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संतुलन कला

04:00 AM Feb 28, 2025 IST
संतुलन कला
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एक बार संत सुकुमालनंदी जी मनुष्य के स्वभाव पर चर्चा कर रहे थे कि स्वभाव का संतुलन ही जीवन की मधुरता है। मगर एक शिष्य का कहना था कि क्रोध, बेचैनी, दुख, पराजय आदि से जूझते हुए कैसे संतुलन संभव है। तब संत ने समझाया कि कच्चे आम का स्वभाव खट्टा होता है, गुड़ मीठा होता है, मेथी कड़वी होती है, मिर्च तीखी होती है, और नमक की प्रकृति लवणता लिए होती है। फिर भी, जब ये सब मिलते हैं, एक जायकेदार अचार बनते हैं, तो हर किसी को पसंद आता है। यही संदेश हमें जीवन से भी लेना चाहिए—हर व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है, लेकिन यदि हम सबके साथ सामंजस्य बैठाना सीख लें, तो जीवन भी स्वादिष्ट और मधुर हो जाएगा। इसलिए संतुलन ही जीवनभर की सबसे बड़ी कला है।

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प्रस्तुति : मुग्धा पांडे

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