों और गहराइयों तक पहुंच सकता है। सन‍् 1917 में श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा स्थापित संस्था, योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस), भारत, नेपाल और श्रीलंका के साधकों में योगानन्दजी की विशुद्ध क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार करती है। वाईएसएस की सहयोगी संस्था सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) लॉस एंजेलिस स्थित अपने मुख्यालय (मदर सेंटर) के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व में इसी प्रकार की भूमिका निभाती है। योगानन्दजी ने ठीक सौ साल पहले सन‍् 1925 में मानवता के कल्याण के लिए एसआरएफ की स्थापना की थी। इन वर्षों में लाखों साधक इन शिक्षाओं से लाभान्वित हुए हैं। उनके जीवन में अप्रत्याशित बदलाव आए हैं। साथ ही पश्चिमी जगत में योग को प्रतिष्ठा मिली है।
आपके और मेरे जैसे इस संसार के सामान्य लोगों के लिए, जीवन को संतुष्टि प्रदान करने वाला योग का प्रभाव केवल तभी अनुभव किया जा सकेगा जब हम परिश्रम और निष्ठापूर्वक क्रियायोग जैसी किसी वैज्ञानिक पद्धति का अभ्यास करेंगे। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इस प्रकार हम सब के लिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का यही वास्तविक महत्व है!

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लेखक प्रेरक वक्ता एवं पूर्व आईएएस अधिकारी हैं।

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